Category Archives: थारू भाषी रचना

थारू भाषी मुक्तक : महजन्वक् ऋण चुकाब

~सत्यनारायण दहित~ प्रदेशसे आइतुँ डाई आब महजन्वक् ऋण चुकाब । लावा चोलिया गोनियाँ किने हसुलिया बजार जाब । बर्का बन्वम खर काटे बाबै आब जाई नै परहींन,

Posted in थारू मुक्तक | Tagged | Leave a comment

थारू भाषी कविता : आपन भाषाहे छातीसे लगुइयन्

~अनिल चौधरी~ आपन भाषाहे छातीसे लगुइयन्, आपन अङ्नाहे देउना-बेब्री से सजुइयन्, कौन गल्लीमे हेराइल बटो, कौन कोन्टीमे खुस्टल बटो, दिन महिना बरस बीत गैल्, अब ते तोहार पहिचान फेन मेट गैल् /1/

Posted in थारू कविता | Tagged | Leave a comment

थारू भाषी समीक्षा : थारू भषासाहित्य और संस्कृतिके एक झलक

~अभितकुमार चौधरी~ पृष्ठभूमि खोला कताके ठण्ढा हावामे बहौत दिनसे कुदल चियै टुटल नै छै हमर बनेलहा घर सदियौँसे बैसल चियै । आपन मातृभषा, आपन परम्परागत रीतिरिवाज, बेग्ले किसिमके सांस्कृतिक पहचान, सामाजिक संरचना और लिखित या मौखिक इतिहास भेल जमा ५९ … Continue reading

Posted in थारू भाषी रचना, समीक्षा | Tagged | Leave a comment

थारू भाषी गजल : तुह कहाँ रहो ?

~सीता थारू ‘निश्छल’~ जिन्दगीमे दर्नैं चिठ्ठा, तुह कहाँ रहो ? तुहिनहे मँग्नु भिक्षा, तुह कहाँ रहो ? हातमे लैके बरमाला ओ सेंदुर–टीका घनि–घनि दर्नैं झिँका, तुह कहाँ रहो ?

Posted in थारू गजल | Tagged | Leave a comment

थारू भाषी मुक्तक : बञ्जरभूमि

~छविलाल कोपिला~ बिना कारण हमार वस्ती बगाजाइठ् ओस्ते यहाँ रातारात आगी लगाजाइठ् हेरो ! यी बञ्जरभूमि,

Posted in थारू मुक्तक | Tagged | Leave a comment

थारू भाषी कथा : कुवाँरी

~गुरुप्रसाद कुमाल ‘बुलबुल’~ ‘कुवाँरी…’ जाँच कोठमसे नर्स बलाइल् । नर्सक् बोलले कुवाँरीक ढेर घचिकके पटिस् लग्टिक अश्रा ओरागैलिस् । महिनावारी रुक्लक् ओरसे ऊ जचाई गैलरहे । ऊ आपन पाला अइलक ओरसे बलैलक् कोठम् गैल् । कुवाँरी कोठम् पुग्टी किल् नर्स … Continue reading

Posted in थारू कथा | Tagged | Leave a comment

थारू भाषी मुक्तक : ख्वाजल बाटु

~राम पछलदङग्याँ अनुरागि~ पह्रल लिखल निपतीत लाती ख्वाजल बाटु मनक पिर दुख बुझ्ना छाती ख्वाजल बाटु संघ मुना संघ जीना सहारा जिन्दगी भर

Posted in थारू मुक्तक | Tagged | Leave a comment

थारू भाषी कथा : झुक्का

~छविलाल कोपिला~ सावन भादोके महिना । धान कहुँ गाम्हँर रहे, ते कहुँ फुटके बाला झुले । यहोंर डिह्वामे मकै अर्रायल् रहे । जब मकै खैना भर्याली हुइल् । डह्गिक–डह्गिक चिरैं आइलग्लाँ ओ मकै खाके सन्त्वाइलग्लाँ । चिरैनके अखवारी करक लग … Continue reading

Posted in थारू कथा | Tagged | Leave a comment