थारू भाषी कथा : मनके द्वन्द्व

~माेती राम चाैधरी `रत्न´~

आज श्रीमान अप्न इसेवाके पैसासे रिचार्ज करल ओकर संघरियकमे जम्म सय रुपियाँ दारल । उ अपन संघरियक लाग अपन श्रीमतीके समुहमसे एक लाख पचास हजार भोजाहा रुपियाँ निकार देले रहे । ओहे रुपियाँमे किस्ता तिरक लाग संघरिया रुपियाँ पठा देले रहिस ओकर इसेवामे। ओहे इसेवामसे लकडाउनमे रिचार्ज नै मिल्लक ओहोरसे गाउँक मनै उहिसे मोबाईलमे पैसा दरवाइ अइथिस । ओहे रुपियाँक रिचार्ज करता । तर श्रीमान और श्रीमतीके झगरा होगिलिन ।

`औरेक पैसा सब ओरुवा दर्बो, नै दर्हो आब मोबाईल ओबाइलमे रुपियाँ।´

`नै ओराइ हो। ठिक बा तोहान खातामे दार देम ना पैसा।´

`हा दारो जल्दी। दारो जल्दी । नै टे ओरा जाइ रुपियाँ-उपिया।´

`बताउ ना खाता नम्बर।´

`071909056864483001´

`लेउ पाँच हजार केल दारम ना।´

`नै चुप्पे पुरै दारो।´

`नै यार पाँचलहजार केल ना´

`अह पुरै दारो। नै टे दर्बे नै करो।´ कति मोबाईलके स्क्रीन छुए अइठि, श्रीमान मोबाइल अन्ते भगाइठ । श्रीमती रिसाके चल जिठि । उ इसेवाके पासवर्ड दबाके हेरठ । पूरा हुइल देखैठिस। आब उ अपन श्रीमतीके मोबाइलमे म्यासेज आइल कि हेरठ। म्यासेज आइल देखठ ।

`तोहान खातामे गैगिल हो पाँच हजार रुपियाँ।´

ओकर श्रीमती कुछ नै बोल्ठी। चिमचाम आपन किटाब निकारके पर्हे भिरठी ।

अत्रेमे हुँकार श्रीमानके फाेन अाइठ।

`हेलाे हजुर कक्कु।´

अाेहरसे अावाज अाइठ, `कब अाइटाे टि.भि. बनाडेहे।´

´अाइटु काकु अाइटु।´ कटी फाेन गाझुमे ढर्टी। चलठ उ कक्कुनके घरेवर ।

उ घामे गराैवर टि. भी. बनैनामे ब्यस्ट बा। एक जहान उप्पर छाँन्हीमे चाैर्हैले बा ।

`एक िसग्नल नै अाइल हाे। अाैर उप्पर कराइ।´

`हुइल कि नै हाे।´ उप्पर छाँन्हीमसे ठाेरठाेर अावाज सुन मिलल।

`नै यार एक्काे सिग्नल नै देखाइल यार। अाैर उप्पर कराइ न यार।´

`लि लि अाब टे अाइल हुइ।´

`नै यार एक्काे परसेन्ट नै बर्हल यार।´

`छट्री उजारु का?´

`हा उजारी एक बार।´

`अभिन नै अाइल हाे।´

`लि अाब वहै दार देहटु हाे।´

`ठिक बा। रही दी। साइद उ ढेकुक्की बिगरल हुइ। अाब डिसहाेमवालाहे बलैबी। खै का बिगरल बा मै टे नै जानम।´

अट्रेमे मोबाइल टिनटिन बोलठ ओकर गोझुमे। उ निकारके हेराठ । म्यासेज आइल रहठ।

`मोर जब नै हो तबे तु महि जबफेन हेप्ठो ना….।´

उ म्यासेज पहरके सेक्टिकिल म्यासेज लिखठ।

`नो यार नत लाइक द्यात, इफ आइ हर्त यु देन सोरि यार माइ दियर।´

ओहर्से कुछ रेप्लाइ नै आइठ । फेन उ म्यासेज टाइप करठ ।

`लप यु लप यु लप यु।´

फेन कुछ रिप्लाइ नै आइठ । फेन उ म्यासेज लिखठ ।

`हुन्द्रेद पर्सेन्त नत लाइक द्यात,यु थिन्क लाइक द्यात ओन्लि, माइ दार्लिङ।´

फेन कुछ रिप्लाइ नै । उ आब ओहासे बिदाबारी लेके सरासर घरेवर चलल ।

उ घर पुगल । पालीमे बैठल अपन डाइहे बाेल्कारल अाैर सरासर कोन्तिमे गिल। ओकर श्रीमती चिमचाम कुर्सिमे बैठके पर्हतिस। दुई सय रुपियाँ जोन उ अपन श्रीमतीके मोबाइलके कभरमे दार देले रहे, उ पठरीमे ढरल बा। उ चिमाइल रुपियाँ उठाके सिर्हन्नी ढरल। अपन श्रीमतीके पन्जेसे अप्न ल्यापटप उठाइल चिमाइल आपन काम करे लागल। एक घचिक रहिके ओकर श्रीमती अपन किटाब उठाके बाहेर निकर जैठीस।

………..

दुई दिन बितगिल अभिन बोलिचाली नै हुइल हुइन। एकजाने बाहेर भन्सामे बतै कलेसे दोसर कोन्तिमे मोबाईल चलैती बताँ । मनेमने सोचताँ श्रीमान।

` का हुइटा यी? मोरसङ्गे छुटी छुटी बातेमे एकदम एहे तार। का थरुवा जन्नीमे फेन यी तोर यी मोर हुइठ का? का रुपियाँ नै कमैना जन्नी अस्ते सोच्ठै? थोर्चे बात नै मिल्ती किल तै महि हेप्ठे। तोर जाङगर नै हो कठे? एइसिन सोच्ना का ठिक हो? का जब नै रहल जन्नी मनैन कुछ कहिदेलेसे मोर जब नैहो तबे हेप्थे या यी तोर कमाइल रुपियाँ हो यी मोर कमाइल रुपियाँ हो कथै का? यदि कौनो श्रीमान रुपियाँ कमाके लान्के यी मोर कमाइल हो कहिके फेन श्रीमती फिर्ता करदिहिस टे उहीँ कसिन लगहिस। का श्रीमान ओ श्रीमतीके फेन तोर मोर कहिके झगरा हुइठ का? यदि ऐसिन हुइठ कलेसे का उ श्रीमानहे मानसिक तनाब नै हुइहिस का? का उ तेन्सनमे नै आइ का? ओसिन सोच्ना श्रीमतीहे का जवाब देहे सेकि उ? का ओकर मन नै रुइहिस का? जेकर लाग उ राटदिन मरमरके कमाइठ, उहे उहिहे आप्न नै मान्के पटक-पटक मोर जब नै हो तबे तु हेप्ठो कहहिस ते बिचारै कसिन लगहिस? का उ मरल जस्ते नै हुइ का? जे सोचठ रुपियाँ कुछ फेन नै हो, हो ते केबल हाठक मैल। सम्बन्ध, प्यार, माया नै सबथोक हो। उहिहे पैसाके कारण महि हेप्थो कहहिस ते कसिन लगहिस ना? ऐसिक हुइ कलेसे उ केकर लाग बाँची ? का ओकर मरल बराबर नै हुइलिस का? केकर लाग जिइ उ? जे उहीँ रुपियाँके मामलामे अलग करदेहतिस ते बाँकी चिजमे कसिक जीवन गुजारी? ओकर मरल ठिके बतिस…. ओकर मरल ठिके बतिस. ……… मरल….. मरल…..´ अस्ते-अस्ते ओकर मनमे बात खेल्तिस। उहीँ उकुसमुकुस लग्थिस। का करु का नै करु कति उत्मुताइठ । अपन सास फेर्ना फेन कर्रा हुइ लग्ठिस । सास उत्मुटावन लग्ठिस । छटपटाइठ एक्केली सुनसान कोन्तिमे । एक टकले हेरठ पन्खा घुमठ। उ एक्के घचिक घुम्र्या जाइठ । कब बेहाेस हुइठ उहि पत्ते नै चलठीस ।

(खटोल्ना सन्युक्त अडियाे बत्कोही संग्रह २०७७मे संग्रहित बत्कोही)

– कैलारी गाउँपालिका वार्ड नं.५,
बैजपुर कैलाली

(स्रोत : रचनाकार स्वयंले ‘नयाँ रचना पठाउनुहोस्‘ बाट पठाईएको । )

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