~अज्ञात~
भसावसन्तके फुलवारीमे,
फुलेवलाफुल नै छेकी ।
नय त हाट बजारमे बेचेवलान
सप्तरंगीके कुनु रंग छेकी ।
बरु यिटा त स्वस्थ्यमनके
स्वच्छआत्माके तरंग छेकी ।
येकर सवदकोसअध्ययन करलाकेवाद,
अथाह साहित्यके भनडार छेकी ।
भसामे कल्पविरिछलखान,
मगमगावेवला सुवास हेछी ।
हिर्दयके चोटसव हटावेवला,
येकरमे चोख विस्वास हेछी ।
दयाआर मायासे भरपुर,
येकर सपना साकार हेछी ।
अन्हारके भुरजा भुरजा करेवला,
मनि लखान उजत हेछी ।
वेह्यासै “थारु साहित्य” रचनाक्याके,
थारु भसाके बनामहान,
दुःख दरदसव दुर क्याके
येकर खातिर लग्यादहै जि–जान ।
(स्रोत : थारू ब्लग )