लघुकथा : बौखलाहट

~सन्जीव बंकिम~sanjib-shah-bankim

मोदि जस्तै देखिने आफ्नो कार्यकक्ष मा देखिन्छन् । उनको पि य जस्तै ले नेपाल बाट नेपाल पि यम दाहाल जस्तै देखिने ब्यक्ति को फोन आएको कुरो मोदि जस्तै ब्यक्तिलाई भन्छन् । पि य चिन्तित छन फोन रिसिभ पछि । किनकी दाहाल जस्तो निकै अत्तालियेको हत्तारियेको हुन्छन ।

मोदि जि यहा सबकुछ खतम हो गया ।

क्या हुवा इत्ना घबराये हुवे क्यौ हो ।

क्यौ क्या हुवा ?

आप का सपना सब कुछ बह गया ।

बताओ क्या हुवा ?

मोदि जि कुछ काम तो ये ओलि ले बिगाड रख्खाथा आत्मनिर्भर के राग अलाप के।

और फिर से ये नेपाल के जनता बहुत आन्दोलित हो गये है ।

अभि अभि खबर आया है नेपाल भर बिद्धुत गृह को घेरे हुवे है ।

ये लोड शेडिङ मेरे और आप कि देश कि बजह से हुवा ।

ये कहकर शोर सराबा कर रहे है । स्थिति नियन्त्रण से बाहर है ।

सब लोग रोड मे आ गये है । कहते है रोड हम अपने आप बनायेङे । बिद्धुत हम अपने आप उत्पादन करेङे । फास्ट ट्र्याक हम बनायेङे । पुल हम बनायेङे । हमारा देश हम खुद बनायेङे । हम किसि का हस्तक्षेप कदापी स्विकार नहि करेङे ।

सारा देश बन्द किये हुये है । कहते हम बिकास चाहते है । हम देश को टुकडे मे बिभाजित होने नहि देङे । मै तो चाहता था सि के राउत को राष्ट्र के महा पुरुष मे महा नायक मे घोषणा करने ।

और पूरा मधेस को येक मधेषी प्रान्त वा प्रदेश बनाने ।

मोदि जि मेरा भि यहि सपना था । अब सबकुछ बिखर गया ।

और लुट गया ।

उता बाट फोन मा यहि भनेको सुनियो तुम्हारे देश के लोग सठिया गये है । ये तुम्हारी लोगौ का बौखलाहट है ।

जैसे हो समझाओ । कन्ट्रोल करो ।

अघि को तनाव घबराहट हताशापन अहिले मोदि जस्तै देखिने ब्यक्ती मा सरेको थियो ।

(स्रोत : रचनाकारको फेसबुकबाट सभार)

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