~प्रमोद कुमार पाण्डे~
जेहिं काटत दुख होय, निशिनायक नींद हरन । करहु अनुग्रह सोई , करन देउ आराम पूरन ।।
रक्षणहीन तन जानिके, सुमिरौ नरक कुमार । भनभन भनभन करिके प्रभु ,हरहु न नींद हमार ।।
जय मसकपति विष गुण सागर । जय रात पति लोग जगावन ।।
नाला–दूत अतुलित बल धामा । कुडा–पुत्र मच्छर है नामा ।।
महावीर विक्रम रण जंगी । सुमति निवारी कुमति के संगी ।।
भूरा वरण विराज तनेशा । पंख रहे दुई मुख दुई केशा ।।
हस्त कृपाण न सुई विराजै । डैना फैलाय तन उपर छाजै ।।
नाला और कूडा–कर्कट नंदन । तेज प्रताप सब लोग करे क्रंदन ।।
विद्याहीन अगुणी पर चातुर । रक्त चुसन करने को आतुर ।।
प्रभू चरित्र सुनिबे को रसिया । धनी गरीब डर सोवत रतिया ।।
सुक्ष्म रुप पर कार्य बडावा । विकट दंश तन छाल जरावा ।।
भीमकाय खर्रांटत रह सोवा । तव डंक पाई बाप–बाप करि रोवा ।।
बहुरि लोग बाजार मे जावैं । मच्छरदानी चहू‘ ओर लगावैं ।।
तव प्रवेश रोक पावे न कोई । समुझी न सकैं तव दाव जब सोई ।।
तव दुख चुहा सह नही पावै । तुरत मच्छरदानी काट के खावै ।।
तुम अपकार यात्रीन्ह के किन्हा । डंकमारि सौगात मलेरिया दीन्हा ।।
भीषण गर्मी मे जाड सतावै । कम्बल रजाई शरीर पर थाक लगावै ।।
गी्रष्म ऋतु को लागै लाज । मानो पुत्री ने छिन लियो ताज ।।
मादा अनोफिल की यह करतुत । डॉक्टर वैद्य भी माने अदभूत ।।
हारी थाकी एंटीबायोटिक म‘गावै । लहसून तेल से मालिश करवावैं ।।
देखि मच्छरकुल की यह लीला बचवन के पैंट होत है गीला ।।
मच्छरकुल की यह सनातन रीति । डेंगू मलेरिया से है अति प्रीति ।।
डेंगू से होवे जब मरीज बेहाल । प्लेटलेटस का होत है खस्ताहाल ।।
खून का लोथडा बन नही पावै । अंग अंग से निकल बाहर आवै ।।
खोजत खोजत पपीता पावै । गार गार के रस पीलवावै ।।
जल्दी मे डॉक्टर को नही दिखवावै । तुरंत हीं राम नाम सत्य हो जावै ।।
लावै रोग बढावै पीरा । डोलै मति चाहे हों मतिधीरा ।।
नरक तनय संकट करन , अमंगल मूरतिमय रुप ।
डेंगू मलेरिया रोग सहित ,अलग बसहू असुरभूप ।।
(स्रोत : रचनाकारको फेसबुकबाट सभार )