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१७. उपन्यास कसरी लेख्ने ?
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Category Archives: मैथिली कविता
मैथिली कविता : हे नव साल
~सुधा मिश्र~ उत्साह सँग उमंग लक आयब खुशीक नव तरंग लक आयब उतिम पहिचान लक आयब ठोर पर मुस्कान लक आयब हे नव साल घावक मरहम बनिक आयब गीतक सरगम बनिक आयब धानक पथार बनिक आयब नेहक पसार बनिक आयब
मैथिली कविता : मोन मोर हरियाल अछि
~सुधा मिश्र~ बागबोन हरियर गाछ वृक्ष हरियर माटिक हरियरी सँ नभ भेल हरियर हरियर नुवामे मोन मोर हरियाल अछि हरियर पियर चुरीक खनक कमाल अछि पियाके रानी बनलौ नैहरक दुलारी लएला बेसाहिक पाजेब बड भारी
मैथिली कविता : कोना सुतल छी विधाता ?
~सुधा मिश्र~ नहि डुबैक ककरो भरोसा नहि टुटैक मोनक आशा देखबियौ किछु तँ हे दाता कोना सुतल छी विधाता ? ककरो खीर परोसल थार ककरो खायके नहि जोगार
मैथिली कविता : मासुमक कसुर कहिदिय हे विधाता
~सुधा मिश्र~ पिता जिनका कहल जाति छै अहिठाम साक्षात् भगवान तहन ओ अपने जन्माओल सँ एना किए छथि अंजान? बुझल नहि छनि जिनका कनियो ककरा कहैछै नाता? तखन ओहन मानुष किए बनैछथि किनको जन्म दाता? रहैत छथि अपन तृष्णा कुनो … Continue reading
मैथिली कविता : जँ फगुवामे एथिन परदेशिया ?
~सुधा मिश्र~ वसन्त लय अँगना सजेबै मीठ -मीठ पुआ हम पकेबै लाल -हरियर रंग घोरिलेबै सब रंगक अबीर उडेबै
मैथिली कविता : अपने भाषा आन
~दिनेश यादव~ बोली हम्मर विरान नहि छहि, तईयो पराय मानैत छहि, हम्मर म्याक भाषिका अपने छहि, मुदा मान्यता कहा दैत छहि, हौ बाबु, डका पइर गेलह, अपने भाषा आन बइन गेलह । भाषिक दियाद कहैत छहि ई मात्र हम्मर बोली, … Continue reading
मैथिली कविता : आजुक मिथिला-गान
~धीरेन्द्र प्रेमर्षि~ मानैत छी जे नहि अछि एक्खन, दुनियाकेर भूगोलमे तैयो छी हम बचाकऽ रखनहि जकरा माइक बोलमे सोहर, लगनी, जटाजटिन कि झिझिया, साँझ, परातीमे एकहकटा मिथिला जीबैए, एकहक मैथिल छातीमे लोहछल नस-नसमे एखनहु तिरहुतिया सोनित बरकैए
मैथिली कविता : नव साल
~सुधा मिश्र~ सजाक कलश प्रवेशद्वार दक अरिपन लँ सिनुर पिठार बेली चमेली गुलाब लक लाल स्वागत अछि आउ हे नव साल सुख समृद्धि लक ढेर रचि उमंग उत्सवक बेर
मैथिली कविता : सिखायल लकडाउन
~सुधा मिश्र~ किया अतेक उदास अतेक बिचलित अछि इ घरी हमरा लेल त एहन क्षण एहन पल छल सर्वोपरि किछु दिनक लकडाउन किया लगैय मृत्युु समान जिनगीए छल लकडाउन कहाँ केलियै हम अपमान
मैथिली कविता : प्रमेक गंगा बहे अँगना
~सुधा मिश्र~ प्रमेक गंगा बहे अँगना शिर पर शोभे ताज गहना दिर्धायू स्वस्थ चिंरजिवी रही नव वर्षके अछि शुभकामना खन्कबैत हाथक कंगना गबैत मधुर वन्दना
मैथिली कविता : तोडल मोनक आश
~सुधा मिश्र~ कहियो इच्छाक देल बलिदान कहियो आकांक्षाक देल बलिदान दैत चलि एलौ हम बलिदान जीवन बनल मृत समान अकर कद्दर कहियो कहाँ भेल ?
मैथिली कविता : प्रीत वर्षारहल गगन
~सुधा मिश्र~ नहि करु अँहा अतेक गुमान तौलु नहि धन सँ अपन इमान खेत पथार भरल बखारी सँजोगि करब कि महल अटारी? जुडाउ किछु कनि अपनो जियाके मुनिक नयन दुनु सुनु हियाके
मैथिली कविता : व्यवहार
~विनीत ठाकुर~ ऐना केँ की मोल आन्हरकेँ शहरमे । भेल उन्टा मुँह सुन्टा अपने नजैरमे ।। ज्ञानक सूरमा लगाकऽ जे बजबैए गाल । व्यवहारमे देखल ओकरो उहे ताल ।।
मैथिली कविता : उदासी
~ब्रज मोहन झा “सोनी”~ डेग डेग पऽ गाम सहरमे सगरो नोर भोकासी अछी, नोर बहा लोक सुती रहल तँय हमरो छायल उदासी अछी । ओइ दिन ओकरा घर चोर गेलै,
मैथिली कविता : हम
~ब्रज मोहन झा “सोनी”~ हम पत्रकार छि, कुडा के ढेर पऽ पडल, बिन तारऽक सितार छि । हम कथाकार आ गित गजलकार छि आगुमे डा. होइतो अर्थऽक बिमार छि
मैथिली कविता : मधेशी
~विनीत ठाकुर~ गाम–नगर में सोरसराबा सुनल गेल बड़ बेसी लोकतन्त्र में अपन अधिकार लऽकऽ रहत मधेशी जनसंख्या सँ जनसागर में जोरल छलांै हम सीधा
मैथिली कविता : संघर्ष
~विनीत ठाकुर~ संघर्षक पथ पर हौसला बुलन्द अछि जीत आव लग अछि नै कानु माय जल्दिए लौटव हम अधिकार प्राप्तिक संग अहाँक शरण मे ।
मैथिली कविता : बापक ब्यथा
~रंजित निस्पक्ष~ केहन निर्लज तों भेले ओली, बापक नाम हँसेले रै ! केहन बंशमें जन्म भेलौ तोहर, खन्दानक नाम घिनेले रै ! बढ घिर्णित हम भेनौ ओली, जे जन्म देलियौ हम तोरा रै ! अई स बरहिंया निपुतरे रहितौं, नै … Continue reading
मैथिली कविता : शान्ति सन्देश
~विनीत ठाकुर~ ए ! शान्तिदूत परवा उड़िकऽ आ अप्पन देशमे फैलऽवै तों शान्ति हिमाल, पहाड़ आ मधेशमे एतऽकेँ सभ नर–नारी अछि शान्तिकेँ पूजारी सहत कोना हिंशा पसरल अछि समस्या भारी हिमालक अमृत जलमे मिलिगेल शोनितकेँ धारा
मैथिली कविता : जाइतक टुकरी
~विनीत ठाकुर~ जाइतक टुकरी नै ऊँच–नीच महान् छी हम सब मैथिल मिथिला हमर शान होइ छै एकेटा धरती एकेटा आकाश पिवैत छी सबकिओ एकेटा बतास चाहे ओ पंडित हो, पादरी आ खान
मैथिली कविता : प्रजातन्त्र रामलीलाक मञ्च
~रोशन जनकपुरी~ सन्दर्भ : वर्तमान १) देश खीरा जे ऊपर सँ सौँस होइछै आ भीतर सँ फाँकफाँक । २) राजनीति
मैथिली कविता : चहुँदिश अमङ्गल
~विनीत ठाकुर~ स्वार्थेबस मानव उजारलक ओ जङ्गल । तैं धरती पर देखल चहुँदिश अमङ्गल ।। ठण्ढी में कनकनी गर्मी में अधिक गर्मी । नदी नाला के आब बन्द भऽ गेल सर्बी ।।
मैथिली कविता : कम्प्यूटरक दुनिया
~विनीत ठाकुर~ ईन्टरनेट, ईमेल कम्प्यूटर के दुनिया । च्याटीङ्ग पर भेटल हमर ललमुनिया ।। नाम ओकर भाई जेहने छै अलका । तेहने ललितगर केश ओकर ललका ।।
मैथिली कविता : भरल नोर में
~विनीत ठाकुर~ केहन सपना हम मीता देखलौँ भोर में । माय मिथिला जगाबथि भरल नोर में ।। कहथि रने वने घुमी अपन अधिकार लेल । छैं तूँ सुतल छुब्ध छी तोहर बिचार लेल ।।
मैथिली कविता : कोरो आ पाढि
~विनीत ठाकुर~ गरीब छोरि कऽ के बुझतै गरीबीके मारि । ओ तऽ पेटे लेल जरबै छै कोरो आ पाढि़ ।। भेल छै स्वार्थी सब नेता अपने स्वार्थे में चूर । छिनलकै जे सपना सुख भऽ गेलैक कोसो दूर ।।
मैथिली कविता : गाम–नगर में
~विनीत ठाकुर~ गाम–नगर में सोरसराबा सुनल गेल बड़ बेसी । लोकतन्त्र में अपन अधिकार लऽकऽ रहत मधेशी ।। जनसंख्या सँ जनसागर में जोरल छलौं हम सीधा । खाकऽ हमहुं लाठी गोली पारकेलौं सबटा बाधा ।। बटवृक्षक अंकुर बनि जनमल कतेको … Continue reading
मैथिली कविता : हम युद्ध नहीं जित सकल छी
~नन्दलाल आचार्य~ (१) शान्ति आ सुव्यवस्थाकेँ अस्त्र बनेलिही केलही, बहुत केलही सभकऽ मनमनमे ढोल बजेलिही जीवनमे बारम्बार भूकम्प आनलिही सडक गरमेलही, निद्रा उडेलही सपना बाटलिही, अस्थिर भविष्य देलही कमै चेतना दैक ललिपप चटवैत तन, मन, धन लेलही, कोनकोनसँ समर्थन भेटलिही … Continue reading
मैथिली कविता : ओ शान्ति छि’
~गजेन्द्र गजुर~ सर्वत्र सँऽ भगाय ल, मधेश मे आइब नुकाय ल, तबो जे छिन लेल क, ओ शान्ति छि ॥ जनह तन युद्ध-एनह गोहारि, गर्दमगोल भ पडय मारि, अन्तमे छाती मे समालि, बाकी रहल,
मैथिली कबिता : अपन मधेश
~गजेन्द्र गजुर~ देख वृकति यही देशके, दिनानु दिन विग्रले जाय अपन मधेशके ॥ सब एक जुट निर्माण करब स्वदेश के, हरियर आवास बनायब अपन मधेशके॥ देख वृकति…
मैथिली कविता : जागुऊ मधेश।।
~गजेन्द्र गजुर~ निकाइल सबटा गौहमन कऽ बिख, किए क त शोणित मे दिए मधेश लिख, बान्हल हाथ कऽ टुट्ल न राइस, पैर भाइज तौँ कि फेरो त गेलु फाइस॥
मैथिली कविता : वृद्ध–वृद्धा
~विनीत ठाकुर~ वृद्ध–वृद्धा थिक घरक बडेÞरी छथि समाजमे देव समान । सदा ओ सोचथि सभक हिक करथि जन–जनकेँ कल्याण ।। कौवा कुचरऽसँ पहिने उठिकऽ गावथि नित भोर पराती । टोल परोशक निन्नकेँ तोरैत जगावथि बेटा, पोती, नाती ।। पोछैत पसिना … Continue reading
मैथली कविता : आन्हर केँ शहर मे
~विनीत ठाकुर~ ऐना केँ कि मोल आन्हर केँ शहर मे । भेल उन्टा मुँह सुन्टा अपने नजरि मे । ज्ञानक शुरमा लगाकऽ जे बजबैय गाल । व्यवहार में देखल ओकरो उहे ताल ।।