~धीरेन्द्र प्रेमर्षि~
जिनगी अछि बड़ घिनाह नाक चुबैत पोटासन
सुड़कि–सुड़कि तैयो छी ढोबि रहल मोटासन!
पापक भुगताने लेल यदि लोक जनमैत अछि
कसने छी तखन किएक साँसकेँ नङोटासन?
अहिंसाक मन्त्र जपैत धर्म लेल वलि–प्रदान
ओझराएल अछि विचार भरदुलहीक झोँटासन
घरहिसँ खाइत छी, पर कनैत अगहनहिसँ
भरलहुमे गुड़कैत छी विन पेनीक लोटासन
धरती सुनरियाक गोर मुह इजोर करैत—
जिनगी अछि चमचमाइत चुनरीक गोटासन
– धीरेन्द्र प्रेमर्षि
‘पल्लव’ मैथिली साहित्यिक र ‘समाज’ मैथिली सामाजिकको सम्पादन
काठमाडौँ, नेपाल
२०६२/०६/२६
(स्रोत : रचनाकारको ब्लगबाट सभार)