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Category Archives: भाषा-भाषी साहित्य
सुनुवार भाषी कविता : दारशो मुरके हारशो लोः
~चेरेहामसो क्याबा~ दारशो मुरके हारशो लोः खाइमि हिँअसि खारशो लो नेल आन नोफामि मारिअबा
मैथिली मुक्तक : किएक नहि डरत
~गजेन्द्र गजुर~ मेहनत-बलसँ केहनो पत्थर फूटाए जाइछै । अन्हारो घरमे रोटी मुहँमे घोटाए जाइछै , किएक नहि डरत
मैथिली गजल : निक विचार नञि देखलाैं
~हृदय नारायण यादव ‘मैथिल सुमन’~ अहाँ भितर निक विचार नञि देखलाैँ कहियाे, विश्वास कsसकी अाे विचार नञि देखलाैँ कहियाे, अहाँ भितर निक विचार नञि देखलाैँ कहियाे, विश्वास कsसकी अाे विचार नञि देखलाैँ कहियाे, अहाँ भितर निक विचार नञि देखलाैँ कहियाे…
थारू कथा : बट्कोही हिरो
~सोम डेमनडौरा~ नेंढान टर्नि आज पुरा फिटान् बा । डोक्ल्याक डोक्ल्याक न्याँगटा सल् गल्ली । ज्यान कुन्टलसे ढ्यार हुइहिंस् । साँवर, ठुल ढ्यांग, डर लग्टिक अउर छन्डान जिऊ । पच्छिउँसे डौंक्टी आइटा । “टेरी गुन्डा सारे । आज टुहिन् चिर्के … Continue reading
सुनुवार भाषी कविता : आम ल्वो
~सुर्य प्रकाश सुनुवार चेरेहामसो~ माजोअ्थु मादुमशो, मातुइथु मादुमशो, गो इयिँके ल्वो । गो इयिँकेला ममे, एको राग्यङा नेल इयिँके ल्वो, साऽमचा ’प्लेँऽचा मादुमशो
सुनुवार गीत : आ थु ङा ङमम्
~नाइलु क्याबचा~ आ थु ङा ङमम् नम् फुइस्श्या ख्डुइताङ इन्कलि थु फुइल्लि इन नेमि पश्या नेल लोसि सोइत्ताङ ब्लेश्या ल्बेस्पोइति । निलोमि जातिनि ङम दुम्श्या साप्पा श्यातिनि कुल सुम्श्या छुल्ल बोश्या आका प्लापसेले ला:इनि को आ थु नेल शुम्श्या मिम्ति … Continue reading
सुनुवार भाषी कविता : गसुम सुम्ती…
~डा.लाल श्याँकारेलु रापचा~ मोलाङ योलाङ लिख खम्ति प्लोँइताङ मुल्केम ओल दुम्ति । ओल ओल दुम्श्या गसुम सुम्ती …….. ।१। लिम्ति प्लेत्ति मसेत्ति लोः या प्लोँइश्या दरलेत्ति । रिमाचेमा प्लेँश्या गसुुम सुम्ति …. …
थारू भाषी मुक्तक : सिम फे किन्देनु
~सगर कुस्मी~ तुहिनसे बाट कारक लग सिम फे किन्देनु गलेम लागेन पाउडर, क्रिम फे किन्देनु अकेली रहो संग नै पके
सुनुवार भाषी गीत : मिथोस
~थरि कयाबा~ इन लाँ रिमतिके रिमतिके पेरसास नाँ तासला मुकु जिशो मिच निमफा इन कलि मिमशा सेँसास ।।१।। रिससे गेरससे कुरदिथदे ङोन तेमेते लाइँतिनि रिमचारिमशो इन लाँ द, अँयकलि मिमशा मजाअ्नि , गोइनु रिशशो गेरशो नातनेलल दुमशा लितेमे मसथेास
सुनुवार भाषी कविता : गार
~सुर्य प्रकाश सुनुवार चेरेहामसो~ आमके निततेक देललो बाअ्शाइयो निशशा बाअ्ने माचाबबा, रापचा दा एर ङा ल्वो, खोइल बा ङाना पोः राबबा ? बिचाःरा गार ! जाचा यो जाइबा, कोजाइयो कोलशोन बाअ्ब, तारना गिश जाऽपतु ङानाइयो
मैथिली मुक्तक : ऋतुराज वशन्त
~विनीत ठाकुर~ फूल प्रकृतिकेँ श्रृंगार छी हम बगियाकेँ सुन्दर उपहार छी हम केव तोरु नै
कुलुङ भाषी गजल : मोरोकफोसे आयय
~केडी रेम्नीसीङ~ आना कोङ ननतोकची मोरोकफोसे आयय, नतोयो पिक्तो ततोकची मोरोकफोसे आयय । हाल्लोसो इची सुर मइचु पिक्तो चयोतितो, तुप्खाचिलो पतोकची मोरोकफोसे आयय ।
चित्र ‘लक्ष्मी’का थारू भाषी दुई हाइकुहरु
~चित्र ‘लक्ष्मी’~ झिङ्नी बेल्भार जोन्ह्याँ ओ अज्जरार दूर त नि हो ? औंसी ना पुन्नी
थारू भाषी कविता : डहरचन्डीक बन्क
~सुशील चौधरी~ जन्नीह चिमचाम डेख्क जिन झंख्रहो ठर्वा, पटोहिया मौन बा कैक जिन डँक्रहो छावा, डाइ निब्वालठो कैक जिन ठौकहो बाबा । छाई मु सिलबाटिस् कैक जिन ढम्क्यइहो डमन्ड्वा,
सुनुवार भाषी कविता : मुबगिल
~सुर्य प्रकाश सुनुवार चेरेहामसो~ एको थुँ मेको थँु नेल आन थुँ, मुलाअ्त सिनाअ्त काइयो महाशो बा ताँ मारदे मे मारदे आँ थुँ यो मोदन महाअ्शो बा
मैथिली मुक्तक : प्रिय प्राण हमर
~विनीत ठाकुर~ अहाँ छी जीनगीक चान हमर अहीँ पर सदिखन ध्यान हमर ई मधुर
सुनुवार भाषी कविता : लाँ कोःशा
~होम दासुच सुनुवार~ थोचे थोचे दिश थोचे गोमि रिम-ताङ लाँ कोःशा नाः दाम-ना दाम-ना नाः सोशा मि-चिइयो ब्ला ब्ला दुम-ता एर ओत-थि गेत-थि लुअÞच लाँ कोःशा । माग्लुम-सिबा दे तुइश-शो हाना
सुनुवार भाषी गीत : सेरेम फु बेाइमात
~थरि कयाबा~ इनकलि लेा का देङदेङ केाँ , सेरेम फु बेाइमात इन रूमि, निकवाक हारशा पसतन पाइनुङ ,इन नमला जुउताव अँ थुँमि ।।१।। पासेकुसे सेथ हिरसाङ वाकिवाकि , इनकलिला पित मिमचा , रिमचा रिमताङ चेरे नाति ,मुलैनु , दुमति गेा … Continue reading
थारू भाषी गजल : पर्ख नि हुइ आब
~बुद्दिराम चौधरी~ आघ बर्ही सङ्घारी हुक्र पाछ पर्ख नि हुइ आब / नि हच्की नि डराइ यी ब्यालम डर्ख नि हुइ आब // लिखाइ अधिकार सम्बिधानम पहिचान सहित के / जितिह ेरहल्म फे हम्र सक्कुज मर्ख निहुइ आब //
सुनुवार भाषी कविता : तेमालेआन रामशि
~चिमरु बुजिच~ इँयि जिकिपुरखिमि रिमलुङा नाइलुमि रिमचा शेँ:तामे रिमलुङा नाइलुमि इपचा शेँ:तामे गोपुकि नेलले रिमलुङा नाइलुमिन रिमशा बाअताका मिनु मुतुतुमला पा इपशा बाअताका ।इँयि रागिङा तोँ:बलाचपुकिमि होँबनाकेँ:सिनु खिक्योतामक्योमि आन दुलेगुइँगुइ तापचा शेँ:तामे
थारू भाषी गजल : कठु जाँरक भंक्री
~एम के कुसुम्या~ निदेलसे घरक मनै छोर्देम कठु जाँरक भंक्री कबु काल रिस लग्था फोर्देम कठु जाँरक भंक्री मै मटोर्या अस्त बातु जाँर निहोक निसेक्तु मै देना बा त देओ नै त चोर्देम कठु जाँरक भंक्री
मैथिली मुक्तक : माय मिथिला
~विनीत ठाकुर~ माय मिथिलाकेँ संतान अहाँ राखु पूर्वजकेँ मान अहाँ छोडि़कऽ
थारू भाषी कविता : खै, कहाँ बा भ्यालेन्टाइन !?
~लक्की चाैधरी~ बजारमे हल्ला बा, कति हुँ आइल बा भ्यालेन्टाइन ! एहोर ओहोर हेर्नु कोनुवा कप्चा निहर्नु नै लागल नजर कहुँ मनहे पुछ्नु खै, कहाँ बा भ्यालेन्टाइन !? बजार चोक चिया पसल, सडक गल्ली
थारू भाषी कथा : कमैया बस्तीम् भगन्वा
~कृष्णराज सर्वहारी~ १ नेपालके मनै गरीब होके दुःख पइलाँ कहिके भगन्वा दानबीर बन्के अइलाँ । हुँकार आघे मंगुइयनके लाइन लाग गैलिन । – प्रभु मोर घर २ तल्ला किल बा । कम्तीमे ५ तल्ला टे बनाइ पाउँ । – प्रभु … Continue reading
कुलुङ भाषी गित : सानीवामी नाक्का मान्तुप
~केडी रेम्नीसीङ~ सानीवामी नाक्का मान्तुप छुये होगो हेप्लो, सम्तुमाखेर मिक्वा छुना हुप्से होगो हेप्लो। खोलोपिकाङ कोप सानिवा होप पिकाङ सते, गोपाक रिङ पयाम्दो योउ सिप्प नाम मते ।
कुलुङ भाषी गजल : खातोलोसो मिन्चाना
~उद्धव गदुहो कुलुङ~ दुख्वा मान्नतो साल्पा खातोलोसो मिन्चाना ओ हाल्ला चिप्लेटि थोम्ला सपुलोसो मिन्चाना हिक्सो केला वासो ता प्लास्टिक खुम्पा ना तुम्पा चुङ हायाम ल हो मान्छुम्पा छुवोलोसो मिन्चाना
थारू भाषी कविता : सविनयाँ
~लक्की चाैधरी~ सवनियाँ गदरवा वर्खाबुन्दी बर्सल । कजरिया थर्कल बद्री जीउ माेर तर्सल ।। बर्का पानी बरसल अइसिन जाेर । मच्छीमारे गैलीगाेही खवइली झाेर ।।
नेवारी कविता : मतिनाया चखुं
~दिव्या बज्राचार्य~ न्हयाबले नापं ब्वया च्वंगु खना न्हयाबले नापं च्वना च्वंगु खना निम्हेसिया तुति छपा थें निम्हेसिया पपु छगु थें थो मतिनाया चखुं थो मतिनाया चखुं वा झ्वारर् वसा नाप प्यात
अवधी भाषी गजल : अपकी चुनाव मे
~अजय पाण्डे~ अजमाइहैं सब आपन आपन हथकण्ड ,अपकी चुनाव मे चली फिरसे लाठी और डंडा , अपकी चुनाव मे केहू खरिदी वोट तो केहू देखाई धौस , जाने केतना पुजैहैं पंडित और पंडा,अपकी चुनाव मे
थारू भाषी मुक्तक : सडकमे अइठाँ
~छविलाल कोपिला~ कबो जाति विरोधी कबो अतिजाति सडकमे अइठाँ देखो यहाँ घेंघा फुलैटी उहे राष्ट्रघाती सडकमे अइठाँ यी देशके शासक ओस्ते हम्रहिन भेंरी नै कहल हुइही
थारू भाषी बालकथा : पश्तो
~छविलाल कोपिला~ ‘अई ! ऊ लवन्डा हेरो कैसे–कैसे करटा ?’ ‘अई ! के हो ?’ ‘के रही, सझ्लान बर्किक छुट्की दुलरुवा छावा हुइन्, उहे हरबरिया, के रही ।’ ‘यी, दबवा पैनाहस्, यकर दाई–बाबा कुल नै हेर्ठुइस् कि का ?’ ‘हेर्हिस् … Continue reading