मैथिली गजल : आधार बनल अछि

~धीरेन्द्र प्रेमर्षि~

आजुक जीत ने जीत हारि आधार बनल अछि
आजुक रीति कुरीति नीति आचार बनल अछि

सम्बन्धक संन्यास अपरिचित परिचित अछिए
बन्धन मुक्तिक गीत आइ साकार बनल अछि

पोसल स्वप्नक तार टूटि छिड़िआएल सगरो
आइ प्रीति दुर्नीति नियम निस्तार बनल अछि

काञ्चनप्रति आकृष्ट कर्म बाधित नेतृत्वक
जनसहयोग निरन्तर टूटल तार बनल अछि

प्रतिस्पर्धा अछि अर्थ-संकलन साँपक चकरी
लोक मनोरथ फोँक आइ अधिकार बनल अछि

सीझल सभ संयोग भोग सभ रोगक लक्षण
दिशाहीन जनसागर उमड़ल ज्वार बनल अछि

कीर्त्तनमे भऽ व्यस्त अपन सभ व्योँत बिसरलहुँ
देश बिकाएल, सेवा आइ सुतार बनल अछि

अपनहिमे हम लड़ी-मरी अनका लेखेँ की
मुखियाके मुह चाउर, यैह व्यापार बनल अछि

पल्लव वर्ष २ अंक ६ पूर्णांक १५ २०५१ चैत सँ

मैथिली साहित्यप्रेमीलोकनिकेँ ज्ञात हेतनि जे डेढ़ दशक पहिने हम ‘पल्लव’ नामसँ एकटा पत्रिका बाहर करैत रही। आइ जखन आदरणीय रमानन्द रेणुक देहान्तक खबरि सुनलहुँ तँ सहजहिँ पल्लवमे हुनकाद्वारा स्नेहपूर्वक पठाओल गेल रचनासभ मोन पड़ैत गेल। ओहि रचनासभमध्य गजल विशेषांकमे छपल हुनक गजल हुनकाप्रति श्रद्धाञ्जलि अर्पित करैत भावकसभक समक्ष प्रस्तुत कऽ रहल छी।

– धीरेन्द्र प्रेमर्षि
‘पल्लव’ मैथिली साहित्यिक र ‘समाज’ मैथिली सामाजिकको सम्पादन
काठमाडौँ, नेपाल
२०६८/०९/१३

(स्रोत : रचनाकारको ब्लगबाट सभार)

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