माय मिथिलाकेँ संतान अहाँ
राखु पूर्वजकेँ मान अहाँ
छोडि़कऽ सबटा टिकरम–जाल
बनु यौ मैथिल महान अहाँ ।।
मिथिलाक्षर ( तिरहुता लिपि ) मे सेहो :
विनीत ठाकुर
मिथिलेश्वर मौवाही–६, धनुषा
(स्रोत : रचनाकार स्वयंले ‘Kritisangraha@gmail.com‘ ईमेलमा पठाईएको । )