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बज्जिका कविता : समयके पुकार

~सुनिल प्रसाद यादव~ उठ तु अब अठ कथि जिअई छे, एगो जिन्दा लाशके जईसन एसे त मरले अच्छा हऊ अपना माटीके लेल कमाएल,खाएल,पिअल आ सुतल हि जिन्गी न हई

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