थारू भाषी कविता : निर्दयी गुलेता

~अमित पनहर चौधरी~

मधुर स्वर चिरैयन् के
मन चुराबेला बगैँचा वा मे
का पता गुलेता के
जीवन जुटलबा ई चिरैयन् मे।

खोतामे अण्डा, बच्चा वा छोर के
आइल चिरैयन् चरे गछिया मे
दया न लागल ई गुलेता के
मार गिरादेल चिरैयन्के लतिया मे

सेवल अण्डा अा बच्चावा के
का दोष रहल
घोरण्डा, अनाथ बनेके
पापी गुलेताके आँख न रहल
खा गैल निर्दोष के मास बनाके

किरा फटेँग से बचैलन वाली के
उब्जनी भैलक पापियानके खेत मे
घर परिवार टुटलक चिरैयन् के
का विधाता बनलवा ई दुनिया मे

नै खे बा मानवता गुलेता के
न जिएके सहसता बा दुनिया मे
छोरु सँगत पापी गुलेता के
जिउ बाली क के खेत के छातिया मे।।

🖋 अमित पनहर चौधरी

(स्रोत : रचनाकार स्वयंले ‘नयाँ रचना पठाउनुहोस्‘ बाट पठाईएको । )

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