मैथिली कविता : मासुमक कसुर कहिदिय हे विधाता

~सुधा मिश्र~

पिता जिनका कहल जाति छै अहिठाम साक्षात् भगवान
तहन ओ अपने जन्माओल सँ एना किए छथि अंजान?
बुझल नहि छनि जिनका कनियो ककरा कहैछै नाता?
तखन ओहन मानुष किए बनैछथि किनको जन्म दाता?

रहैत छथि अपन तृष्णा कुनो छन मिटाब लाय बेहाल
भौंरा बनिक नव फुल रसपान करलाय नेहाल
जाबे धरि नहि भुर्ण सिंचन तुही हमर मान परान
भेल जँ सिंचित तँ पलभरिमे भजाइ छथि विरान

कहाँ याद कनिको जिनका कत कत भेलैत स्खलन
कत कत भेल छैक ओहि लय नव युगक अवतरण
घुमालैछथि मुह देख अपने एेना हुबहु अपने रुप
तकरा कहल गेल अछि अत परमेश्वरक स्वरुप

इ हमरे लीलाक कर्मफल जनितो किछु पतित लोक
के फसे एहन झंझटमे रिश्ता पर लगाबथि रोक
नाम अपन दय गबैछथि अपन वीरताके गान
ठाँट सँ घुमि रहल धरती पर एहनो एहन बेमान

प्रेमक निशानी छलै मधुर मिलनक पवित्र फुल
जकरा दुनियाँ आतुर छै बनब पर बाटक धुल
जे ओकरा झापलकै तर अपन ममतारुपी आँचर
तकरा पर ओहो बरसेलखिन जग सँग धृणाके पाँथर

हरिक एक सुशील स्त्रीक अस्तित्व बना देलखिन सन्काहि
भटिक रहल छै बाटेघाटे एक जननी बनिक बताहि
बढिरहल छै ओकरा कोखिमे अहि सृष्टिक नवअंश
नहि जानि ओकर खुनमे घुलल ककर कुलक वंश

धरती अवतरण सँ पहिने उजरल छै माथ परक चार
कोनाक परिचर्जा करतै माय जे अपने छै लाचार
पिता रहिते बनल छै टुगर होशमे नहि छै माता
कि छकि ओहि मासुमक कसुर कहिदिय हे विधाता?

सुधा मिश्र
जनकपुरधाम-४,धनुषा
प्रदेश न २,नेपाल

(स्रोत : रचनाकार स्वयंले ‘Kritisangraha@gmail.com‘ मा पठाईएको । )

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