थारू भाषी कथा : कमैया बस्तीम् भगन्वा

~कृष्णराज सर्वहारी~Krishna Raj Sarwahari

नेपालके मनै गरीब होके दुःख पइलाँ कहिके भगन्वा दानबीर बन्के अइलाँ । हुँकार आघे मंगुइयनके लाइन लाग गैलिन ।

– प्रभु मोर घर २ तल्ला किल बा । कम्तीमे ५ तल्ला टे बनाइ पाउँ ।

– प्रभु ५ ठो फेक्ट्री चल्टी बा, १० ठो ठपे पाउँ ।

– प्रभु नेपालमे ५ तारे होटल पर्लि बा, बिदेशमे डोसर होटल चलाई सेकुँ ।

भगवान सक्कुहुन् तथास्तु कहटी दान डेटी गैलाँ । भगवान हे एकाएक झल्यास याद अइलिन । ओहो मै टे मुक्त कमैया बस्तीम पो पुग्ना रहे, कमैयनके लर्का खाई नै पाके सुकुर सुकुर करटिन कटि ।

– उहे बीचेम एकठो एनजीओक् मनैया भगवानके आघे ठह्रियाइल ‘प्रभु मै मुक्त कमैयनके लाग काम कर्ठु । मही पैसा डेलेसे ऊ बस्तीम पुगाडेम जे । हजूरहे काजे दुःख्ख ।’

– भगवान नेङके फेन मिच्छा रख्ले रहिट– ले टे, मुक्त कमैयन डिस कैहके उब्रल जम्मे रूप्या मुठ्ठा भर पक्राा डेलाँ ।

– उ एनजीओक मनैया भगन्वक डेहल सारा रकम अपन खातामे जम्मा करल ।

ओट्ठेसे मुक्त कमैयनके नाउँमे आइल रकम कब्बु नै सही सदुपयोग हुइल कटि ।

हाकिमलोग घुस्याहा हुइलाँ कैहके एक दिन भगवान हाकिमके भेषमे ओकर कुर्सीम बैठ्लाँ । एकठो खरदार फाइल लेले हाकिमके आघे बह्राइल ओ कहल– हाकिम साहेब, मोर असइ भैने हे भन्सारमे सरूवा करा डेहे परल । अपने हाकिम–हाकिम लोगनके बात मिलठ ।

हकिम्वा बोलल– भन्सार टे संसार हो, उहाँ छिरक लग मनै लाखौं लाखौ खर्च कर्ठा । टै सस्सुर खरदार का डेहे सेक्बे । टोर भैनेक काम नै हुई ।

खरदार तेल लगाइल– अपनेन गज्जबके चीज डेहम हजूर । भात भन्सा कर्ना हकिमिन्याहे महा कर्रा पर्ठिंन । अपनेन थारू गाउँसे कमलहरी नान डेहम हजूर ।

हाकिमके भेषमे रहल भगवान रिसाइ कि, कलक टे मुस्कुराइल पो ।


भुँखक मारे भगन्वा कुलमुलाइल रहे । कौनो घर खाइक मिलठ कि कहिके बिचार करल । दिन बुरटेहे । एकठा घरक बरेरी ओरसे धुवा निक्रटेहे । हो, यी घरेम ते पक्के फेन कुछ पक्टी हुइ कना उही लग्लिस ।
बरबरैटी छुच्छे भाँडा लेले उ घरक जनेवा बहरी निकरल । पर्बाटी अनुहारमे खाइक नैडिही कहिके भगन्वा थरुवाना अनुहारमे रहे । भगनवा थारु भाषामे बिन्ती करल– कुछ खाइक डेबी कि हजूर, दिन भरीक भुँखाइ बटुँ ।
जनेवा दुःखी स्वरमे कहल– घरेम एक दाना खैना नै हो, ठरुवा चाउर लेके आइ कि कहिके हँसियाइट हँसियाइट मिच्छा गैलुँ । कुछ नै हुके निन्धक लग छिमेकीक् घर सापट मागे जाइटुँ । माफ करबी, अपनिहे कुछु डेहे नै सेकम ।
ऊ दुःखीया जनेवाहे दया डेखैटी भगन्वा कहल– मै भगवान हुँ जा मँग्बो, मागो । जनेवा एकचो मजासे हाँसल । हाँसी ठम्हैटी कहल – भगन्वा रहटे टे मँग्टी नेंग्टे । पग्ला बुढुवा ।

भगनवक् लजर चौरस्तक एकठो झोपडीमे पर्लिस । भित्तर मनैनके कल्याङ बल्याङ रहे । यी दोकान हो कि कना हस लग्लिस उही हे । भुँखैलक मारे भित्तरे पैठल । भित्तर टे भठ्ठीक दोकान रलक भगनवा पता पाइल ।
मुर्गी मर्ना ओ भुज पकुवा बनैना ओ लोकल ठर्रा फेन बेच्टी दोकनदरुवा कमुइया बस्तीम गजब बेपार कैले रहे । उही लग्लिस, मही फेन एक गिलास स्वाट पारे मिलट टे ।
भित्तर एकठो ग्राहक बिना गिलासक बोटले सहिंत छँकियाइटेहे । पेंडीम बच्लक ठनचुन दारु भुँइयम अँरवइटी कहल– ले भगन्वा टोर भाग ।
उ डेख्के भगन्वक भुँख पियास हेरागैलिस । भगन्वा बरबराइल– घरेम जनेवा चौरक लग हँसियाइ ठुइहिस, यी भठ्ठीम मोर नाउँम दारु ढँरकाइटा सारक मुर्दार ।

कमुइयाक बस्तीक पुरुव ओर जोन्हियक ओजरारेम एकठो किसनवा हर जोटटहे । भगन्वक लजर उहे किसनवक कपर पर्लिस । यी टे महा मेहनती मुक्त कमैया बा, दिनरात कुछ नै कहिके काम करटी बा । यकर परिवार फुरहन्ने खुसी हुइहिस ।
रातभर हर जोत्बी कि का हो डाडु ?– भगन्वा पुछल ।
अत्रा एक ओइँरा टे जोटके ओरवाई परल । नै टे मलिक्वा गरियइही ।– उ किसन्वा जवाफ डेहल ।
भगन्वा टब आश्चये परल, जब जोन्हियक ओजरारेम हर जोत्ना किसन्वा टे मुक्त कमैयक कमुइया पो रलक पटा पाइल ।

मुक्त कमुइयनके नेता डिल्ली बहादुर चौधरीक भेषमे एकचो भगन्वा कमैया बस्तीमे पैंठल । जिल्लक कुछ कमुइया नेता ओकर आघेपाछे रहिंट । कमुइया बस्तीम नैजैना हुइलक ओर्से कुलुवाक ढिकुवापर ओहकार गाडी ठह्रियाइल रहे । केउ डिल्ली चौधरीक जय कना नारा फेन लगैटी रहिट । भगन्वा कमुइया नेतक भेषमे फोंहैटी रहिट ।
एकठो अधबैशे किसनवाहे भगन्वा नमस्कार करल लकिन उ वास्ते नै करल । उल्टे कहल– हम्रे कमुइया नेता डिल्ली बहादुर हे चिन्ठी, काँग्रेस नेता डिल्ली बहादुर हे भर नैचिन्ठी ।
मुक्त कमुइयनकमे ओइसिन उत्तर सुनके भगन्वा जिल्लाराम परल । खासमे एक आमसभामे भाग लेहे डिल्लीरुपी भगवान जैटी रहिट, जहाँ देउवाहे बर्का पहुना बनागैल रहे ।


भगन्वा कौनो जमिन्दारके रुप धारण कैके कमुइया बस्तीम छिरल । यी बस्तीक एकठो कमुइया सभासद सम हुइल बा । भगन्वा उहे सभासदवाला मुक्त कमुइयक पहिलक् मलिकवक् भेष धारण कैके गैल रहे ।
मोर बुढुवा सभासद हुइलक ओर्से बधाई डेहे आइल हुइही कहिके सभासदके जनेवा दंग रहे । मलिकवा पुँछल– ‘का बर्की टोर हालचाल ?’
सभासदके जनेवा झोक्कैटी बोलल– ‘का करे बर्की कहटो, अई जिम्दरवा । आब टे हमार बुढुवा फेन सभासद हुरख्लाँ । सभासद पत्नी कहे नैसेक्ठो ?’
मलिकवा अपन गल्तीपर माफी माँगल । जिन्गीभर मलिकवासे माफी मागे पर्ना, आज माफी मगाई सेक्लकमे सभासदके जनेवा दंग रहिन् । जमिन्दरवारुपी भगन्वा भर खिस्रिक्क परल ।

लमही नपा–७, छुटकी घुम्ना, दाङदेउखर
हालः कीर्तिपुर, काठमाडौ
ksarbahari@gmail.com

(स्रोत : हिरगर साहित्यिक बगाल)

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