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गजल : कतै आवास छैन

~सनतकुमार वस्ती~ बसुँ भन्दा कतै आवास छैन ऊडूँ भन्छु खुला आकाश छैन अँध्यारोमै कटाएँ रात सारा उषाको खै ! अझै आभास छैन वसन्ती फूलमै अल्झिन्छ ज्यादा जवानीको कुनै विश्वास छैन

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