~सीता थारू ‘निश्छल’~
जिन्दगीमे दर्नैं चिठ्ठा, तुह कहाँ रहो ?
तुहिनहे मँग्नु भिक्षा, तुह कहाँ रहो ?
हातमे लैके बरमाला ओ सेंदुर–टीका
घनि–घनि दर्नैं झिँका, तुह कहाँ रहो ?
सजाइल रहे हिर्डामे ऊ ताज–महल
हो लग्नैं ओम्हीं किरा, तुह कहाँ रहो ?
हे ! भगवान शिवशंकर कहल लेकिन
पठाइल यमराज भिसा, तुह कहाँ रहो ?
हो साँस रहलसम तो आश कहेहस
राम–राम ! कहल् सीता, तुह कहाँ रहो ?
(स्रोत : परगोह्नी गजल संग्रह)