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बज्जिका गजल : भार सहजतई ऊ !

~सञ्जय साह मित्र~ विजयजी, तोहर भार सहजतई ऊ ! विजयजी, तोहर मार सहजतई ऊ ! तोहर डाँटसे ही लोग डेरालई खुब विजयजी, तोहर झार सहजतई ऊ !

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