थारू भाषी कविता : आपन भाषाहे छातीसे लगुइयन्

~अनिल चौधरी~

आपन भाषाहे छातीसे लगुइयन्,
आपन अङ्नाहे देउना-बेब्री से सजुइयन्,
कौन गल्लीमे हेराइल बटो,
कौन कोन्टीमे खुस्टल बटो,
दिन महिना बरस बीत गैल्,
अब ते तोहार पहिचान फेन मेट गैल् /1/

बर्खा बहारमे सजना गउइयन्,
बन्वा खेत्वासे प्रीत लगुइयन्,
कौन रस-रङमे बुरल बटो,
कौन नसामे भुलल बटो,
गीत तोहार धेब्रम ओरागैल्,
प्रीत तोहार डग्रेम हेरागैल /2/

आपन पहिचान के नारा लगुइयन्,
आपन गाउँ-घर हे प्यारा कहुइयन्,
कौन भत्थी मे मस्त बटो,
कौन सभा मे ब्य स्त बटो,
शब्द तोहार बोलीमे हेरागैल्,
प्यार तोहार झोलीमे हेरागैल /3/

– अनिल चौधरी दांग देउखर (हाल मुस्ताङ्ग)

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