भोजपुरी कथा : भिखारी

~वीरेन्द्र कानु~

सांझ के समय रहे, नया सिजनके लिचि आ आम बजारमे एक दु दिनसे खुबे आवे जेसे बजार मे अउरी दिनके तुलना मे तनी भिड जादा होजात रहे । हरिहर तरकारीसे त बजारे भरल रहे ।

एकजने साहेब बहादुर अपन पत्नीसंगे तर–तरकारी किने मे लागल रलन । एतनेमे एगो लङ्गड भिखमंगा उहा पहुचल आ भिख मागेलागल । उ रह रहके औरतसे कुछ पैसा देवेके आग्रह करत रहे । बाकि साहेब बहादुर के औरत मुह करवाईन बनाके मंहटिया देत रलिन ।

देखेमे उ त महिला बडि आधुनिक लागत रहे । आंख पर चश्मा आ केश लइका कट कटाके अपना के कुछ कम ना समझत रहे ।

उनकर मरद आम, लिची किनेमे व्यस्त रलन आ इ हेने होने ताकेमे व्यस्त रलिन तवले होने से एगो गाय आईल आ इनकर झोलामे हरिहर तरकारी देखके मुह लगादेलख । इ जोर से चिलइलिन आ झोरा छोडके अलग भाग गइलि ।

इ सब भिखमंगा से देखल ना गईल आ उ अपन बैसाखी से गाय के मार के भगा देलख आ चुपचाप कुछ दुर पर खडा होगइल ।

इ सब देखके लोग उ भिखमंगा के धन्यवाद देलख काहेकी उ गाय मरखाह रहे बाकि उ औरत के आंखमे तनको दया के भाव नारहे ।

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