~ऋतिक यादव~
निर्दोष मधेसीयापे दिन-दहाड़े गोली चलल
कबले चली चमड़ाके रङपे दमनके बौछार हो
हर बखत शासकके झुट्टा आश्वासन मिलल
केहु ना सुनलक मधेसी शहीदके पुकार हो !
आधा आवादीके खुनमे खौलत जखम रहल
कबले होत रहि सौतेला अइसन व्यवहार हो
मधेस आन्दोलन प्रस्तावनामे काहे ना अटल
केहु ना सुनलक मधेसी शहिदके पुकार हो !
वर्षोसे हर्दम खस-ब्राह्मणके उपनिवेशमे रहल
कब होई राजनीतिके तहत इह मुद्दा तयार हो
प्रशासनके दमनकारी गुण्डागर्दी खुब चलल
केहु ना सुनलक मधेसी शहिदके पुकार हो !
असफल प्रयाससे चलते केतनाके प्राण उरल
कब मिली मधेसीके संविधानमे अधिकार हो
विर शहीदके कुर्बानीके सर्वोत्तम महत्व रहल
केहु ना सुनलक मधेसी शहिदके पुकार हो !
– ऋतिक यादव
सिम्रौनगढ-१०, बारा
(स्रोत : रचनाकार स्वयंले ‘Kritisangraha@gmail.com‘ मा पठाईएको । )