Tag Archives: विनीत ठाकुर – Binit Thakur

विनीत ठाकुरका दश मैथिली हाइकु : ( मानवता विशेष )

~विनीत ठाकुर~ १. ज्ञान उपर अहंकारक पर्दा जीवन नष्ट । २. विशुद्ध प्रेम आदान–प्रदान सँ मोन मे शान्ति ।

Posted in मैथिली हाइकु | Tagged , | Leave a comment

मैथिली गीत : मानवता

~विनीत ठाकुर~ नहि भटकु धामे–धाम राखु मानवता पर ध्यान लागु दीन–दुखी के सेवा मे भेटत ओतहि भगवान भीतर सँ तोडि़ देलक मिथिला के दुःख आ गरीबी मन्दिर के बाहर दुःखिया बनल अछि परजीवी

Posted in मैथिली गीत | Tagged | Leave a comment

विनीत ठाकुरका छ मैथिली हाइकु : ( कोरोना विशेष )

~विनीत ठाकुर~ १. धरती पर पसरल कोरोना खोजी दबाई । २. कोरोना रोग पसरय भिड़ मे रही एकात ।

Posted in मैथिली हाइकु | Tagged , | Leave a comment

मैथिली मुक्तक : हाथ नहि मिलाउ

~विनीत ठाकुर~ #कोरोना विशेष कनि दूरे रहु मीत हाथ नहि मिलाउ कुम्हरो निकलऽसँ पहिने मास्क लगाउ पसरल अछि सगरो

Posted in मैथिली मुक्तक | Tagged | Leave a comment

मैथिली कविता : व्यवहार

~विनीत ठाकुर~ ऐना केँ की मोल आन्हरकेँ शहरमे । भेल उन्टा मुँह सुन्टा अपने नजैरमे ।। ज्ञानक सूरमा लगाकऽ जे बजबैए गाल । व्यवहारमे देखल ओकरो उहे ताल ।।

Posted in मैथिली कविता | Tagged | Leave a comment

विनीत ठाकुरका चार मैथिली हाइकु

~विनीत ठाकुर~ १. वर्षाक बुन्द धरतीक गर्भ सँ उगल पौध । २. धानक फूल बसमतिया आरि खुश किसान ।

Posted in मैथिली हाइकु | Tagged , | Leave a comment

विनीत ठाकुरका चार मैथिली हाइकु

~विनीत ठाकुर~ १. नभ मे उर्जा सुरुजक लाली सँ धरती स्वर्ग ।। २. वर्षाक बाद इन्द्रधनुषी रुप धन्य प्रकृति ।

Posted in मैथिली हाइकु | Tagged , | Leave a comment

विनीत ठाकुरका चार मैथिली हाइकु

~विनीत ठाकुर~ १) वन–जंगल प्रकृतिक श्रृंगार विनाश रोकी । २) पाकल लीची घेरल छै जाल सँ कौवा के घोल ।

Posted in मैथिली हाइकु | Tagged , | Leave a comment

विनीत ठाकुरका चार मैथिली हाइकु

~विनीत ठाकुर~ १) सगरमाथा सर्वोच्च हिमालय धन्य नेपाल । २) साँपक अण्डा निकलय मुँह सँ सामना करी ।

Posted in मैथिली हाइकु | Tagged , | Leave a comment

मैथिली कविता : मधेशी

~विनीत ठाकुर~ गाम–नगर में सोरसराबा सुनल गेल बड़ बेसी लोकतन्त्र में अपन अधिकार लऽकऽ रहत मधेशी जनसंख्या सँ जनसागर में जोरल छलांै हम सीधा

Posted in मैथिली कविता | Tagged | Leave a comment

मैथिली मुक्तक : गाम–घर डूबल

~विनीत ठाकुर~ नदी–नाला मे चलैय पानि अगम–अथाह वर्षा सँ भेल जनता केँ जिनगी तवाह ढहल पहाड़ कतेको

Posted in मैथिली मुक्तक | Tagged | Leave a comment

मैथिली मुक्तक : ऋतुराज वशन्त

~विनीत ठाकुर~ फूल प्रकृतिकेँ श्रृंगार छी हम बगियाकेँ सुन्दर उपहार छी हम केव तोरु नै

Posted in मैथिली मुक्तक | Tagged | Leave a comment

मैथिली मुक्तक : प्रिय प्राण हमर

~विनीत ठाकुर~ अहाँ छी जीनगीक चान हमर अहीँ पर सदिखन ध्यान हमर ई मधुर

Posted in मैथिली मुक्तक | Tagged | Leave a comment

मैथिली मुक्तक : माय मिथिला

~विनीत ठाकुर~ माय मिथिलाकेँ संतान अहाँ राखु पूर्वजकेँ मान अहाँ छोडि़कऽ

Posted in मैथिली मुक्तक | Tagged | Leave a comment

मुक्तक : राजनिति

~विनीत ठाकुर~ राजनिति रगतको खोला होइन जनता पडकाउने यो गोला होइन

Posted in मुक्तक | Tagged | Leave a comment

मैथिली कविता : संघर्ष

~विनीत ठाकुर~ संघर्षक पथ पर हौसला बुलन्द अछि जीत आव लग अछि नै कानु माय जल्दिए लौटव हम अधिकार प्राप्तिक संग अहाँक शरण मे ।

Posted in मैथिली कविता | Tagged | Leave a comment

मैथिली मुक्तक : उलझन

~विनीत ठाकुर~ दहेज सँ खरिदल दुलहा पर भाग कि निक निशारात्रि मे अनोना दुलारक राग कि निक

Posted in मैथिली मुक्तक | Tagged | Leave a comment

मैथिली कविता : शान्ति सन्देश

~विनीत ठाकुर~ ए ! शान्तिदूत परवा उड़िकऽ आ अप्पन देशमे फैलऽवै तों शान्ति हिमाल, पहाड़ आ मधेशमे एतऽकेँ सभ नर–नारी अछि शान्तिकेँ पूजारी सहत कोना हिंशा पसरल अछि समस्या भारी हिमालक अमृत जलमे मिलिगेल शोनितकेँ धारा

Posted in अनूदित कविता, मैथिली कविता | Tagged | Leave a comment

मैथिली कविता : जाइतक टुकरी

~विनीत ठाकुर~ जाइतक टुकरी नै ऊँच–नीच महान् छी हम सब मैथिल मिथिला हमर शान होइ छै एकेटा धरती एकेटा आकाश पिवैत छी सबकिओ एकेटा बतास चाहे ओ पंडित हो, पादरी आ खान

Posted in मैथिली कविता | Tagged | Leave a comment

मैथिली गीत : बेटीक भाग्य विधान

~विनीत ठाकुर~ बीसम बसन्त जाहि घर बीतल सेहो घर भेल आब आन किया विधना फेरि(फेरि कऽ लिखे बेटीक भाग्य विधान के आब भोरक भुरुकबामे उठि कऽ चुनत बागक फूल एतबो नै कोना सोचलन्हि बाबा कोना पठाबथि दोसर कूल

Posted in मैथिली गीत | Tagged | Leave a comment

मैथिली कविता : चहुँदिश अमङ्गल

~विनीत ठाकुर~ स्वार्थेबस मानव उजारलक ओ जङ्गल । तैं धरती पर देखल चहुँदिश अमङ्गल ।। ठण्ढी में कनकनी गर्मी में अधिक गर्मी । नदी नाला के आब बन्द भऽ गेल सर्बी ।।

Posted in मैथिली कविता | Tagged | Leave a comment

मैथिली कविता : कम्प्यूटरक दुनिया

~विनीत ठाकुर~ ईन्टरनेट, ईमेल कम्प्यूटर के दुनिया । च्याटीङ्ग पर भेटल हमर ललमुनिया ।। नाम ओकर भाई जेहने छै अलका । तेहने ललितगर केश ओकर ललका ।।

Posted in मैथिली कविता | Tagged | Leave a comment

मैथिली गीत : जे करथि घोटाला

~विनीत ठाकुर~ जे करथि घोटाला छथि अखन बोलबाला चलत कोना ई दुनिया कह रे उपरबाला गाम–नगर में बैइमान वनमे घुमै सैतान मानब भऽ दानब वनि करै सज्जनक अपमान

Posted in मैथिली गीत | Tagged | Leave a comment

मैथिली कविता : भरल नोर में

~विनीत ठाकुर~ केहन सपना हम मीता देखलौँ भोर में । माय मिथिला जगाबथि भरल नोर में ।। कहथि रने वने घुमी अपन अधिकार लेल । छैं तूँ सुतल छुब्ध छी तोहर बिचार लेल ।।

Posted in मैथिली कविता | Tagged | Leave a comment

मैथिली कविता : कोरो आ पाढि

~विनीत ठाकुर~ गरीब छोरि कऽ के बुझतै गरीबीके मारि । ओ तऽ पेटे लेल जरबै छै कोरो आ पाढि़ ।। भेल छै स्वार्थी सब नेता अपने स्वार्थे में चूर । छिनलकै जे सपना सुख भऽ गेलैक कोसो दूर ।।

Posted in मैथिली कविता | Tagged | Leave a comment

मैथिली कविता : गाम–नगर में

~विनीत ठाकुर~ गाम–नगर में सोरसराबा सुनल गेल बड़ बेसी । लोकतन्त्र में अपन अधिकार लऽकऽ रहत मधेशी ।। जनसंख्या सँ जनसागर में जोरल छलौं हम सीधा । खाकऽ हमहुं लाठी गोली पारकेलौं सबटा बाधा ।। बटवृक्षक अंकुर बनि जनमल कतेको … Continue reading

Posted in मैथिली कविता | Tagged | Leave a comment

विनीत ठाकुरका मैथिली मुक्तक

~विनीत ठाकुर~ ————- मेंहदीकेँ रंग ——————– खनकेँ कंगना गमकेँ हाथमे मेंहदीकेँ रंग साओनकेँ फुन्ही संग मोनमे नवीण तरंग एहनमे तरसे श्रृंगार पिया दुलारक लेल घर आउ परदेशी रहु किछु दिन संग ।। १

Posted in मैथिली मुक्तक | Tagged | Leave a comment

मैथिली कविता : वृद्ध–वृद्धा

~विनीत ठाकुर~ वृद्ध–वृद्धा थिक घरक बडेÞरी छथि समाजमे देव समान । सदा ओ सोचथि सभक हिक करथि जन–जनकेँ कल्याण ।। कौवा कुचरऽसँ पहिने उठिकऽ गावथि नित भोर पराती । टोल परोशक निन्नकेँ तोरैत जगावथि बेटा, पोती, नाती ।। पोछैत पसिना … Continue reading

Posted in मैथिली कविता | Tagged | Leave a comment

मैथली कविता : आन्हर केँ शहर मे

~विनीत ठाकुर~ ऐना केँ कि मोल आन्हर केँ शहर मे । भेल उन्टा मुँह सुन्टा अपने नजरि मे । ज्ञानक शुरमा लगाकऽ जे बजबैय गाल । व्यवहार में देखल ओकरो उहे ताल ।।

Posted in मैथिली कविता | Tagged | Leave a comment