~अजय पाण्डे~
देश कय अवस्था एकदम दयनीय होइगय
कल कय गुन्डा जब से मननीय होइगय
पढाल लिखल देखो सब भैँस चरवय
अव बिन पढ़ा सब कै सम्मनीय होइगय
जीवन भर अपराध किहिस जउन
आज उहय सबसे पुजनीय होइगय
गवाँ-गवाँ से जिता लेकिन
सहर कै एकदम सरहनीय होइगय
वादा कै कय गय जनता से
अव चोरन कै गोपिनिय होइगय |
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(स्रोत : रचनाकारको फेसबुकबाट सभार)