थारू भाषी लेख : थारु भाषा एक परिचय

~तेजनारायण पञ्जीयार~

थारु भूण्डलके देश मधे जगजाहिर हिमाल पहाडके दखैनबैरिया काखमे आपन नेपाल देश सतयुगहैसे अवस्थित छै । नेपाल दुईटा वडका बडका ढोङ्गाके बीचमे पुनघलहा खमअरुवा लखा उत्तरमे चीन आ औरो तीन दिसरसे मोगलान देश घैरने छै । नेपालके क्षेत्रफल एक लाख सैतालीस हजार वर्गकिलोमिटर आँकल गेल छै जबकि एकर नजसंख्या दुई करोड लगैच्या गेल छै । राष्ट्रिय जनगणना २०४८ अनुसार नेपालमे साइठटा जाइतके बसोवास छै आ चौवनटा भषा बाजै छै । ए किसिमसे नेपाल एकटा बहुजातिया आ बहुभाषिक राष्ट्र चिऐ । दोसर शब्दमे नेपाल चाइर वरण छत्तीस जाइतके फुलबाइर चियै । समय आ शासनके मलजल पाइबके अनेक जाइत आपन भषाके माध्यमसे आपन कालके संस्कृति आ सभ्यताके नै मेटावैवला छाप छोइडके गेलहा बातसब यै राष्ट्रके परापूरुव कालसे भ्या एलहा राजधानी काठमाण्डू उपत्यकाके पूरना शिलालेख सब जाहिर करैछै । यहै सिलसिलामे हाल नेपालके राष्ट्र भषामे मनता प्राप्त कैलहा नेपाली भषाके खाली बडहौती कैने छै । बिगतके पंचायत कालसे एक भषा एक भेष के नैसोहाबै बला शासन द्याके देशभैरके साइठटा जाइतके चौबन्न भषा मध्ये त्रिपन्नटाके अधोगैतकरने रहै । इ त प्रजातन्त्रके पुनर्बहालीके पाछे संवैधानिक प्रक्रियाके माध्यमसे राष्ट्र भषा आ राष्ट्र भषाके व्याख्या भेल अनुसारे समग्र राष्ट्रके नागरिक सब आपन आपन बाजैबला मातृभषाके संरक्षण आ सम्बर्धन करैले जुरमु¥याल छै । तहोमे राष्ट्रिय प्राज्ञिक संस्था मार्फत एहेन भाषिक सम्बर्धन सम्बन्धमे प्रोत्साहन भेटनाइ सलाध्य थियै ।

नेपालमे बसोवास करैबला साइठटा जाइत मध्ये नेपालके खास भण्डार मानल गेलहा मधेश । तराई प्रदेश जे सम्पूर्ण भुभागके कदाचित सतरह प्रतिशत मात्रमे परिवेष्ठित छै तकरे पूरुवमे मेची से महाकाली तलिकके सबटा जिल्लामे अधिक जनसंख्यामे छिटल छाटल रुपमे अनादि कालसे वसोबास करैवला जाइत थारु चियै । ऐ थारु सबके कोनो कोनो जिल्लामे थौर सोहो कहै छै । ऐ थारु सबके आपन भेष आ भषा छै आ तहिनङे संस्कृति सेहो । ऐठमा थारु भषाके विषयमे चर्चा उठल छै जैमे एकर संस्कृतिके वात सेहो एतै । मगर थारु भषाके चर्चा करनाइसे पहिले थारुएके विषयमे दु्इटा आखर लिखलासे बातबेसी खुगतै ।

ओनङ थारु सबके मूलघर हिमालके काखसे बहार नै छै, मगर थारु शब्द नेपाली समाजके सम्मानजनक शब्द नै चियै । नेपाली समाजके तथाकथित उच्चवर्गीय जाइतमे आपसी कहासुनी भेलापर थारु कहैके गाईर पढल जाइछै । इ अनुभव केलहा बात थिऐ । भद्र वर्गीय समाजके मन मस्तिष्कमे थारु शब्द ऐ प्रकारसे घर बन्याके बैठलासे थारु सबके सबसे जेठ बन्यादैछै या थारु नहाइत सोझमैतिया नैहो तकरो ज्ञान कराबै छै ।

ओनङ थारु सबके मूलघर हिमालके काखसे बहार नै छै मगर थारु शब्द नेपाली समाजके सम्मानजनक शब्द नैथियै । नेपाली समाजके तथाकथित उच्च वर्गीय जाइतमे आपसी कहासुनी भेलापर थारु कैहके गाईर पढल जाईछै । इ अनुभव केलहा बात थिऐ । भद्र वर्गीय समाजके मन मस्तिष्कमे थारु शब्द ऐ प्रकारसे घर बन्याके बैठलासे थारु सबके जेठ बन्यादैछै आ थारु नहाइत सोझमैतिया नैहो तकरो ज्ञान कराबै छै ।

थारु जेठे थिऐ तैबातसे साबूत नेपालके इतिहास शिरोमणि बाबुराम आचार्यके कथनी “थारु सब आपन बस्तीमे रहैवला बावहन, रजपूत, कुर्मि सबटा आर्य नस्लके लोक सबके बजिया (बाजी) कहैछै । प्राकृतिक भषाके बाजी शब्द विकास भ्याके बजिया शब्द भेलहा बात स्पष्ट हैछै । इस्वी शताब्दिके पहैनका छठम शताब्दिमे भारत बर्षके उत्तर विहारमे विश्व प्रसिद्ध बज्जी गणतन्त्र खौवढहल छेलै से बातके प्रमाण बौद्ध साहित्यमे भेटैछै ।”

बज्जीसब नवागत आर्य भेलासे गोर आ ढांग हैछेलै । किंरातीसब जगान जुगसे गर्मि प्रदेशमे वसोवास करलासे पिरश्याम भ्यागेल छेलै । वर्णभेदके यहै धतुमतुसे थारुसब वज्जीसवके दोसरे देखै लागलै । बजियासबके गणराज्य टुटैके चौबिस पच्चीस शताब्दि भ्यागेलै मगर तैयो थारुसब आइहजूज ओइसब जाईतके बजिया कहैछै । ऐमे एकर ऐतिहासिक महत्व औरो बेसी भ्याजाइछै । बजियासव नवागत भेलासे उ सब प्राचीन बसिन्दाके स्थलिय अर्थात रैथाने देखके थारु कहे लागलै से बातके अनुमान करल जाइछै ।

बाबुराम आचार्यके अनुभवजन्य उपरका अखिहासमे एकटा यी शब्द कहल जाइछै जे बाजी शब्द प्राकृतकके नै भ्याके पाली भषाके शब्द चिऐ जेकर शाब्दिक अर्थ “परके” अथवा “दोसर” मे व्यवहार हैछै ।

एकरे नहाइत मिलल जुलल राहुल सांकृत्यामन लखा विद्वान आपन उदगार व्यक्त करैत कहैछै जे थारु सबके मुहठान आ आइख उत्तर दिसर तानैछै मगर भषा मगह (दक्षिणभरा) पुगावैछै । राहुल सांकृत्यान के उदगार आ थारु के खानपान देखके इबात सहजै प्रमाणित भ्या सकतै । थारु सब घोङही खाईछै । लिच्छिवी कालमे एकरा भूकण्डिका कहल जाइछेलै । शिवदेव प्रथम माछ प्रीय थारु जाइतके गामसे माछमे लागैवला टेक्स कटौती करलहा वात शिलालेखमे लिखल गेलछै । उ शिलालेख अखनियोतैक विद्यमाने छै । अखैनियो लोकसब ओकरा थारो ढूंगा कहैछै । यहै शिलालेखमे माछसबके तत्कालिन नाम देल गेलछै तैमे भूकुण्डिका जाईतके माछके नाम सेहो छै । भूकुण्डिकाके शाब्दिक अर्थ लगाबैवला आरनोलीके व्याख्यामे सही थापैत विद्वान लेखक धनवज्र बज्राचार्य आर. डि. रेग्मी कहैछै जे घैलालखा एकटा माछ हैछै तैके भितरमे फेरो माछ रहैछै । ऐ व्याख्याके घोङहीसे मिलान खाईछै । त थारु सब तखैनियो घोङही खाईछेलै । आइके काठमाण्डौ उपत्यकाके बात नैछै बल्कि थारुसे उत्तरके बासी कोई घोङही नैखाईछै आ घोङही बुझवोनै करैछै । मगर थारु आ थारुके दछिनके प्राय सब जाईतके लोकसब घोङहीसे परिचित छै आ वहौत जाईतसब भछ सेहा …….. थारुसब दक्षिणो दिसरसे एलछै तैवातके पुष्टिके संकेत करैछै । ……… दोसर पक्षमे थारुसब तमा (वाँसके कोपर) खाईछै । तमा थारुसे उत्तर सब जाईतसब खाईछै एतहेक तलिक जे चीनमे सेहो तमा एकटा असल तरकारी आ अचारके परिकार मानल जाइछै । मगर थारुसे दक्षिणके कोनो जाईत तमा नै खाईछै । तमा खेलासे वंश नास भ्या जाईछै से कैहके कोइनै खाइछै । ऐ प्रकारसे थारुसब नेत उत्तरके छेलै आ ने दक्षिणके बल्कि जेठाम एकर बसोवास छै तहै ठाम हजारन वरिससे बसोबास क्या रहलछै । यहैसब बातके विचार क्याके दुई दशकसे वेसी समय तलिक रहलहा विलैती राजदूत ब्रेन हौगसन कहनेछै जे मेचे, धिमाल आ थारु जाईत मलेरिया लखा भयानक रोगके पच्या नेनेछै । ई रोगके पचवैले ऐ जाइत सबके कमसे कम तीन हज्जार वरिस लागल हेतै । ब्रेन हौगसनके उनैसम शताब्दिके ऐ उक्तिसे उपरका तथ्य सबटाके पुष्टि भ्या जाइछै ।

ई थारु जाइत नेपालके सबसे उर्वरा भूमिमे निवास क्याके हिमालसे निःश्रृत भेलहा खोला, लदीके वडका आ पौष्टिक माछ कौछ ख्या के खाली आपन जीवन प्रसस्त नै करने छै वल्कि संसार भैरके संस्कृति आ सभ्यताके खमहा भेलछै । संसार प्रसिद्ध धर्मगुरु शाक्यमुनि बुद्धके पहैनका सिद्धान्तके नाम थेर कथा कहल जाइछै । थेर शब्द त अर्बाचीनमे श्रीलंकाके उच्चारण छेलै । वास्तवमे इ त थारु कथा चिऐ । ऐ ठाम इ अडान लेल गेलछै जे बुद्धके सिद्धान्तके गौतम सिद्धान्त वा शाक्य सिद्धान्त नै कैहके थेर कथा कथिले कहल गेलै, जाबे तलिक कि उ थारु नै छेलै । एकर औरो दोसर प्रमाण सबछै मगर तैसे पैहने ई कहल जाइछै जे प्राचीन भारतके इतिहास जे कोइयो लिखने छै वा भविष्य अगर कोइयो लिखतै त ओकर चीनी यात्री फहियान वा हेव्नसाङके वर्णकाके उद्धरण करै परतै आ सेह्या फाहियान इ कहने छै जे शाक्यमुनि (गौतम) बुद्ध आ सम्राट अशोक एके जाइतके लोकसब छेलै आ थारु छेलै । तकरा पुष्टि करैत तारा नाथ सेहो कहैछै जे सम्राट अशोक थारु छेलै । सम्राट आशोक एकटा बौद्ध रजा छेलै । उ धरमके बलसे राज करलकै । आपन राजभैरमे चौरासी हजार स्तूप, धरमशला आ शिलालेख लिखबैलकै जैमे अखनियो तलिक बहौत क्यामे छै । नेपालमे शाक्यमुनि बुद्धके जलम भूमि लुम्बीनी, सगरहवा आ पीपहरवाके स्तूप तकर साछी चिऐ । लुम्बीनी शिलालेखके इतिहासमे थारु भषाके ऐतिहासिक प्रमाण प्राप्त हैछै ।

एकटा बात सर्बमान्य भ्यागेल छै । जे जाईत जतहेक पुरान छै तकर इतिहास ततबेहेक अनहारमे घोसरल छै । तैहैमे भारतीय प्रायः दिपके शासक द्वय बाभहन आ क्षेत्री आपसमे मिलके एहेन करम काण्डो साहासके निर्माण करने छै जैमे खाली इ दुईटाके चर्चा छै । ऐ किसिमके काम जाइत प्रति आछेप लगेलासे हम दोषी भ्यासकै छेलियै मगर अहेठाम प्राप्त भेलहा द्रव्य, सिक्का शिलालेख आ अन्य सामग्रीके अध्ययनसे उपरका बभनौटी सद्धिान्त निराधार भ्या जाइछै ।

यहै परिपेक्षमे संसार जानैवला धर्मगुरु आ ओकरे धरमके बाटमे लैरके शासन करैवला विश्व प्रसिद्ध आ देवताके प्रिय सम्राट अशोक थारुके प्रपौत्र बृहदर्थके समयसे थारु समाज आ भषामे बजर खसे लागलै पृश्यभित्र बाभहन जे बृहदर्थके सेनापति छेलै कपट क्याके रजाके हत्या क्या देलकै । पृश्यभित्र शासक भेलाके बादमे सौसे राज्यमे ढोलहा पिट्या देलकै जे कोई व्यक्ति एकटा भिक्षुके गर्दन काइटके आनतै तकरा एकसय सोनाके दिनार इनाम देल जेतै आ तहिनङे करबो करलकै । बुद्धके जाइत ओकर धरमके प्रचार करैवला भिक्षुसबके वडी निठूराईसे काटलकै, मारलकै आ नैत धरम परिवर्तन कैरके छोइरदेलकै ।

धरमके नाममे ऐ किसिमके आम हत्या कैरके धरमके जैरसे उखाडैके एहेन सफल अभियान दुनियामे कतौने देखल जाइछै । तखनेका विदेशीसब ई बात कतो लिखनेछै तकर पत्ता नैलागल छै आ बाभहन सब त सहजै एकरा विसराबैके पूरापूरी बल लग्या देलकै । ऐ जाइतके भविष्यके सन्ततिसब आपन पुर्खाके नाम, ठाम, धरम, करम सबटा बिसैर जाई तैले बारहसय बरिस तलिक एकरा खिहारैत, मारैत, विनास करैत मटियामेट करैले कोनोटा कसैर नैराखल कै ।

एहेन स्थितिमे ए थारु जाईतके भषा केनङ भ्याके जिवान रहतै । वड खराब स्थितिसे गुजैर रहलछै । मुहबोली बाहेक एकर कोनोटा प्रकाशित प्राचीन परम्परामे कहनाई कल्पनाके बहारके बात चिऐ तथापि एकर लोक गीतसे एखैनियो थारु भषाके मूल्यांकन कैल ज्या सकैछै ।

नेपालके सबसे पुरान लेखत ई. पू. २५० बरिसके मनता प्राप्त भ्यागेल छै । ई लेखत एकटा पथरके खमहामे लिखल छै । ई लेखत शाक्यमुनि बुद्धके जलम स्थान लुम्बीनीमे अखैनियो ठाड छै । भारतीय सम्राट देवानाम् प्रिय अशोक थारु आपने जाइतके वड्का धर्मगुरुके जलम स्थानके दर्शन करैके दौडहाके समयमे चेख राखलकै । यह्या तखैनका थारु भषा रहै । विद्वानसबमे एकमत भ्यागेल छै जे प्राचीन समयमे काश्मिरसे वर्मा तलिक एकेटा किरात भषा प्रचलित छेलै आ थारुसब किरात छेलै से बात उपरमे वर्णन भ्या गेल छै । कलान्तरमे भषा परिवर्तन हेवे लागलै आ हैत हैत एखनीके अवस्थामे छै । लेखतमे कलह जाइछै जे विद्यापति सिमरौनगढके राजधानीमे रैहके आपन कीर्तिसब लिखलकै । सिमरौनगढ वरा जिल्लामे परैछै अखनी ओइसनोका भषा भोजपुरी भ्या गेलछै । त थारु भषाके विवरणमे अखनी विना अध्ययनके कहल जाइछै सेह्या भषा थारुसब बाजैछै मगर स्वतन्त्र भारतके प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद जेकर पितृ घर सारण जिल्लाके जिरादेई गाममे छेलै आ जे अखैनियो थारु इलाकामे परैछै से कहने छै जे चम्पारणमे थारुके जनसंख्या अधिक रुपमे वसोबास क्या रहल छै ऐसबके बोलीके लोकसब भोजपुरी कहैछै मगर थारुसब भोजपुरी कहैछै मगर थारुसब भोजपुरी नै बाजैछै, एकरा औरके आपन शब्द विन्यास आ वाक्य विन्यास छै ।

थारुसबके बोलीके अगर कोइयो भोजपुरी कहैछै त वडका गलति करैछै । अध्ययन भेलापर ई बात प्रष्ट भ्या जेतै जे पुरुव मेची से पक्षिम महाकाली तलिकके थारुसबके आपने शब्द छै आ तहिनङे वाक्य जैसे भषा वनैछै । त एकर भषाके भौगोलिक वितरण नेपाल तराईके पुरब मेचीसे पक्षिम महाकाली तलिक फैललछै । एकटा बात जकर शासन रहैछै से आपन काम करैछै तैमे थारु भषाके कोइ उन्नति नै चाहै छेलै त एकर बाजैवलाके संख्यामे कम करैके पुरा कोशिश क्याल गेलै तैयो राष्ट्रिय जनगणना २०४८ (१९९१) के आधारमे वितरण भेलहा संख्याके एकटा फारम प्रस्तुत क्याल गेलछै । तराइके कोन जिल्लामे थारु भषा कतहेक बाजै छै से अवगत भ्या जेतै । फारम १ तराईके जिल्लामे थारु भषाके पहैनका दोसर आ तेसर स्थानमे बाजैवलाके संख्याजिल्ला पहैनका दोसर तेसरमोरंग – – ५२४६०सुनसरी – – ७३२७४सप्तरी – ८०५२६ –सिरहा – ११५२३५ –वारा – – १९७७९चितवन – ४४६४० –रुपन्देही – – २००५६कपिलवस्तु – – ३७५६१दाङ – १०५०१८ –बाँके – – ४४१९७वर्दिया १४९८६५ – –कैलाली १९८४९७ – –कंचनपुर – ७९७९३ –येकर बाहेक तेसर ठामसे निचाके जनसंख्यावालाजिल्लाजिल्ला पहैनका दोसर तेसर१ झापा – ४८०१२. उदयपुर – १९५१२३. धनुषा – १४६४. महोत्तरी – ४५९८५. सर्लाही – ११३७१६. रौतहट – १४७५९७. पर्सा – १२०३८. नवलपरासी – ३१५९८९. सुर्खेत – ४४८८श्रोत ः राष्ट्रिय जनगणना २०४८ (१९९१) भौ. १ पार्ट – ४ के. त. विभाग क्षेत्रीय समाजिक भाषिकासवथारु आ थारुभषा सम्बन्धमे अधिकारिक सोधकर्तासब इ मानैछै जे थारु भषा छै मगर उसब यहो कहैले नै छोडैछै जे भारतके सिमान्त प्रदेशके जे भषा छै थारु सब ओकरे अपभ्रश बाजैछै जेनङ । कोशी, सगरमाथा आ जनकपुरके थारुसब मैथिली, नारायणी लुम्बीनीके भोजपुरी आ तकरपाछे सबटा अवधी बाजैछै । यी कतहेक विरोधाभासके विषय चिएै । यी त वडका समाजिक अनुसन्धानके विषय चिएै ।

राजनितिकके सिमा संकीर्ण हैछै एके क्षणमे बदैल जाईछै । मगर समाजिक सीमाके बदलैले बहौत जमाना लागैछै । हिन्दुस्तान हजार वरिस तलिक गुलाम रहलै । ऐठाम दुईबेर वडका राजनैतिक उथल पुथल भेलै । शासनके बागडोर एकसे दोसर के हाथमे चैलगेलै मगर भारतीय समाजमे बहौत कम फेर बदल भेलै । तहिनङ नेपालके अढाईसय वरिस पहिने राजनैतिक परिवर्तन भेलै, मगर काठमाण्डौ उपत्यकाके नै विगाडे सकनेछै । नेपालमे अखनि नेवारके इतिहास नेपालके इतिहास कहल जाईछै । राजनैतिक इतिहास तुरन्त लिखल जाइछै मगर समाजिक ईतिहास लिखनाई कठिन हैछै । तहोमे समाजिक इतिहास लिखै दिसर अखनी तलिक लोकसबके धियान ओने भरा कहा पुगल छै ? दक्षिण भारतके द्रविडसबके समाजिक इतिहास तयार भ्यागेल छै मगर नेपालके मंगोल समूहके थारु सब त अखनी पढनाई लिखनाई प्रारम्भोने करनेछै, एकरा आपन बोलीके ज्ञान केनङ हेतै ?

समाजिक इतिहास लेखन कार्य ओहिनङे कठिन काम चिऐ तहौमे भषाके समाजिक क्षेत्रके अंकनाई त औरो वेसि कठिन भ्या जाईछै आ सबसे बेसी त थारु भषाके आंकलन, जे जाईत अखनी तलिक घोडा बेचके सुतलछै । एकरा कोनोटा हाहेने वेरवाहे छै तथापि इ जाईत जेनङ उपर कहल गेलै त बडका खन्दानी जाईत चियै नेपालके ६० टा जाईतमे एकर करिब सात प्रतिशत जनसंख्या छै आ नेपालके इतिहासमे अनादिकालसे बसोबास कैर रहलछै । एक लोक गीतछै, गीति नाटक छै, आ तहोसे बैढके एक गीत नाच मंचन हैछै । भषाके गीत बनेनाई गीत वन्याके मन्चन करनाई कोनो हलुक बात नैचिए आ यी करैले बहौत समय, सैकडन वरिस लागैछै आ सेसब ऐ जाइतके भषामे छै, फेन इ जाईत जह्या बाजैछै सेह्या लिखैछै । बाजत दाइल त लिखवो करत दाइल । परौसिया भषावला वाजत पाइन आ लिखत पानी तहिनङ औरो शब्दसव छै समय रहलापर पाछे लिखल जेतै ।

हे, त् एकर समाजिक क्षेत्रके बात उठल छेलै । नैनितालके थारुके बोलीमे आन आन भषाके शब्द त छैके मगर ईसवके वोली ब्रज भषासे बेसी मिलान खाइछै । तहिनङ मोरङ्ग, सप्तरी, सिरहा लगात वरा तलिक मैथिली कहल जाईछै । ऐठाम इ वात स्पष्ट करनाई आवश्यक भेलछै जे थारु भषा कोनो दोसर भषाके अपभ्रंस वा अंग नै भ्याके थारु एकटा स्वतन्त्र भषा चिऐ । मैथिली वला सबमे खाली बाभहन परिवार सब अपनाके श्रेष्ठ बनवैले थारु भषाके जैर खोडहैत आठम शताब्दि ईसाके बनैनेछै । मगर तैयो थारुभषा लहेट नै लागेदेनै छै । मैथिली भषाके उत्पैतके सम्बधमे कहल जाइछै जे ई मगही भषा से एल छै आ मगही भषा त मौर्य सम्राज्यके समयमे थारु सबके भषा छेलै । मौर्य सब थारु छेलै से वात उपरमे कैहदेल गेलछै । फेरो बौद्ध साहित्यमे मिथिलाके वर्णन भेलछै मगर मैथिलीसब अखैत तलिक मिथिलाके भौगोलिक स्थितिके ठीक पत्ता नै लगावे सकनेछै । धनुषा जिल्लाके जनकपुर जेकरा ल्याके मैथिल सब नाचैछै सेत औजका चिऐ । एकर पुरातात्विक कोनोटा महत्व नैछै । इत खाली टिटीम्भा चिऐ । वाभहनसब धरमके नामे सम्पूर्ण भारतके गुलाम बन्याके राईख देलकै सेह्या फरमुला लग्याके अखनी यी मिथिलाके बात चलैने छै ।

दोसर बात जैसे मैथिलसबके झूठके पर्दाफास भ्याजाईछै से यी चिऐ जै मैथिली भषा बोद्ध साहित्य मे एलछै से बात मैथिली भषाके अनुसन्धानात्मक किर्तिके मोटका सवटा पोथीमे लिखलछै । फेर मिथिलाके तिरहुत सोहो कहैछै । तिरहुतके शाब्दिक अरथमे कोनो कोनो पुराणके उदाहरण द्याके मैथिलसब कहैछे जे तीनटा लदी गण्डकी, कोशी आ वागमतिके बीचके भाग के तिरमुक्तिसे तिरहुतमे भेटलाहा बौद्ध साहित्य जैसे मैथिली भषा एल छै तकर वात मैथिलसब झप्या देनैछै जे थारु सबके घना वस्ती भेलासे ओकरा थरुहट कहे लागलै आ तहैसे तिरहुत भेल छै । मैथिल बाभहनसबके दोसर वडका वाभहन सब वाभहन नै मानै छेलै । मण्डल मिश्र विश्व इतिहासके पात्र चिऐ आ थारु सबके पुरहित सेहो छेलै । उ बौद्ध छेलै । बुद्ध धरमके मानै छेलै ओकर जजमान थारुसब सेहो बौद्ध छेलै, खैर थारु सब त अखनियो बौद्ध चिऐ । त मन्डल मिश्र शंकराचार्यसे पराजित भेलै मगर तिरहुतिया सबके वाभहन बन्या देलकै । ई आठम शताब्दिके बात चिऐ ।

तेसर बात थारु मैथिली लोक गीत गावैछै । थारुके गीतसबकै मन्चन हैछै मगर मैथिली गीत मन्चन नै देखल जाइछै । आईकोलके पढुवा छोरासब विद्यापतिके पदावलीके ताथैमाथे बदैलके मैथिल संस्कृतिके नामसे बजारमे बेचैले चतुर भ्या गेलै से दोसर बात, संस्कृतिके नै । एकर आपन साजबाज सेहो नैछै जैसे गीत मन्चन हेतै । फेर विद्यापति ठाकुरके घर हालके मधुवनी जिल्ला (भारत विहार राज्य) आ थारु सबके घर बहौत उत्तर पहाडकता त उ मैथिली लोक गीत केनङ क्याके ओकरसे (माईग्रेट) क्याके आइवके थारुके कण्ठमेएलै । विद्यापतिके घर आ थारु वस्तीके बीचमे बडका दराइर छै जैमे आर्यमूलके बहौत आन आन जाईत सबछै तकर कण्ठमे विद्यापतिके गीत कहाँ गावल जाईछै । थारुमहिलासब विवाह उत्सव अथवा आन आन पावैन तिहारमे गावैवला विद्यापतिके गीतमे जे लयमे गावैछै त फेर मैथिली केनङ भेलै । ऐमे विद्यापतिके सम्बन्धमे एकटावात औरो गौर करैवला छै । विद्यापतिके सबसे पहैनका कृति किर्तिलता थिऐ जे शायद उ वीसे वरिसके उमेरमे रचना करने छेलै मगर ओई पुस्तकमे कतौ मिथिला आ मैथिली शब्दके लेखत नै देखल जाईछै । सवठाम तिरहुत लिखल छै ओहे किताब आ विद्यापतिके आन किताबमे मैथिली भषाके कतौ लेस नैछै वल्कि उ त ‘देसिल वयना सवजन मीठा’ कहै । माने ओइदेशमे लोकसब जे बाजैछेलै सेह्या भषाके गीत आ तहै लोकसबके गीत चिऐ, मैथिली नै । विद्यापति ठाकुरके एकटा तमापत्र सेहो छै जेकरा मैथिल सहित स्वदेशी वा विदेशी विद्वानसव नकली कहै छै । तहिनगे विद्यापति थारु सबके गीत संकलन क्याके आपन नकली नाम द्याके आपन प्रतिष्ठा कम्याल लखा ओकर सवगीत थारु गीत चिए मैथिली नै । अगर मैथिलसव तहिनङ छै त फेर मन्चन कथिले नै करेसकलै, जवकी जंगली थारुसब वडा शानसे मन्चन करैछै जेकरा देखके आ सुइनके बाभहन वा बाभहैन दुनु छक्क परैछै । फेरो विद्यापति त पदावलीके रचना सिरहा जिल्लाके रामपुर गाममे करने रहै । रामपुर एकटा थारु गाम चिऐ ओईठाम तखनी दोनवार समान्त छेलै तकर हवैलीमे रैहके विद्यापति थारु लोकगीत संकलन करलकै । रामपुर गाममे पाछे जंगबहादुरके शासन कालमे देवल चौधरी सुब्बा भेलै तकर गीत अखनियो छै । उपरका लिखलहा बातसे थारु भषाके क्षेत्रके आकलनभ्या गेलछै मगर स्पष्ट शब्दमे नेपालके सम्पूर्ण तराई आ भारतके विहार राज्यमे बाजैवला मूलत सवटा थारु भषा चिऐ जे कलाल्तरमे छट्टु सबके हाथमे पैरके आपन नाम बदैलके कतौ मैथिली आ कतौ भोजपुरी कहावे लागलै । समय आवैछै त एकर मुल्यांकन हेवे करतै ।

थारु भषाके क्षेत्रमे एकटा और विशेष बात नेपालके इतिहास अखनी तलिक काठमाण्डूसे बेसी नै बहरावे सकने छै तहौमे रण बहादुर शाहके नाम आवैके चाहि दोसरके नैहेवे तैमे नै कोनो बात । नेपालके इतिहास पाँचम शताब्दिके उत्तरसे मानल जाईछै । जैमे सैबसे पैहले मानदेवके नाम आवैछै । ओनङ अखिनियो तलिक इतिहासकार सब मानदेव आ तकर बादके रजासबके लिच्छवी कहनेछै । इतिहासकार धानबज्र बज्राचार्य त लिच्छविकालके अभिलेख कैहेके पुरातात्विक मनताके शिलालेखके अध्ययन क्याके किताबमे लिखने छै । मगर ऐमे शंकाके बहौत ठाम देखल जाइछै । बज्राचार्य साफ साफ लिखनेछै जे लिच्छविकालके शिलालेख संस्कृत भषामे छै मगर ई पतियाबै बला बात नै थिऐ । पहिने त लिच्छविसब बज्जी छेलै । ओकर गणराज्य बुद्धके समयके थोरवेहेक पाछे टुटलै उसब केनङ आ कहिया नेपाल खधियामे ऐलै तकर कतौ कोनो उल्लेख नै देखल गेलछै । कोनो इतिहासकार एकरा मानैले तयार नै छै । फेर मानदेवके वोतहेक शिलालेखमे चाँगुनारायणके शिलालेख जैसे नेपालके इतिहास प्रारम्भ भेलछै आ जैसे उ आपन कूलके वर्णका करने छै तैमे उ लिच्छवि नै कहने छै आ कोनोमे नै कहनेछै । ताब फेर लिच्छवि कनङ भेलै । ओकर दोसर रानीसे जनमल पुत्री विजयवती पिताके मरणोप्रान्त पशुपति सूर्यघाटमे एकटा शिलालेख देने छै तहैमे उ लिच्छवि कुलाम्बर कहने छै । ई शिलालेख सम्बत ४२७ अषाढ शुक्लके चिऐ । सम्बत ४२८ मार्गमे बसन्तदेव आपन पहैनका शिलालेख थानकोट आदिनारायणमे लिखैने छै । ऐमे दुइटा बात देखल जाईछै । तै समयमे सम्बतसर कार्तिकमे बदलै छेलै पहैनका बात त इ जे रजा मानदेवके तिनटा रानी छेलै । तैमे भोगनी रानी भैरसक लिच्छवि दिसरके छेलै तकरे जनमल बेटी कोनो वार्तालाभ लिच्छविसे वियाह करलकै या पिताके स्वर्गीय भेलाके बादमे उ आपन पिताके सेहो लिच्छवि बनबैके हतारमे ई शिलालेख देलकै मगर तकर ४ या ५ महिनाके बादमे बसन्तदेव आपन शिलालेखमे आपन नामके पाछे कुशली लिख देने छै जे ई बातके जाहिर करैछै जे हमरासब लिच्छवि नै चियै बल्कि कुशली अर्थात कौशलके चिऐ या कोइचला चियौं । ऐ किसिमके बसन्तदेवके शिलालेख विजयवतीके शिलालेखके विरोध करैछै । फेर शिलालेख त अति पवित्र ऐतिहासिक स्तम्भ चिऐ । शिलालेख मार्फत शिलालेख देवैवला आ जेकर नाम शिलालेख देलगेलछै तकरमे बडका आत्मिक सम्बन्धके बोध कराबै छै । तथाकथित लिच्छवि राजा आइसे १३ या १४ सय बरिस खतमभेना भ्यागेलछै मगर नेपालमे तै समयके भेटलहा शिलालेख मध्ये २७ टा शिलालेखमे “थाहम शुशममाभाष्यम” कैहके लिखल गेलछै । एकेटा रजाके बात नै । तै समयके शिवदेव प्रथमसे ल्याके अन्त तलिके करिब करिब सबटा रजाके शिलालेखमे ई बात लिखलछै मगर शिलालेख अध्ययनकर्ता आ इतिहासकार दुनुटा बडा चतुराईसे आ जाईन जाईन के ऐ लबजके छोइरदेने छै । एकर कोनोटा पाँती नैलिखलकै । तैयो भषा ऐ बातके खोइलके राइख देने छै । ओनङ धनबज्र बज्राचार्य ऐ शिलालेखमे भषा संस्कृत कहने छै मगर एकरा मानैले कोई तैयार नै छै । सबसे पैहने त नेपाली विद्वान श्रृषिकेश शाह कहैछै जे प्राचीन शिलालेखसब संस्कृत भषामे नै छै । काशी हिन्दु विश्वविद्यालयके प्रो. सुषमामणि सेहो ऐ बातसे सहमत छै लिच्छविकालके शिलालेखमे अधिकाशं स्थानिय भषाके संस्कृत लखा व्यवहार करने छै । शिलालेखमे जहैतहै प्रयोग भेलहा शब्दसब सेहो विल्कुल संस्कृत नै चिऐ जेनङ भागभोग, धनिक, खता, पानी, रोपती, मना आदि । यहौ से वेसी चपागाउँ (तत्कालिन थारु गाउँ) जैमे माछमे लागैबला कर कम क्यालगेलछै तैमे साफ थारु भषाके लबजसब छै । व्यवहार भेलहा शब्दमे “भारके” शब्दछै । ई संस्कृत नै चिऐ । नेपाली भषामे अखनी एहेन अथवा ऐसे मिलानके शब्द छै मगर नेपालीवला सब नेपाली भषाके उत्पैत तेरहम शताब्दी कहैछै । फेर इ शब्द मैथिल

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