~दिपक अभिमन्यू~
गाउँघरमा हल्ला सुन्छु अर्कैसंग सल्क्या छौ रे
दिनरात उसकै नाम जप्दै उसैसित छल्क्या छौ रे
साँझ बिहान लत्तो छाडी मर्यादाको ख्याल नगरि
कुरा काट्छन नानाथरि उसैसित पल्क्या छौ रे
हिमाल जस्तो अटल अनि स्थिर त्यो मन मुटु
सुन्छु अचेल कता कता उतैतिर ढल्क्या छौ रे
सार्यौ भन्छन शहरतिरै मन मुटुको डेरा पनि
अँध्यारोमा जुन जस्तै उस्कै लागि टल्क्या छौ रे
जिन्दगीलाई चक्रव्यूहमा पारि कहाँ गयौ कुन्नी
हिजोआज अर्कै शिरमा शिरबिन्दु भै झल्क्या छौ रे