(१) शान्ति आ सुव्यवस्थाकेँ अस्त्र बनेलिही
केलही, बहुत केलही
सभकऽ मनमनमे ढोल बजेलिही
जीवनमे बारम्बार भूकम्प आनलिही
सडक गरमेलही, निद्रा उडेलही
सपना बाटलिही, अस्थिर भविष्य देलही
कमै चेतना दैक ललिपप चटवैत
तन, मन, धन लेलही,
कोनकोनसँ समर्थन भेटलिही
मुर्दा शान्तिक रट लगेलिही
आ, एखन सल्गिपर सुतेलही ।
–हम तन्द्रासँ संसारमे एलियै त
ओ कतौ नहीं छल,
तखन हम खूब ताकलौँ
अखनौ तक ताकिते छी ।
हँ, अहाँ लग नुकायल कि !
देखदिय, ताकदिय, पत्ता लगादिय
कहीँ दक्षिण कऽ बाघ चोराकऽ लगेल कि !
कहीँ उत्तर कऽ भालु आबिकऽ लगेल कि !
सर्मसँ कतौ चैल गेल कि !
हँ, ओकरा आबसँ पहिले
हमरा, हम भकऽ चाही
हमरा, हम हेवाक चाही
ई जीवनयुद्धकऽ मैदानमे
आदिमकालसँ कसरत करैत छी ।
मुदा, आइयो तक
हम, हम नहीं भऽ सकल छी
हम युद्ध नहीं जित सकल छी ।
(२) अहाँ कह सकैत हेबै–
दुनियाँ बुझ सकैत हेतै–
स्मृतिमे रहैबलासभ
जीवनयुद्ध जितैबला जितारू थिक
दुनियाँकेँ बदलैक काजमे
जीवन समर्पण कऽक
अपनाकेँ स्मृतिक सूचिमे राखलक
आ, जनमनमे विराजमान भयलक ।
– नहि, भ्रम, पैघ भ्रम
फेर एकबेर भ्रमकऽ आँधी आनल गेल अछि
फेर एकबेर शब्दफसिल लगायल गेल अछि ।
कियाक, आइतक तऽ
मनुख्ख, मनुख्ख नहीं बन सकल,
हम, हम नहीं बन सकल छी
हम युद्ध नहीं जित सकल छी ।
(३) भीमसेन थापासभ जितने छथि तऽ ?
अब्राहम लिङ्कनसभ दासमोचन केने छथि तऽ ?
महात्मा गान्धीसभ मुस्कान बाटने छथि तऽ ?
नाहि, वर्तमानक एलबममे नहीं देखल जायत अछि ।
कियाकि, रणजङ्ग पाँडेसभ, नाथुराम गोडसेसभ
एखनो धरि हँसैत रहल अछि,
एखनो धरि एतऽकतो नाचिरहल अछि,
जोन विल्किस बुथसभ
एखनो धरि बन्दुक सोभ्mयाबैत अछि ।
कियाकि, भानुभक्तसभ , लक्ष्मीप्रसादसभ
नान्यदेवसभ, विद्यापतिसभ
सेक्सपियरसभ, होमरसभ
एखनो धरि विभक्त भऽक स्मृतिमे जिबते अछि ।
कियाकि, यज्ञबहादुर थापासभ, दुर्गानन्द झासभ
शुक्रराज शास्त्रीसभ, दिलिप चौधरीसभ
एतने मात्र नहि,
लखन थापासभ, रमेश महतोसभ
विभक्त भऽक स्मृतिमे जिबते अछि ।
धिक्कार अछि,
हमरा, अहाँकेँ आ ओकरा !
‘विद्यापत’, ‘बालुन’, ‘लाखे’ नाचक ठामपर
हम पाँडे, गोडसे, बुथ नाचसभ
देखैमे मख्ख आ मस्त भऽ रहल छी
विभक्त रेखा खिँचक
आपनाकेँ विजयी कहैत छी ।
तहि हम, हम नहीं भऽ सकल छी,
हम युद्ध नहीं जित सकल छी ।
(४) जितलैक आ जितरहल अछि–
भित्तक पेण्डुलमो,
प्राणदाता सूर्य कऽ किरणो,
स्मृतियोग्य नरनारी कऽ कर्मो,
मैथिली साहित्य परिषदो,
सगरमाथा साहित्य परिषदो ।
कियाकि, एखनो धरि देख रहल छी,
हमरा जयत गौडसभ ,
विद्यापतिय सांस्कारिक गीत गावि रहल अछि ।
हमरा धीरेन्द्र प्रेमर्षिसभ ,
जनताक ढुकढुकीकेँ सम्बोधन कऽ रहल अछि ।
हामरा नारायण गोपालसभ ,
‘आँखा छोपी नरोऊ’ कऽ रहल अछि ।
हमरा प्रिय कृष्ण सेन ‘इच्छुक’सभ ,
जनइच्छाकेँ कविता बना रहल अछि ।
एहन गौडसभ, एहन प्रेमर्षिसभ
एहन गोपालसभ, एहन इच्छुकसभ
हमर सभक छायाँ, पाखण्ड आ व्यक्तिमोहके कारण
आँगुर पर गनि सकैवला मात्र भऽक रहल अछि
आ, तैयो खबरदारी कऽ रहल अछि ।
धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष प्राप्तिक लेल कहि कऽ
आय काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद आ मात्सर्यसँगे
सम्बन्ध राखैत छी ।
ओही समय भेल एक विष्पोटने
आय हमरा हरारहल छी,
अहाँकेँ पराजयक विष पिला रहल अछि,
ओकरा असफलताक स्वाद अनुभूति करा रहल अछि !
अतः हम, हम नहीं भऽ सकल छी,
हम युद्ध नहीं जित सकल छी ।
तपेश्वरी–१, गल्फडिया, उदयपुर
मो. नं. ९८४२८२९२०६
(स्रोत : Majheri)