मैथिली गीत : मानवता

~विनीत ठाकुर~

नहि भटकु धामे–धाम राखु मानवता पर ध्यान
लागु दीन–दुखी के सेवा मे भेटत ओतहि भगवान

भीतर सँ तोडि़ देलक मिथिला के दुःख आ गरीबी
मन्दिर के बाहर दुःखिया बनल अछि परजीवी

आत्मा मे काने परमात्मा देखियौ अवला के जान
जिनगी के सब धाम एतहि छै जत गरीबक बस्ती

ओकरा किओ मानव ढ़ाल बना कऽ करु नै बदमस्ती
ओकर दर्द के मलहम बनि कऽ करु ओकरे सबटा दान

सब नदी के पानि अमृत बुझु त भावक गंगा
धोउ अपन मोनक मयल चाहे खिचु धोती अंगा
त्यागु मोन सँ विरोध भाव के ऊगु बनि कऽ चान

मिथिलाक्षर ( तिरहुता लिपि ) मे सेहो :

 

 

 

 

 

 

 

 

देवनागरी आ मिथिलाक्षर (तिरहुता) दुनु लिपिमे प्रकाशित काव्य कृति  “बदलैत परिवेश” सँ साभार

विनीत ठाकुर
मिथिला बिहारी नगरपालिका
मिथिलेश्वर मौवाही – ३
प्रदेश नं. २, धनुषा

(स्रोत : रचनाकार स्वयंले ‘Kritisangraha@gmail.com‘ मा पठाईएको । )

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