~धीरेन्द्र प्रेमर्षि~
चण्ठ-अदा लत करै, सएह जनु अदालत छै
लण्ठ मोहब्बत करै, सएह जनु अदालत छै
गीताकेर गञ्जनलए सप्पतटा खुआ-खुआ
झूठकेँ जे सत करै, सएह जनु अदालत छै
सत्ताक धौरबी ई बुझि सतौत जनताक—
जिनगी आफत करै, सएह जनु अदालत छै
भलहि आँखि फोडि दै, मुदा नोर पोछबाक
नाटक अलबत करै, सएह जनु अदालत छै
जकरा पड़ाए चाही एकर डरे तकरे लग
शिर सदा नत करै, सएह जनु अदालत छै
हम तँ बस जनै छी जे अन्हारक अपहर्ता—
भोरक स्वागत करै, सएह जनु अदालत छै
– धीरेन्द्र प्रेमर्षि
‘पल्लव’ मैथिली साहित्यिक र ‘समाज’ मैथिली सामाजिकको सम्पादन
काठमाडौँ, नेपाल
२०६८/०९/१३
(स्रोत : रचनाकारको ब्लगबाट सभार)