मैथिली गजल : मस्त भेल छै

~धीरेन्द्र प्रेमर्षि~

राजनीति खुब मस्त भेल छै
सोनित सभसँ सस्त भेल छै

जन-जनके जी-जान उड़ाबऽ
सेना-पुलिसक गश्त भेल छै

सरकारी बिक्खक खेतीसँ—
लहालोट गिरहस्थ भेल छै

के अछि मुनने मुस्कीक मोन्हि
सभटा आइ खुलस्त भेल छै

कहियाधरि होइ मलहम-पट्टी
हिम्मति सबहक पस्त भेल छै

कोन विजयलए खेल ई खुनियाँ
जइमे सभक सिकस्त भेल छै

ढाही लैत अछि सँढ़हा-पाड़ा
लेरू-बच्छा त्रस्त भेल छै

कुर्सीक मजगूतीलए लाशक
सगरो बन्दोबस्त भेल छै

उगैत भोरकेँ अनदेखल कऽ
झुट्ठे लोक तटस्थ भेल छै

२०६१ साल कातिक ७ गते लिखाएल ई गजल फेर सान्दर्भिक होइत देखि एहिठाम परसि रहल छी।

– धीरेन्द्र प्रेमर्षि
‘पल्लव’ मैथिली साहित्यिक र ‘समाज’ मैथिली सामाजिकको सम्पादन
नेपाल

(स्रोत : रचनाकारको ब्लगबाट सभार)

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