अनूदित थारू भाषी कथा : चरित्र

~डा. टीकाराम पोखरेल~
अनुवाद : माेती राम चाैधरी `रत्न´

‘तै छिनारी बटे ।’ विराज जोरसे बाेलल । ‘का ? का िछनार काम करनु मै ?’ ढिरेसे पुछ्ली सानु ।‘और मुहेमुहे लागटे?’ विराज आपन आवाज बर्हाइल। ‘ढेर बोल्ले नै हु, पुछटु किल । मै किहिसे छिनार काम करले बटु ?’ सानु स्पष्टीकरण मग्ली । ‘ढेर ना बोल । महि रिस ना लगा आब । ढेर हुइटा आब।’ विराजके रिसके आगे सानु चुप लागल रही ।

विराज एक्केली बर्बराइ लागल–‘अफिसे समयमे अइना नैहाे, समयमे भात पकैना नै हाे । ना लुग्गामे परेस लगाइल हाे, ना घर सफा–सुग्गर हाे । मोबाइलमे केल कट्रा झुलल रना हाे ? के बा हँ ताेर मोबाइलमे झुलल रना स्पेशल मनैया ?’ ‘नाइ का कहटाे टु ? मै अफिसियल बाट करठु । पीडितहुकनके मुद्दाके विषयके पक्षसँगे छलफल करटु । टाेहान बाहेक के बा औरे माेर ?’ सानु अपन स्पष्टीकरण डेली ।

‘अभिन सदुइ बन्बे ? अफिसके काम टे अफिसमे रहठ जे । घरम आके केहका अफिसके काम ? डुनियाँके मनैनसँग गफ करटी हुइबे, और माेर आँखीमे ढुर झोक्बे । छिनारी जन्नि ।’ विराजके सक्कु रिस एक्केचाे पोखल। सानु कुछ नै बोल्लीन टर विराजके रिसक पारा अभिन नै झरलिस । उ बरबरैटी रहल । ‘दिनदिनै लुग्गा फेरल बा । नखरा पारे फेन कट्रा जानल हुइ ? किहु देखाइक लाग हर दिन लुग्गा फेरक पर्ना ? उफ् ! मै फेन कैसिन अभागी । संसारमे कउनाे लाैवन्डी नै रहलहस यैसिन लाैवन्डिक फेला परनु ।’ विराजके रिसके डिग्री और उप्पर चर्ह्ल । सानुक बोल्ना जाँगर नै चल्लीन। कट्रा डिन बोल्ना हाे एक डिन रलेसे बाेल्ना हाे । ऊ चुप लागल रही । विराज एक्केली गर्जटी रहे ।

…………….

सानु विगटके डिन सम्झठी । जाैन डिन विराज उहीहे पाइक लाग मरिहत्ते करे । सानु कलेज परही । विराज छुटसमुटि व्यापार करे । सानु कलेजके गनल लाैवन्डी रही । रूपमे होय या परहाइमे। मस्टरुवनके आँखीक पुटली । लाैवन्डा सँघरीयनके केन्द्रविन्दु ओ लाैवन्डी सँघरीयनके रिसके कारण । अनुहारमे केल नै हाेके व्यक्तित्वमे फेन हुँकान फरक चमक रहे । एक से एक लाैवन्डन सानुक लाग लोभाइठ टाैन सानुक व्यक्तित्वके अागे कोइ फेन प्रेम प्रस्ताव ढरना हिम्मत नै करीट ।

व्यापार करुइयनके डिमागमे जब्बे फेन फाइदा खोजठै। घाटाले व्यापार औरे जहानके गाेझुमे डारडेना और फाइदा जट्रा आपन गाेझु भर्ना व्यापारीको ढरम हो । कलेज जाइठ आइठ जब सानु विराजके नजरमे परी टब विराजके मनम सानु राज जमाइ। अपने पटे नै पाके सानु विराजके स्वप्नसुन्डरी हाेगील रही। व्यापारिक डिमाग विराज सानुक पिछा करे लागल। कुछ समय टे सानु विराजहे भाउ डेली, जस्टके कलेजमे हुँकार पाछे लग्ना औरे लवन्डनहे भाउ डि टाैन विराज नै छाेरल। । अन्टीममे नारी मन ना हो, ढिरेसे सानु पगल गिली । फलामजस्टे कठोर सानु नौनीजस्टे नरम हाे गिली । ढिरेसे विराजकेसँग लग्गु हुइ लग्ली । सानु विराजके हुइ लग्ली । व्यापारी मजा सामानमे हाट लगाके छाेरल ।

………………

सानु ओ विराजके रोमान्सके डुनियाँ अचम्म हुईठ । कहिट–‘जोरी रहे ट् सानु ओ विराजके जस्टे´ । परेउना ओ परेउनीहस।’ सानुक संघरीयन जरटी कहिट–‘सानुहे कत्रा माया करठ ना विराज ? कत्रा भाग्यमानी सानु। ओकर जस्टे लवण्डा पैटु टे प्रेम करटु?’

आदर्श प्रेमी–प्रेमिकाको नमुना रहिट विराज ओ सानुक जोरी। विराज सानुक लाग बजारमसे लाैव–लाैव आइल बहुट महङ्गा लग्गा किनके लानडेहठ। कहठ–‘टुहिनहे लाैव पहिरन सुहाइठ ।’ सानुहे लाैव चलल पहिरनमे ओत्रा रुचि नै रहिन टभु विराजके लाग लगाडि ऊ, खुसी हाेके।

डर्जनौं लवण्डन सानुक सुन्दरटामे लार चुहाईठ । सानु कबुकाल विराजहे कहि– ‘हेराे विराज ! उ आलोक फेन मही मन पराईठ । और अनिल फेन । और उ…..’ धेर लवण्डन सानुक पाछे लग्गेसे फेन सानु ओइनहे भाउ नैडेहल डेखक विराज कहे–‘टु कत्रा चरित्रवान् बटाे ना सानु । मै बाहेक काैना लवण्डकमे आँखी नै लगैठाे ।’ आपन प्रशंसामे सानु डङ्ग अुइठी ।

कबुकाल मुड चलल बेला विराज सानुहे जिस्कैटी कहे–‘विचरा उ अनिल, आलोक टुहिन समझके लार चुहैटी हुइही ना टाैन टु भर माेरसँगे मस्त । मै टाेहान डिलके रजुवा बन्नु सानु । टु माेर डिलकी रानी । हेराे विचरा उ अभागी लवण्डनके हालत । हाहाहाहा…..’सानु कम बोली। कुछ प्रत्युत्तर नै डी । केवल निर्डाेष हासी हाँसडी ।

………..

समय बित्ती गैल। कुलुवक पानी बहटी रहल । ढर्टी अपन गटीमे चल्टीरहल । जाेन्हीया ओ िडन अपन गटीमे नेङगल करल। विराज ओ सानुक आब लगभग डुई वर्षके प्रेमके सामाजिक सम्झौताके रूप धारण करल । संसारमे विपरीटलिङ्गी प्रेमके ‘क्लाइमेक्स’ भाेज टे हो । विराज ओ सानु फेन अपवाद हुई नै सेक्लै । उन्मुक्त प्रेम ढिरेसेे भाेगमे परिणत हाे सेकल । कसल लगनगाँठ।

भाेज पाछे सानुक नाउँमे कुछ विशेषण जोरगील । विशेषण केल नं ठपल जिम्मेवारी फेन ठपल । बन्ढन फेन और बलगर हाेके कसगील । सानु छाईमसे पटाेहियामे परिणत हाेगिली । जन्नी बनगिली ऊ । हुइना टे विराज फेन छोवासँगे डमडुवाके विशेषण ठपगिल, ठरुवा बनल विराज फेन । टाैन विराजकेमे बन्ढन नै ठपलिस। बन्ढन सानुक केल ठपगिल। विराजहे भाेज पाछे अपन लवाइ–ख्वाइमे फेन छाेरे परलिस तर सानुक भाेजपाछे मुन्टामे सेन्डुर ठपल, घेँचामे पाेटे, हाठमे चुरीया, सरीरमे पाइन्टके बडला साडी । यी सब ठपल कलेसे ठाेपारल ।

सृष्टिके निरन्तरता । कालान्तरमे ओइनके डुई सन्तान जन्मलै । वंस ठपल । समाजमे इज्जत आइल ।

आब विराजहे सानुक सरीरमे आकर्षण नै लगठिस । ओकर आकर्षण बालबच्चाके स्याहार–सुसार, घरक हेरचाह, विराजके चाकरी ओ घरव्यवहारके औरे काममे घर्षण हाेके डिनडिने घिसटी जाइटा । खियल सामानमे व्यापारीनके आँखी नै लागठ । व्यापारीनहे खियल सामान छाेरके, भरल ओ माेटाइल-पोटाइल लाैव–लाैव सामान खोजठ । पुरानामे मु बिगारठ, लाैव सामानमे आँखी लगाइठ । जत्रा–जत्रा सानुक सरीरमे बुढ्यौलीक संकेट डेखपरठ, ओत्रे–ओत्रे विराजके मन बाहेर संसारमे रमाइ लागठ । विराजहे घरवालीक संसारसे बाहरवालीक संसार मजा लागे लागल रहिस ।

पाछे टे विराज घरबाहेर ढेर समय बिटाइ लअगल। विराज डिनभर टासमे भुलठ । रातभर रमठ डिस्कोमे । डिनक जिवनसे फेन राटक जिवनमे विराजके मन टन्ठिस । लाैवण्डिनके नम्बर डिनडिने ओकर मोबाइलमे भरल करठिस । एक्के-एक्के घचिक रहिके लाैवन्डिनके फोनहरू अइटी रठिस । सानुक आघे ऊ कुछ लाज नै मानके लाैवन्डिसँग जिस्कठ फोनमे । कबुकाल विराज२–४ डिन बेपत्ता रहठ, घरम खबरे नै करठ । घन्टाै पाछे लाैव–लाैव मनैनसँग विराज बाट करठ तर केकससँग का बाट हुइटा कहिके सानुहे पत्ते नै रठिन । ढेर वास्ता फेन नै करठी उ ।

विराज कहाँ जाइठ, कहाेर जाइठ, सानुहे नै हूइन । सानु पुछ्ना अढिकार गुमासेक्ली आब । पति परमेश्वर कहाँ जइठै सानु पुछ्ना हैसियत नै हुइन आब ओ हिम्मट फेन नै हूइन । हिम्मत कसके पुछ्लेसे फेन विराजके प्रगटिके बाढक मानजिठी । उहिहे पोठी बासल आरोप लागठ । टबे निरीह बटी सानु । सानुक निरीहटामे विराज मस्ट बा । मन लग्गेसे घरे।आइठ । मन नै लग्लेसे हप्टाभर बाहेर बैठट, बेखबर हाेके । ‘अभिनसम भाट नै पाकल ?’ विराज रिसैटी भन्सामे पेलठ ।

‘तयार हुइटा ।’ सानु कठि । ‘अत्रा भाट पकैना फेन अत्रा ढिला हँ ? मही ढिला हाेगील ।’ ऊ और रिसाइठ ।

‘मै फेन बिहान उठके एकघचि बैठल नै हु। काम करटीक करटी बटु । बिहानभर।लुग्गा ढुइनु, घर सफा करनु, बच्चनके लाग नास्टा बनैनु। करट-करट ढिला हाेगिल ।’ सानु स्पष्टीकरण डेठी।

‘अत्रा २–४ ठाे लुग्गा ढुइना ओ २ ठाे कोठा सफा करना अत्रा टाइम लागठ हँ ? का–का नन युद्धै लरके अतइल जस्टे ।’ आक्रोशमे बहरटी जाइठ विराज ।‘एक्कै घचिक टयार हाेगिल । आब खाइक लाग टयार हाजाउ।’ ढिरेसे कठी सानु ।

‘माेर मिटिङमे जैना बा एक्के घचिक कहिके हुइ? ठाेरचे कमनसेन्स नै हाे टाे ?’ जुत्ताक टुना कस्टी विराज और खरा उत्रल ।‘कहाँ का मिटिङ बा जे ? कइ बजे पुग्ना बा जे ? सानु प्रश्न कसठी ।कहाँ मिटिङ, का मिटिङ, कैसिन मिटिङ, यी सब टुहि का चाहल हँ ? ठारुनके मामलामे जन्नी हाठ डरना नै हाे कहिके टुहि कइचाे कहि सेक्नु ?’ विराज सानुक जाइलागठ ।‘हाेगिल ना कहाे तर खाना खाके जाउ, तयार हाेगिल । माेर फेन खाना खाके अफिस जैना बा ।’ सानु विराजहे अनुरोढ करली।

‘ताेर जस्टे जाैन बेला पुग्ना अफिस जस्टे हो का माेर मिटिङ । माेर टे ठीक समयमे सुरु हुइना मिटिङ हो । टाल ना बेटाल के बाट करठे । आब खा टाेर भाट अपनेहे । मै गइनु ।’ विराज टीनफिनाइल ।

विराज नेङ्गल । सानु वाल्ल परली । कुछ बोले।नै सेक्ली । केवाँरडगर बाहेर निक्रल ओ विराज अपन मोटरसाइकल स्टार्ट करल । रिसको झोकमे एकचाे एक्सिलेटर घुमाके घुइँघुइँइँ पारल । और।घुमके कहाेरे नै हेरके बाइक डाैराइल । मानाे, काैनाे अस्पतालमे इमर्जेन्सीमे मरे लागल मनैयक उपचारके लाग डाैरटा ।

ठाेरचे ढुर चोकमे विराजके मनकी लाैवपरी उहीहे असरा लाग टहिस । आझुक मिटिङपरी । विराज परीक आघे ब्रेक लगाइल । टक्क मोटरसाइकल रोकल । परी ओकर।बाइकके पाछे। बैठलिस ।

‘कत्रा ढिला करलाे डार्लिङ ? आढा घन्टासे ढेर असरा लग्नु।। गाेरा बठागिल ।’ मिटिङपरी हल्का गुनासो करली ।‘ना रिसाऊ ना प्रिया । घरे बड्डी आज ठाेरचे र्‍याक करडेहल का ।’ विराज नरम िबलगल ।

‘हाेगिल, हाेगिल । ढेर।स्पष्टीकरण डेहे नै परी । टाेहान अधिकारकर्मी कहना थोत्री बड्डीहे।मै मजक चिन्ह्ले बटु । लेउ चलाे आब ।’ परी ठाेर-ठाेर घुर्कीक भाषामे कली ।

विराज एस्लिेटर घुमाइल । बाइक और रफ्तारमा कुडाइल। डुर, और डेर, और डुर …… ।

अफिसके काममे व्यस्ट बटी सानु। हुँकार। मजक बोल्ना फुर्सड फेन नै हुइन । टिनीनीनीनी….. टिनीनीनीनी….. टिनिनीनी…… । सानुक मोबाइलके घन्टी बजल । ३–४ घन्टी बजलपाछे काम छाेरके मोबाइल उठाके स्क्रिनमे हेरली । विराजके नम्बर देख्ली । ‘हल्लो’ ‘मोबाइल उठैना काहे ढिला ? टै केकरसँग बटे?’ ‘कहाँ ककरसँग रहम मै, अफिसमे बटु। अफिसमे काम करटु।’

‘काहे अत्रन ढिला उठैले टे मोबाइल । कहाेरे टै उ।क्याम्पस पर्हेबेस टुहि मन परैना लवन्डनके सँगे नै बटे ?’

सानु कुछ नै बाेल्ली । बोले पैलेसे पो बोल्ना । हूइल बाट सुन्ना रलेसे पो स्पष्टीकरण डेना । सुन्टी रठी सानु ।‘अँ, सुनाे। आजकाल टै अफिससे घुमना फेन ढिलो करटे । समयमे घर नै पुग्ना मनैन का कठै पटा बा हँ ? चरित्रहीन कठै चरित्रहीन । तबे अफिसके काम अफिस समयमे करिस ओ समयमे घर पुग्ना हाे। चरित्रहीन काम नै करना मजक बुझिस् ना ?’सानुक ठे यकर काैनाे उत्तर नै हुइन । टबे सानु कुछ।नै।बोल्लीन। सब्दविहीन सुन्टीरली । उहरसे विराज फत्फटैइटी रहल। विराजके पाश्र्वमा एकठाे नारी स्वर सुनमिलल–‘ह्या कैसिन टु फेन । का थोत्री बड्डीकसँग बाट करटाे मै यहाँ हुँइटी हुँइटी। हलुवामे बालु ना मिलाउ ना विराज । टाेहान ठाेत्री बड्डी के लैजाइ यार ।’

‘हो नि माेर हलुवा, तर का करबाे बालुहे पनि ठेगानमे टे ढारे परल जे । डन्ट माइन्ड माई स्वीटहार्ट डार्लिङ ।’ विराजके मिटिङपरीक गाल चिमोठल । मिटिङपरी दङ्ग परली ।‘इन्ज्वेय योर सेल्फ विथ मि माई डियर विराज ।’ मिटिङपरी पल्टटी विराजके काेखमे सुटली । विराज ओ परीक रासलीलाक यी सब आवाज मोबाइलमे सानु सुन्टी रही । सानुहे असह्य हुइल । ऊ मोबाइल काटके अफिससे अनगुट्टी निक्र्ली। सरासर घरे गइली । बच्चा स्कुलसे घुमल नै रहिट। केवाँर खोलके सरासर भितर पैठ्ली ।

और केवाँर बन्ड करके बरबरा-बरबरा रुइटी कहे लग्ली–‘हो विराज, मै छिनार जन्नी।हुँ । काहेकी टु महिलान फेरलजस्टे मै पुरुष फेरे नै सेक्नु । डर्जनौंसँग प्रेमके नाटक करके खेलौना बनाइ नै सेक्नु । मै पुरुषसँग खेलके समय कटैनाक बडला पुरुषनके प्रताडिट महिलाहे पुरुषके हुंकारविरुद्ध आवाज उठैना अभिप्रेरित करनु । हो, मै सामाजिक अभियन्ता हाेके महिला हिंसाविरुद्ध चेतना डेठु । पीडिट महिलनके पक्षमे लरठु । ओत्रा करके फेन मै अपन घर–व्यवहार ओ बालबच्चन परहैटी बटु ओ टुहिनहे परमेश्वर मानके बैठल बटु । अट्रा करना मनै चरित्रहीन नै हाेके का हुइही ? हो विराज, मै संसारके सबसे भारी चरित्रहीन महिला हुँ …..।’ सानु बरबरैटी रुइटी रली, रूइटी रली।

सानुक आवाज कोठाभर गुञ्जरल, तर बाहेर कहाेराे नै निक्रल । सरकमे मोटर चल्टी रहे, मनै नेङ्गटी रहिट । जाेन्ह्या, डिन और पृथ्वीक गटिमे काैनाे परिवर्तन आइल नै हाे । मानाे, यी ढर्तीम कुछ हुइल नै हाे । सानु नि:सब्द बटी । विराजके मिटिङ चल्टी बा ।

– कैलारी गाउँपालिका वार्ड नं.५,
बैजपुर कैलाली

(स्रोत : रचनाकार स्वयंले ‘नयाँ रचना पठाउनुहोस्‘ बाट पठाईएको । )

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