मैथिली कविता : व्यवहार

~विनीत ठाकुर~

ऐना केँ की मोल आन्हरकेँ शहरमे ।
भेल उन्टा मुँह सुन्टा अपने नजैरमे ।।

ज्ञानक सूरमा लगाकऽ जे बजबैए गाल ।
व्यवहारमे देखल ओकरो उहे ताल ।।

मोन भितरकेँ दर्पण सेहो चूर–चूर ।
एतऽ सँ मानवता भागल अछि कोशो दूर ।।

घुमे दिनमे लुटेरा ओढि़ सज्जनकेँ खोल ।।
कतहुँ देखल मृत्यु कतहुँ बाजे ढ़ोल ।

जे समाज सुधारक ओ करैए किशुनकेर ।
ओकरे पाछु मुसना कहवैए सवाशेर ।।

जाधरि नहि हाएत मोनसँ मद्यपानक नाश ।
करत लोक कोनाकऽ विनीत भावक आश ।।

– काठमाडू, नेपाल

(स्रोत : आंगन – मैथिली भाषाक वार्षिक पत्रिका (सलहेस विशेष) वर्ष : ४, अंक : ४, वैशाख २०६९)

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