Category Archives: मैथिली रचना

मैथिली रचना / Maithili Rachana

मैथिली गीत : जे करथि घोटाला

~विनीत ठाकुर~ जे करथि घोटाला छथि अखन बोलबाला चलत कोना ई दुनिया कह रे उपरबाला गाम–नगर में बैइमान वनमे घुमै सैतान मानब भऽ दानब वनि करै सज्जनक अपमान

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मैथिली कथा : अग्‍निपुष्‍पके गुच्‍छासब

~रोशन जनकपुरी~ दुश्‍मनके नाइट भिजन हेलिकप्‍टर सँ राइत भइर बमबारी के बादो जनसेनाद्वारा कएल गेल घेराबन्‍दी नइ टुटल रहइ । जेना सिनेमा मे होइछै, चहुदिस पसरल अन्‍हारमे एम्‍हर बम खइस रहल अइ, ओम्‍हर बम खइस रहल अइ आ लोकसब दौड … Continue reading

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मैथिली गजल : जर्सी छी

~धीरेन्द्र प्रेमर्षि~ सिहकैत कनकन्नीमे सीटर छी, जर्सी छी मखा-मखा प्रेम करी, मोनक प्रेमर्षि छी चानक धियानमे धरती नहि छूटए, तेँ डिहबारक भगता हम दूरक ने दर्शी छी

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मैथिली कविता : भरल नोर में

~विनीत ठाकुर~ केहन सपना हम मीता देखलौँ भोर में । माय मिथिला जगाबथि भरल नोर में ।। कहथि रने वने घुमी अपन अधिकार लेल । छैं तूँ सुतल छुब्ध छी तोहर बिचार लेल ।।

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मैथिली गजल : जाइ छै

~डा राजेन्द्र विमल~ नयनमे उगै छै जे सपनाकेर कोँढ़ी, फुलएबासँ पहिने सभ झरि जाइ छै कलमक सिनूरदान पएबासँ पहिने, गीत काँचे कुमारेमे मरि जाइ छै चान भादवक अन्हरिये कटैत अहुरिया, नुका मेघक तुराइमे हिंचुकै छल जे बिछा चानीक इजोरिया कोजगरामे … Continue reading

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मैथिली कविता : कोरो आ पाढि

~विनीत ठाकुर~ गरीब छोरि कऽ के बुझतै गरीबीके मारि । ओ तऽ पेटे लेल जरबै छै कोरो आ पाढि़ ।। भेल छै स्वार्थी सब नेता अपने स्वार्थे में चूर । छिनलकै जे सपना सुख भऽ गेलैक कोसो दूर ।।

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मैथिली गजल : कुच्चा छै

~धिरेन्द्र प्रेमर्षि~ शासनके लोडहीतर लोक बनल कुच्चा छै लोडहपर हाथ जकर अगबे सब लुच्चा छै कहने छल जत्ते छै खधिया हम पाटि देब वैषम्यक ठाढ मुदा पर्वत समुच्चा छै

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मैथिली गजल : चोख फार भेल छी

~धीरेन्द्र प्रेमर्षि~ घसाइत आ खिआइत चोख फार भेल छी गला-गला गात गजलकार भेल छी शब्दकेर महफामे भावक वर-कनियाँ लऽ सदिखन हम दुलकैत कहार भेल छी धधराक धाह मारऽ पोखरि खुनाएल अछि

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मैथिली कविता : गाम–नगर में

~विनीत ठाकुर~ गाम–नगर में सोरसराबा सुनल गेल बड़ बेसी । लोकतन्त्र में अपन अधिकार लऽकऽ रहत मधेशी ।। जनसंख्या सँ जनसागर में जोरल छलौं हम सीधा । खाकऽ हमहुं लाठी गोली पारकेलौं सबटा बाधा ।। बटवृक्षक अंकुर बनि जनमल कतेको … Continue reading

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मैथिली गजल : एखन बाँकी अछि

~रामभरोस कापडि ‘भ्रमर’~ करिछौंह मेघके फाटब, एखन बाँकी अछि चम्कैत बिजलैँकाके सैंतब, एखन बाँकी अछि उठैत अछि बुलबुल्ला फूटि जाइछ व्यथा बनि पानिके अड़ाबे से सागर, एखन बाँकी अछि

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मैथिली कविता : हम युद्ध नहीं जित सकल छी

~नन्दलाल आचार्य~ (१) शान्ति आ सुव्यवस्थाकेँ अस्त्र बनेलिही केलही, बहुत केलही सभकऽ मनमनमे ढोल बजेलिही जीवनमे बारम्बार भूकम्प आनलिही सडक गरमेलही, निद्रा उडेलही सपना बाटलिही, अस्थिर भविष्य देलही कमै चेतना दैक ललिपप चटवैत तन, मन, धन लेलही, कोनकोनसँ समर्थन भेटलिही … Continue reading

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मैथिली कथा : चौकपरक मौगी

~बृषेश चन्द्र लाल~ हँ, आब ओकरा चौके तँ कहैत छैक । नाम धएलकैक अछि मेगा चौक ! कनेक अङरेजिया नाम । एहिसँ नवतुरिया कर्णधारसभमे अपन मौलिकता, संस्कृति, भाषा आदि आ कही तँ साँच ई जे स्वयं अपनोप्रति बढ़ैत हीनताबोधक स्थिति … Continue reading

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मैथिली गीत : सहिदक आत्मा जरए

~गजेन्द्र गजुर~ ननकिरबो मरए ,बुढबो मरए लइल अधिकार।। सहिदक आत्मा जरए,टसँमसाइ नहि जाली सरकार।। लहुमाला छिरियाल माएँ के आचरमे बोदम बोद नोर कऽ डिढीर फारल पाथरमे मिटौने नइ मिटत माँए मधेशक ललकार ।।

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मैथिली गजल : आजादी

~गजेन्द्र गजुर~ आजादीके ज्वाला दनकैत रहतै, ओसब ओहिना फनकैत रहतै, जुलुम कले चिच्यानञि रति भरि, चाहे बिरुद्धमे सनकैत रहतै,

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विनीत ठाकुरका मैथिली मुक्तक

~विनीत ठाकुर~ ————- मेंहदीकेँ रंग ——————– खनकेँ कंगना गमकेँ हाथमे मेंहदीकेँ रंग साओनकेँ फुन्ही संग मोनमे नवीण तरंग एहनमे तरसे श्रृंगार पिया दुलारक लेल घर आउ परदेशी रहु किछु दिन संग ।। १

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मैथिली कविता : ओ शान्ति छि’

~गजेन्द्र गजुर~ सर्वत्र सँऽ भगाय ल, मधेश मे आइब नुकाय ल, तबो जे छिन लेल क, ओ शान्ति छि ॥ जनह तन युद्ध-एनह गोहारि, गर्दमगोल भ पडय मारि, अन्तमे छाती मे समालि, बाकी रहल,

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मैथिली कबिता : अपन मधेश

~गजेन्द्र गजुर~ देख वृकति यही देशके, दिनानु दिन विग्रले जाय अपन मधेशके ॥ सब एक जुट निर्माण करब स्वदेश के, हरियर आवास बनायब अपन मधेशके॥ देख वृकति…

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मैथिली कविता : जागुऊ मधेश।।

~गजेन्द्र गजुर~ निकाइल सबटा गौहमन कऽ बिख, किए क त शोणित मे दिए मधेश लिख, बान्हल हाथ कऽ टुट्ल न राइस, पैर भाइज तौँ कि फेरो त गेलु फाइस॥

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मैथिली कविता : वृद्ध–वृद्धा

~विनीत ठाकुर~ वृद्ध–वृद्धा थिक घरक बडेÞरी छथि समाजमे देव समान । सदा ओ सोचथि सभक हिक करथि जन–जनकेँ कल्याण ।। कौवा कुचरऽसँ पहिने उठिकऽ गावथि नित भोर पराती । टोल परोशक निन्नकेँ तोरैत जगावथि बेटा, पोती, नाती ।। पोछैत पसिना … Continue reading

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मैथली कविता : आन्हर केँ शहर मे

~विनीत ठाकुर~ ऐना केँ कि मोल आन्हर केँ शहर मे । भेल उन्टा मुँह सुन्टा अपने नजरि मे । ज्ञानक शुरमा लगाकऽ जे बजबैय गाल । व्यवहार में देखल ओकरो उहे ताल ।।

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मैथिली गजल : जोरजुलुमसँ जे ने झुकए से भाले लगए पिअरगर यौ

~धीरेन्द्र प्रेमर्षि~ जोरजुलुमसँ जे ने झुकए से भाले लगए पिअरगर यौ इन्द्रधनुषी एहि दुनियामे लाले लगए पिअरगर यौ ठोरे जँ सीयल रहतै तँ गुदुर–बुदुर की हेतै कपार! एहन मुर्दा शान्तिसँ तँ बबाले लगए पिअरगर यौ

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