मैथिली कविता : कोना सुतल छी विधाता ?

~सुधा मिश्र~

नहि डुबैक ककरो भरोसा
नहि टुटैक मोनक आशा
देखबियौ किछु तँ हे दाता
कोना सुतल छी विधाता ?

ककरो खीर परोसल थार
ककरो खायके नहि जोगार
ककरो कुकुरो छै अघायल
ककरो भुटका छै लटुवायल

ककरो सहरे सहर मकान
ककरो बैसहुके ने ठेकान
ककरो छतके लागल ढेरी
ककरो झोपरियोके छै फेरी

ककरो वस्त्र लेरहाति छै रस्ता
ककरो अँग उघार बिनु लत्ता
ककरो पक्का पहिरने पटोर
ककरो अँगा नहि एक जोर

ककरो तोसक छै ओछ्यान
ककरो गोनैरोके ने ओरियान
ककरो देह सँ पँचबर खाट
ककरो देहो जोगर ने आँट

ककरो अँग अँग छारल गहना
ककरो निपहु लाय ने अँगना
ककरो कुर्ताक टाँक छै म‍ोती
ककरो डारो नहि सउस धोती

ककरो रंग बिरंगक गाडी
ककरो पयरमे फोका भारी
ककरो चानीके पिकदानी
ककरो चानो नहि हे दानी

ककरो एश आरामक रात
ककरो खटिक होइछै परात
ककरो अन्न भरल बखारी
ककरो बनोने छहो भिखारी

जखन रहतो एहने शासन
तँ डोलतो तोहर सिंहासन
देखाक महिमा अपन अपार
लगाबह सभहक बेरा पार

सुधा मिश्र
जनकपुरधाम-४,धनुषा
प्रदेश न २,नेपाल

(स्रोत : रचनाकार स्वयंले ‘Kritisangraha@gmail.com‘ मा पठाईएको । )

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