~उमेश सामिप्य कान्छा~
मनमा कसैको हित रहेन अब …
देशकै हारमा जित रहेन अब …
बलेरै राजनिती दनदनी मुटुमा …
छाती सेलाउने शीत रहेन अब …
विकाश रहेन शान्ति शत्रु बन्दा …
सन्तुष्टि कसैको मित रहेन अब …
तानातान लुछाचुँड सधैँ त्यही खबर …
मेल मिलाप पनि रित रहेन अब …
(स्रोत : रचनाकारको ब्लगबाट सभार)