~ब्रज मोहन झा “सोनी”~
डेग डेग पऽ गाम सहरमे
सगरो नोर भोकासी अछी,
नोर बहा लोक सुती रहल
तँय हमरो छायल उदासी अछी ।
ओइ दिन ओकरा घर चोर गेलै,
कयलौ हल्ला होशीयारी लेल,
डरे चोरबऽक हनलक गब्दी ,
तँय हमरो छायल उदासी अछी ।
चोरबो पिटलक दोसरो डटलक
कानुनमे हमरा फँासी अछी ।
घुस खाऽ जज छोडी देलक,
तँय हमरो छायल उदासी अछी ।
चुप रहने संरक्षण भेटत
बाजब बडका बदनामी अछी ।
ई बात हमर गुरुजन कहलक,
तँय हमरो छायल उदासी अछी ।
आइ फेर देखलीयै सेन्ह पडैत,
”सोनी” सोनाके गाछी अछी ।
ई देखी सब केव भेल प्रशन्न,
तँय हमरो छायल उदासी अछी ।
तँय हमरो छायल उदासी अछी ।
– ब्रज मोहन झा ”सोनी”
बनौटा – ५ (महोत्तरी), नेपाल
(स्रोत : “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक)