~अखण्डदिल दास~
आरती लाउ साधु आरती लाउ
एक तत्तु पार ब्रम्हाके आरती लाउ ।।
छेर अछेरसरुपन पाउ
दूृध समाधि परम्पद पाउँ ।।आरति।।१।।
ॐ अकार अार उकार मकार मिलाई ।।
त्रीकुटिके विचमे जोति सरुप लषउ आइ र ।।आरति।।२।।
दृध समाधि प्रदक्ष पाउ
भजन भक्त करि हरि संमिली जाउ ।।आरति।।३।।
गगन दृश्ल गधेदु नीज गाउ
धनंज यक कमल पार पाउ ।।आरति।।४।।
अनादि कृष्ण सिर चराउ
हंसस सरुप पारतरि जाउ ।।आरति।।५।।
कन्चन सरुप सतेयर् समाउ
धिरे सुभको मुक्ति पाउ ।।आरति।।६।।
दास अषडदिल आरति लाउ
हरि तन भक्ति सर नर धाम परं धाम पाउं ।।आरति।।७।।
(स्रोत : ‘जोसमनी सन्त परम्परा र साहित्य’ बाट साभार ग्रहण)