~माेती राम चाैधरी `रत्न´~
मुक्टक १
सुने सबका, काम करे अपन मन्का कठै ।
सुखमे हाई-हाई, डुःख अपन ठन्का कठै ।
मेलमिलापके जिन्गी, सबहे सहयाेग कर्टी,
नेपालीनके भाइचारा, डुनियाँ खन्का कठै ।
मुक्टक २
खाली हाट अाइल रही, खाली हाट जैबी।
अाङ्ग ढक्ना लुग्रा पुगी, ढेर रही माट जैबी ।
काम करे कालु कठाँ, मकै खाने भालु कटी,
मेहनटके कमारी मिठ रहठ,कु-के लाट पैबी ।
मुक्टक ३
उ नेपाल डाई चिल्लाइटी नाेचुवा पाके ।
सुपुत्रनसे खुल्लम-खुल्ला बेचुवा पाके ।
पस्छिउ किल्ला-कांगडा, पुरुवके टिस्टा,
बेहालीमे हेरी, डिनडेहारे ठेचुवा पाके ।
मुक्टक ४
डुटिया हेर्के जेउरा ढर्ना चलन चल्टी रहे ।
सड्डभर असट्यसे सट्यके जिट बल्टी रहे ।
राहरङ्गी- सहयाेग कर्टी, नाचगानमे रमैटी,
हमार ठारु समाज सक्कुनके मिट बन्टी रहे ।
मुक्टक ५
ढन सम्पटी नाहि तु असल नाउँ रोजो ।
ढनी गरिब समान मन्न टु गाउँ रोजो ।
प्रदुषण चारोतरफ सास फेर्ना कर्रा
स्वच्छ सान्ट हराभरा टु ठाउँ रोजो ।
– कैलारी गाउँपालिका वार्ड नं.५,
बैजपुर कैलाली
(स्रोत : रचनाकार स्वयंले ‘नयाँ रचना पठाउनुहोस्‘ बाट पठाईएको । )