बज्जिका कविता : समयके पुकार

~सुनिल प्रसाद यादव~

उठ तु अब अठ
कथि जिअई छे, एगो
जिन्दा लाशके जईसन
एसे त मरले अच्छा हऊ
अपना माटीके लेल
कमाएल,खाएल,पिअल आ सुतल
हि जिन्गी न हई
आन,शान आ इज्जतसे
जिअल जिन्गी हई
दोसरा के लेल न सहि,त
अपना लेल उठ
अपना लेल न सहि त
अपना बालबच्चाके लेल उठ
मगर जल्दी उठ
अपन झुकल सरके
उठावे खातिर उठ
अपना आपके दुनियामे
चिन्हावे के लेल उठ
बर्षोसे इ गाँव घर
तोहरे इन्तजारमे हऊ
एकराके अगाडी बढावे के लेल उठ
निरङकुशता आ अहङकारवादी सबके
भगावे के लेल उठ
उठ तु अब उठ
जहवा छे जउना हालमे छे
उहवासे ओइसहिए उठ
अपन घर,परिवारसे कएल वादा
निभावेके लेल उठ
अपन गाँव घरमे,खुशिया
लेआवे खातीर उठ
अपन सपना सजावे खातिर उठ
उठ तु अब उठ
मगर जल्दी उठ॥

-सुनिल प्रसाद यादव
(सखुअवा, रौतहट)

(स्रोत : रचनाकार स्वयंले ‘Kritisangraha@gmail.com‘ मा पठाईएको । )

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