~कृष्णकला वनेम ‘करिना’~
आई दियौ मायाँ लिई बैशाकको हुरी भई
छार्इ दियौ आँखा भर रिंगीचंगी सपना भई
पहाड तिमी वनि देउ हिउँ वनि छोपी दिन्छु
किनार भई साथ देउ सागर वनि चुमी दिन्छु
वजाई दियौ वासुरी मन छुने धुन भई
छार्इ दियौ आँखा भर रिंगीचंगी सपना भई
वषन्त तिमी वनि देउ फूल वनि फूलि दिन्छु
रात भई साथ देउ जुन भई चम्कि दिन्छु
वहि दियौ सीतल मनमा विहानीको पवन भई
छार्इ दियौ आँखा भर रिंगीचंगी सपना भई
(स्रोत : कविता कुसुम)