~छविलाल कोपिला~
‘अई ! ऊ लवन्डा हेरो कैसे–कैसे करटा ?’
‘अई ! के हो ?’
‘के रही, सझ्लान बर्किक छुट्की दुलरुवा छावा हुइन्, उहे हरबरिया, के रही ।’
‘यी, दबवा पैनाहस्, यकर दाई–बाबा कुल नै हेर्ठुइस् कि का ?’
‘हेर्हिस् नै, नै देख्ठो दाई ओत्ठहें ठिल्कल् हेर्टिस् ।’
‘ते दाई कुल कुछ नै कठिस् कि का ?’
‘कहिहिस्, यी दुलरुवा छावइहे । यिहिहे क्यो कुछ कहट् किल दाई सुन्हिस् ते ठेठ्की झराइ लग्ठिस् उल्टे ।’
‘कैसिके ते, यी लवन्डा दबवा पैनाहस्, जेकर सइकिल आइठ् छेँके जाइठ् ।’
हरबरिया ५ बर्षक् लवन्डा हो । ऊ आपन दाई–बाबक् महा छिह्लाइल्, ऊ चाहे जौन मेरके काम करी दाइ–बाबा कुछ प्रवाह नै । एक ते ऊ छोट्हीसे हरब्वङ्ग रहे । दाइ–बाबा छिह्ल्वइलक् ओरसे ऊ आउर हरब्वङ्ग–हरब्वङ्ग काम करक् सिख लेहल् । ओकर एकठो दिदी चम्फी बटिस् । ऊ महा घैखर, घरक काम खोब मनलगाके करठ् । सक्हुनसे मजासे बोलठ् लकिन ओकर दाई कमलरियाहस् कैले रठिस् ।
जब हरबरियक घरक डग्रा सोझ कोई मनै जैंहीं ते कबो ढेला बगाइठ्, घनु धूर झ्वँक् देहठ् । कबो का मन हुइहिस ते गोबर, हिला, घिनाहुन–फुहर पानी छिट देहठ् । उहेसे ऊ गल्लीमे नेगुइयन परेशान रठाँ । सइकिल, गारी–मोटर आई ते ऊ डग्गर छेंके पुगठ् । यी सक्कु देख्टी–देख्टी फेन हरबरियक दाइ–बाबा कब्बो डोबे–ओबे नै जैठाँ । ऊ आपन मन्का करठ् ।
कोइ लवन्डैहे कुछ कैदिहिस् ते ओकर दाई आगी झ्वँके लग्ठिस् । उहेसे गाउँक मनै फेन चुपाइल् रठाँ ।
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स्कूलमे मध्यन्टी हुइल टे सक्कु लर्का आपन–आपन मिझ्नी लेले बाहेर निकरलाँ । कोही डँरवाँ ओर खेले निकरलाँ । कोइ कहोंर–कोइ कहाेंर, सक्कु कोठा खाली हुइल् अक्के घचिम् । हरबरिया आपन नन्लक मिझ्नी अन्गुट्टहीं खाके ओर्वा रख्ले रहे । ऊ आपन नानल् कौनो चाज कुहीहे खाइक् नै खेहठ्, अक्केली खाइठ् औरे जाने नन्लक खैना नैदिहिस् ते ऊ झगडा करे लागठ् ओ अँछोरे फेन लागठ् । यिहे बान देख्के कोइ फेन खाइक, खेलक नै मिलैठिस् । खेलमे कबो हटी त फेन घेँघाई लागठ् । उहेसे यिहीहे कोइ फेन नै मिलैठिस् ।
आधा घण्टक् छुट्टीमे सक्कु जाने आपन–आपन खेलमे दँटल् बाँ । आझ सक्कु जाने आपन–आपन जोरिया पुगा दरलक् ओरसे हरबरिया अक्केही हुगैल् । ऊ यहोंर–ओहाेंर गैल् कोइ नै मिलैलिस् । भोह्¥याइल् एक घचिक लर्कनके खेल बैठ्के हेरल् ओ फेन उठ्के कोइ मिलैठाँ कि कैह्के दोसर बगाल ओर सोझ्रल् ।
यहोंर हरबरियक् कक्षम् पह्रना खुर्बट्नी, फग्नी, चेंचवा ओ बुझ्ना आपन घरेसे नन्लक खिरा, लन्गी, निमुवाँ चारुजाने मिलके खैलाँ ओ स्कूलिक डँरवक् एक कोनवाँपर टिलो खेले भिंरल् बटाँ । चारु जाने कत्र मजासे मिलके टिलो खेल्टटाँ । हरबरिया ओइनहे देखल् ओ सोंचल् यइने महिहे मिलैहीं, दौर्टी आइल् ओ ‘लेऊ रे मैं कल्डुङ्गवा ।’
उहीहे आइट् देख्के चेंचवा ‘लेउ यी गड्हाहे नै मिलाब ।’
सक्कु जाने ‘हाँ नै का यी कोर्हिया झगडाकिल खेलठ्, नै मिलैना हो ।’
हरबरिया अइटीकिल ‘लेउ मैं यहोंर लागटँु, तीन ढाल लागम् ते टिलो मर्न पाला आई ।’
ओकर बाट् सुनके सक्कु जाने ‘नहीः तुँहिहे मिलैबे नै करब्, हम्रे मिलके खेल्टी ते ।’
‘सारन नै मिलैबो ते टिलो–उलो बगादेम् ।’ नै मिलैनाहस् कैलिस् ते ऊ टिलो बगैना नाउँ लेहे लागल् ।
ओकर बाट् सुनके चेंचवा ‘ले बगा ते ?’
हरबरिया उठल् फुरे टिलो उठाके बगादेहल् । बगाइबेर एकठो टिलो फग्नीक भाउँमे लग्लिस् ऊ ओत्ठहें चिल्लाई लागल् । टिलो बगैटीकिल् चेंचवा उहीहे बरे दूर तक रगेडल्, लकिन पक्रे भर नै सेकल् । यहोंर फग्नी दैया–बाबा कैटी चिल्लाइटहे । सक्कु जाने उहिहे फुस्लाई लग्लाँ ‘जिन रोउ फग्नु, काल्ह आइ ते सक्कु जाने मिलके पिटब् ।’ फग्नी संघरियन सम्झाइटटाँ कैह्के रोइक् छोरल् लकिन बरे घचिक सुस्करल् । ओसिन ते हरबरिया काल्ह बुझ्नक झुलुवा चिंठ्के रुवइले रहे, परौं खुर्बट्नीक भुत्ला नक्नकवाके । चेंचवा ठनिक भारी हुइलक ओरसे उहीहे पिटे नै सेक्ले रहे लकिन एक दिन स्कूल आइबेर ओर झुलुवामे गोबर फचक् देले रहे, उहेसे उहिहे फेन रीस लागल् रहिस् । चारुजाने उहिसे सट्वा पैलक् ओरसे उहिहे सक्कु जाने मिलके एक दिन बद्ला लेना सल्लाह कैलाँ ओ घण्टी लग्लक ओरसे चारु जाने कोठा ओर लग्लाँ, हरबरियाभर डरके मरे आझ कोठामे फेन नै गैल् ।
दोसर दिन फेन मध्यन्टीमे सक्कु जाने आपन–आपन ठाउँमे खेले भिँरलाँ, चेंचवा, खुर्बुट्नी, फग्नी ओ बुझ्ना आपन ठाउँमे आझ फेन टिलो खेल्टी रहिंट् । हरबरिया ओइनहे खेलट् देख्के खेल्ना सौक लग्लिस् । रह¥याइलके मरे काल्हिक टिलो बगैलक् फेन बिस्रा दारल् । ऊ लुर्घस्–लुर्घस् ओइने ओर जाइ लागल् । यहोंर उहीहे आइट् देख्के चेंचवा ‘कोर्हिया आइटा आझ फेन लेउ आझ सक्कु जाने मिलके पिटी टब चेती नै ते अस्ते करल् करी ।’ सक्कु जाने ओकर बाटेमे हामी भरलाँ ।
ऊ अइटीकिल ‘अरेऊ ! महिहे फेन मिलाऊ ।’
चेंचवा ‘आ नरे ।’
चेंचवक बाट् सुनके उहिहे महा फोंही लग्लिस् ओ हस्ती ‘लेऊ मैं कल्डुङ्गवा ।’ कह्टी टिलो बनैलक ठाउँमे का पुगल् रहे, चेंचवा कस् पोकरी ओकर आँखीमे मारल्् । ऊ ओत्ठहें घुस्मुरके घिघियाई लागल् । बुझ्ना यिहे मौका हो कैह्के टँग्री पकरके घिंसियाई लागल्, खुर्बुट्नी ओकर भुत्ला पकरके नक्नकवाई लागल् । फग्नी हाँथक सुँइटीले सुँइट्–सुइट् गोरा ओ हाँथेम् धैदेहल् । यहोँर चेंचवा आपन बद्ला उतारक् लग गोबरक् छोटाले ओकरमे फचक् देहल् ओ मुहेंभर आँख–ओंख नै बिल्गैना मेर चबद् देहल् । बुझ्ना झुलुवा चिंठ्लक् सम्झल् ओ उहो ओकर झुलुवा कल्लर पकरके चीठ्के दुई छिम्मर पारदेहल् ओ लाते–लात् लगाके छोर देलाँ । हरबरिया ओत्ठहें घिघिया–घिघिया रोइ लागल् । यहोंर घण्टी लग्टीकिल सक्कु जाने कोठा ओर लग्लाँ ऊ ओत्ठहें रोइटी रैह्गैल् ।
यहोंर हरबरिया घरे पुगल् ते दाई देख्लिस् । झुलुवा चिँठल्, आँगेभर गोबरकिल, हाँथ–गोरामे सोम्ला परल् । रोइलक आँस गाल समसम दनियाल् रहिस् । अभिन ऊ सुस्कर्टी रहे । अइसिन हालत देख्के ओकर साँस छुट्गैलिस् । उहीहे का करु ? का नै करु हुगैलिस् । ऊ आपन रीस आपन छाई चम्फीकमे झोंके लागल् । ‘अरी ! लर्का–ओर्का नै हेर्थे कि का ? लर्कैहे अइसिके पिट्ले बटिस् ।’
चम्फी ओहोंर बोलल् ‘आपन छिह्लैला छावा दिनभ्र लर्कनसे झगडा खेल्टी रठिस् । स्कूल जाइटे लर्कनमे कबो धूर झ्वँकी, कबो हिला फच्की, कबो खेल्टी–खेल्टी टिलो बगाई जाई ते नै पिट्हिस् ? भल हो ।’ भलैया खवइलिस् उल्टे ।
‘ना बर्बरा नै तुहीं फेन झोंट्ना पकरके नक्नकवा देम्, यकर का अकिल् ? छोट् लर्का ते हुगैल् ।’
चम्फी आपन दाइक बाट् सुनक् नै चाहल्, ऊ आपन कामेम चल्गैल् दाइ बर्बराइल् कैलिस् ।
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सकारे खिदिया अँगना बहारे भिँरल् बा । ऊ गल्लीमे खेल्टा । सइकिल अइटीकिल् छेकठ्, घनु धूर झ्वँकठ् मनैनपर । दुई जाने ते उहिहे जोगैटी–जोगैटी ओत्ठहें घुस्मुरल् रहिंट् । खिदिया ओइनहे घुस्मुरट् देख्के हाँसल् बेन आपन छावइहे एक अँख्रा नै दोबल् । यहोंर आपन भैवाहे ओसिक करट् देख्के चम्फी ‘अरे ! हरब्वङ्गवा, का आपनसे भारी मनैनहे गिरैनाहस् कर्ठे ?’ अत्ना का बोल्ले रहे । खदिया ओहोंर टेँडुक काठीहस् चिर्चिराई लग्लिस् । ‘खेले दे ते का, तोर कठेक् कर्रा पर्टा । यहोंर बर्बराई आइटे, ओट्टी चल्जा ।’
छाइकहे गरियाइट् सुनके ओहोंर बाबा ‘अरी ! दोब्ना–ओब्ना हो कि, लर्कनहे ओस्टे गल्लिम् छोर्ले रनाँ हो ? छाई ठिके ते कहटा ।’
थरुवा फेन ओह्रे लाग्टा कैह्के सम्झल् काहुन् खिदिया, बस् उटे भूजा उल्रेहस् ‘तुहिनहे सहेरे पर्टा ? यहोंर बर्बराई आइटो, छोट् लर्का ते हुगैल् । चलि नै का करी, यहाँ मोरठन् ……………. । का–का हो बर्बराइ लागल् ।
आपन गोसिनियक् गारी सुनके ऊ हटल् गिद्धहस् एक पाँजर ओहट्गैल् चुपचाप ।
यहोंर दाइक् बाट् सुनके चम्फी फेन धेर बोलक नै चाहल् ओ ओत्ठेसे दूर चल्गैल् । ऊ हरबरिया ओस्टे करटी रहे । कुछबेर बेरमे एकठो सइकिल आइल् । हरबरियाहे झुकाइट्–झुकाइट् भट्भेरवा देहल् ओक्रेमे । अस्सा गिरल् हरबरिया मुहे–नाके रकत आइलग्लिस् । सइकिलिक टिल्लीमे अँटकके हाँथक अँगरी फेन मनके कुँच गैलिस् । ओत्ठहें दैया–बाबा हुगैलिस् । एक्के घचिक मनै फेन जुट्गैलाँ । चोट लगैलक् ओरसे सक्कु जाने सइकिल् चलुइयक गल्ती देखाइलग्लिस् । गल्लीमे नेंग्ना–घुम्ना मनैनहे चलैटी रहना हरबरियक गल्ती कोइ टिगाई नै सेकल् । सबके बल पाके दाई सइकिलहवइहे अब्बे मारुँ, तब्बे मारुँ करे लग्लिस् । विचरा ! सइकिलहवा फेन आपन गल्ती महसुस कैल् । सक्कु जाने चोट लगैलक् विरुवा–बाडी करक् ५ सय रुपिया टोक देलाँ । पैसा पाके हरबरियक दाई खुश हुगैलिस् । लर्का दोब्नाओर नैलागल्, हरबरिया अभिन ओस्टे बा ।
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आझ स्कूलीमे रजेल्टा सुनैना हुइल् बा । सक्कु जाने लर्का आपन बरस भरिक मेहनतके परिणाम सुने जाइटहिंट् । लर्का डगरे–डगरे कुद्गटी–छट्कटी स्कूल आइलाँ । चम्फीकसंगे हरबरिया फेन कुद्गटी स्कूल आइल् । चेंचवा, फग्नी, बुझ्ना ओ खुर्बुट्नी ओकरले पहिलेहें स्कूल पुगरख्ले रहिंट् । चम्फी ठनिक भारी रहे उहेसे ऊ ४ कक्षामे पह्रे । ओकर रजेल्टा भितामे टाँसल् रहिस् । ओकर नाउँ सबसे पहिले लिखल् रहिस्, ऊ कक्षा फष्ट हुइल रहे । एक दुई कक्षक लर्कनकेभर मस्टरवन् सुनैलाँ । सुनाइबेर चेंचवा, खुर्बुट्नी, फग्नी, बुझ्ना पास कैह्के सुनैलाँ । हरबरियक नाउँ नै अइलिस् । ऊ महाध्यान धैके सुनटेहे, मास्टर कब मोर नाउँ सुनैहीं कैह्के सोचे लकिन सक्हुनके नाउँ सुनाइट् सम ओकर नाउँ नै अइलिस् । ऊ सम्झल् मास्टर मोर नाउँ कहक् छुटादेलाँ ओ चिल्लाइल् ‘मस्टर मोर नाउँ नै आइल् ।’
सक्कु लर्का उहीहे हेर्टी हाँसे लग्लिस् लकिन का करे हँसलाँ ऊ कौनो मतलब नै कैल् । जब मास्टर ‘हरबारी तुँ ते फेल हुगैलो ।’ कैह्के कलिस् । ऊ धेबर बिच्कैटी ओत्ठेंहें रोइलागल् । अभिन सक्कु जाने थोपरी मारके हाँस्देलिस् । उहिहे अभिन भोहर लग्लिस् । ऊ घर्फरा–घर्फरा रोइलागल् । पाछे ओर दिदी चम्फी सुफ्लाके घरे नन्लिस् ।
यहोंर ओकर दाई खिदिया यी बात सुन्लिस् ते मस्टरवनहे सराप–सराप गरियाइल् लेकिन कब्बो नै सम्झल् कि मोर लर्का स्कूल जाके कब्बो कक्षामे पह्रठ् कि नै ? सक्हुनसे मिलके बैठठ् कि ? मोर छावा कैसिन बा ? कैह्के । जब हरबरिया स्कूल जाए ते धुपौरापरसे कुदुक–कुदुक लहाई जैना, बिजलीक खम्हाँपर चौंहरके घिँरघिरिया खेल्ना, सडकेम् मोटर छेँक्ना, ढुङ्गा लब्दैना, आपनसे छोट लर्कनहे पिट्ना ओ एकदम भाग–भाग घरे अइना करे । ओकर अइसिन बान देख्के स्कुलिक मास्टरलोग फेन ओकर दाइक् ठन कैयौंबेर तुहिनके लर्का बद्मसै करठ् ठनिक सुग्घरके सहेर्हाे कहेबेर, ‘छोट लर्का ते हुगैल्, भारी हुइटे अकिल् नैअइहिस् कि का सम्झाई अइठो’ कैह्के दम्काके पठाए ।
चेंचवा दौरट् अफिस कोठामे आइल् । ‘सर ! हरबरियइहे मोटर दाबदेलिस् ।’
मास्टर दहपटल् ‘कहाँ रे !’
‘सडकमे सर !’
‘चुक्–चुक्, यी लवन्डा कहिया नै से दबवा पैनाहस् करे । आझ ….. ।’
सक्कु जाने सडक ओर हेरे गैलाँ । सडकमे मनै गजुगज रहिंट् । हरबरिया रक्तेरोहुन रहे । एक घचिक फक्कर–फक्कर साँस फेरल् । बाँकी ऊ सदा दिनिक लग चलागैल् यी दुनियाँ छोरके । हरबरियक दाई खदिया उहिहे कोनामे लेले रोइटिस् । जब मास्टर ओहाँ पुग्लाँ ते खिदिया हेरल् । ओकर हेराइमे पश्तोके भाव झल्कटहिस् । ऊ मास्टरहे धेरबेर ते हेरे नैसेकल् लकिन एक हँख्रा बोलल् ‘मस्टरवा भैया, मोरे पर्साडे यी लर्कक अइसिन कर्नी हुगैलिस् ।’ ऊ फेन लोट्–लोट् ओत्ठहें रोइ लागल् । मास्टरके आँखिम्से फेन आँख गिर्लिन् । गाउँक मनै हरबरियक मौतमे चुक्चुकैलाँ । खिदिया आपन दुलारु छावा सम्झठ् । नै मजा काममे फेन कब्बो रोकछेक नै कैके छावा छिह्लैलक फेन सम्झठ् ओ जिन्गीभर पश्तैटी रहठ्, पश्तैटी रहठ् ।
लमही नगरपालिका–६ उत्तर मजगाउँ, देउखर
(लेखक–लावा डग्गर त्रैमासिक पत्रिकाके प्रधान सम्पादक हुँइट्)
-clkopila17@gmail.com
(स्रोत : हिरगर साहित्यिक बगाल)