~वीरेन्द्र कानु~
अइसन बा दियरी
कि
प्रकाश हि देवेला
सहेला लाखो दुःख
लेकिन
पेनि ना फुटेला
फेर
इ कइसन बा आदमी
जे सुख मे त हसेला
बाकि दुःख मे कोसेला
इ हे हवे जिन्दगी
मूर्ख
उठ, अउर तनी सोच
बिना दुःख के कभि सुख होई
बिना अवगुण के गुण होई
जे तरे करिया तात
के बाद सुन्दर
प्रकाशवान दिन
आवेला
ओहितरे तोरो दिन आई
तब तक
दुःख के सुख समझ के
सुख के दुःख समझ के
आंख मिचौली खेल ।