Category Archives: मैथिली रचना

मैथिली रचना / Maithili Rachana

मैथिली कविता : प्रीत वर्षारहल गगन

~सुधा मिश्र~ नहि करु अँहा अतेक गुमान तौलु नहि धन सँ अपन इमान खेत पथार भरल बखारी सँजोगि करब कि महल अटारी? जुडाउ किछु कनि अपनो जियाके मुनिक नयन दुनु सुनु हियाके

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मैथिली गजल : सएह जनु अदालत छै

~धीरेन्द्र प्रेमर्षि~ चण्ठ-अदा लत करै, सएह जनु अदालत छै लण्ठ मोहब्बत करै, सएह जनु अदालत छै गीताकेर गञ्जनलए सप्पतटा खुआ-खुआ झूठकेँ जे सत करै, सएह जनु अदालत छै

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मैथिली कविता : व्यवहार

~विनीत ठाकुर~ ऐना केँ की मोल आन्हरकेँ शहरमे । भेल उन्टा मुँह सुन्टा अपने नजैरमे ।। ज्ञानक सूरमा लगाकऽ जे बजबैए गाल । व्यवहारमे देखल ओकरो उहे ताल ।।

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विनीत ठाकुरका चार मैथिली हाइकु

~विनीत ठाकुर~ १. वर्षाक बुन्द धरतीक गर्भ सँ उगल पौध । २. धानक फूल बसमतिया आरि खुश किसान ।

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विनीत ठाकुरका चार मैथिली हाइकु

~विनीत ठाकुर~ १. नभ मे उर्जा सुरुजक लाली सँ धरती स्वर्ग ।। २. वर्षाक बाद इन्द्रधनुषी रुप धन्य प्रकृति ।

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विनीत ठाकुरका चार मैथिली हाइकु

~विनीत ठाकुर~ १) वन–जंगल प्रकृतिक श्रृंगार विनाश रोकी । २) पाकल लीची घेरल छै जाल सँ कौवा के घोल ।

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विनीत ठाकुरका चार मैथिली हाइकु

~विनीत ठाकुर~ १) सगरमाथा सर्वोच्च हिमालय धन्य नेपाल । २) साँपक अण्डा निकलय मुँह सँ सामना करी ।

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मैथिली कविता : उदासी

~ब्रज मोहन झा “सोनी”~ डेग डेग पऽ गाम सहरमे सगरो नोर भोकासी अछी, नोर बहा लोक सुती रहल तँय हमरो छायल उदासी अछी । ओइ दिन ओकरा घर चोर गेलै,

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मैथिली कविता : हम

~ब्रज मोहन झा “सोनी”~ हम पत्रकार छि, कुडा के ढेर पऽ पडल, बिन तारऽक सितार छि । हम कथाकार आ गित गजलकार छि आगुमे डा. होइतो अर्थऽक बिमार छि

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मैथिली गजल : हमरा गामेमे

~विद्यानन्द वेदर्दी~ मधुरी पियार भेटैए हमरा गामेमे खूशी अपार भेटैए हमरा गामेमे॥ दलान,खेत-खरिहान,चौरी चाँचर, अंगना दुआर भेटैए हमरा गामेमे॥

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पौराणिक मैथिली कथा : सिता जन्म के कथा

~मनोज कुमार राउत~ कथा अछि जे एक बेरा सीरध्वज जनक जी के राज्य मिथिला मे वर्षा नै भेल। लोग अकाल सँ पीड़ित होमय लागल। लोगके दशा देखी के राजा जनक ऋषि-मुनि आ विद्वान के सभा बजेलैंथ। एही सभा मे उपस्थित … Continue reading

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मैथिली गजल : बहूत दिनक बाद…

~मैथिल सुमन~ बहूत दिनक बाद आई एक टाs गजल बनल छै टुटली मरैया चहूँदीस सज्जाकऽ महल बनल छै अहाँक प्रितक वसन्त बहारक आगमनसँ प्रिया साच्चे समुच्चा इ जीन्गी हमर सफल बनल छै

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मैथिली कविता : मधेशी

~विनीत ठाकुर~ गाम–नगर में सोरसराबा सुनल गेल बड़ बेसी लोकतन्त्र में अपन अधिकार लऽकऽ रहत मधेशी जनसंख्या सँ जनसागर में जोरल छलांै हम सीधा

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मैथिली मुक्तक : गाम–घर डूबल

~विनीत ठाकुर~ नदी–नाला मे चलैय पानि अगम–अथाह वर्षा सँ भेल जनता केँ जिनगी तवाह ढहल पहाड़ कतेको

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मैथिली मुक्तक : किएक नहि डरत

~गजेन्द्र गजुर~ मेहनत-बलसँ केहनो पत्थर फूटाए जाइछै । अन्हारो घरमे रोटी मुहँमे घोटाए जाइछै , किएक नहि डरत

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मैथिली गजल : निक विचार नञि देखलाैं

~हृदय नारायण यादव ‘मैथिल सुमन’~ अहाँ भितर निक विचार नञि देखलाैँ कहियाे, विश्वास कsसकी अाे विचार नञि देखलाैँ कहियाे, अहाँ भितर निक विचार नञि देखलाैँ कहियाे, विश्वास कsसकी अाे विचार नञि देखलाैँ कहियाे, अहाँ भितर निक विचार नञि देखलाैँ कहियाे…

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मैथिली मुक्तक : ऋतुराज वशन्त

~विनीत ठाकुर~ फूल प्रकृतिकेँ श्रृंगार छी हम बगियाकेँ सुन्दर उपहार छी हम केव तोरु नै

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मैथिली मुक्तक : प्रिय प्राण हमर

~विनीत ठाकुर~ अहाँ छी जीनगीक चान हमर अहीँ पर सदिखन ध्यान हमर ई मधुर

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मैथिली मुक्तक : माय मिथिला

~विनीत ठाकुर~ माय मिथिलाकेँ संतान अहाँ राखु पूर्वजकेँ मान अहाँ छोडि़कऽ

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मैथिली कविता : संघर्ष

~विनीत ठाकुर~ संघर्षक पथ पर हौसला बुलन्द अछि जीत आव लग अछि नै कानु माय जल्दिए लौटव हम अधिकार प्राप्तिक संग अहाँक शरण मे ।

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मैथिली मुक्तक : उलझन

~विनीत ठाकुर~ दहेज सँ खरिदल दुलहा पर भाग कि निक निशारात्रि मे अनोना दुलारक राग कि निक

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मैथिली कविता : बापक ब्यथा

~रंजित निस्पक्ष~ केहन निर्लज तों भेले ओली, बापक नाम हँसेले रै ! केहन बंशमें जन्म भेलौ तोहर, खन्दानक नाम घिनेले रै ! बढ घिर्णित हम भेनौ ओली, जे जन्म देलियौ हम तोरा रै ! अई स बरहिंया निपुतरे रहितौं, नै … Continue reading

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मैथिली गजल : केहन बात केलक ओ

~गजेन्द्र गजुर~ आखिए आखिए मे केहन बात केलक ओ॥ अपन जिनगी सँ क्षणमे कात केलक ओ॥ बिन छपरी केर हमर नेहक निवास॥ बुने बन सँ जहरक बर्षात केलक ओ॥

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मैथिली गजल : बेर बेर सवाल

~गजेन्द्र गजुर~ बेर बेर सवाल हमर याह रहैछै सत्य बात किए लगैत बेजाह रहैछै अपना टाग्ङ तर दाबल रहलो पर कछेर प पुहुचेने किए नाह रहैछै

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मैथिली कविता : शान्ति सन्देश

~विनीत ठाकुर~ ए ! शान्तिदूत परवा उड़िकऽ आ अप्पन देशमे फैलऽवै तों शान्ति हिमाल, पहाड़ आ मधेशमे एतऽकेँ सभ नर–नारी अछि शान्तिकेँ पूजारी सहत कोना हिंशा पसरल अछि समस्या भारी हिमालक अमृत जलमे मिलिगेल शोनितकेँ धारा

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मैथिली कविता : जाइतक टुकरी

~विनीत ठाकुर~ जाइतक टुकरी नै ऊँच–नीच महान् छी हम सब मैथिल मिथिला हमर शान होइ छै एकेटा धरती एकेटा आकाश पिवैत छी सबकिओ एकेटा बतास चाहे ओ पंडित हो, पादरी आ खान

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मैथिली गजल : पिअरगर यौ

~धिरेन्द्र प्रेमर्षि~ जोरजुलुमसँ जे ने झुकए से भाले लगए पिअरगर यौ इन्द्रधनुषी एहि दुनियामे लाले लगए पिअरगर यौ ठोरे जँ सीयल रहतै तँ गुदुर–बुदुर की हेतै कपार! एहन मुर्दा शान्तिसँ तँ बबाले लगए पिअरगर यौ कुच्ची–कलमक रूप सुरेबगर रहलै, रहतै … Continue reading

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मैथिली गीत : बेटीक भाग्य विधान

~विनीत ठाकुर~ बीसम बसन्त जाहि घर बीतल सेहो घर भेल आब आन किया विधना फेरि(फेरि कऽ लिखे बेटीक भाग्य विधान के आब भोरक भुरुकबामे उठि कऽ चुनत बागक फूल एतबो नै कोना सोचलन्हि बाबा कोना पठाबथि दोसर कूल

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मैथिली कविता : प्रजातन्त्र रामलीलाक मञ्च

~रोशन जनकपुरी~ सन्दर्भ : वर्तमान १) देश खीरा जे ऊपर सँ सौँस होइछै आ भीतर सँ फाँकफाँक । २) राजनीति

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मैथिली कविता : चहुँदिश अमङ्गल

~विनीत ठाकुर~ स्वार्थेबस मानव उजारलक ओ जङ्गल । तैं धरती पर देखल चहुँदिश अमङ्गल ।। ठण्ढी में कनकनी गर्मी में अधिक गर्मी । नदी नाला के आब बन्द भऽ गेल सर्बी ।।

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मैथिली कविता : कम्प्यूटरक दुनिया

~विनीत ठाकुर~ ईन्टरनेट, ईमेल कम्प्यूटर के दुनिया । च्याटीङ्ग पर भेटल हमर ललमुनिया ।। नाम ओकर भाई जेहने छै अलका । तेहने ललितगर केश ओकर ललका ।।

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मैथिली गजल : डर लगैए

~रोशन जनकपुरी~ नाचि रहल गिरगिटिया कोना, डर लगैए साँच झूठमे झिझिरकोना, डर लगैए कफन पहिरने लोक घुमए एम्हर ओमहर शहर बनल मरघटके बिछौना, डर लगैए

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