थारू भाषी गजल : तुह कहाँ रहो ?

~सीता थारू ‘निश्छल’~sita-nischal

जिन्दगीमे दर्नैं चिठ्ठा, तुह कहाँ रहो ?
तुहिनहे मँग्नु भिक्षा, तुह कहाँ रहो ?

हातमे लैके बरमाला ओ सेंदुर–टीका
घनि–घनि दर्नैं झिँका, तुह कहाँ रहो ?

सजाइल रहे हिर्डामे ऊ ताज–महल
हो लग्नैं ओम्हीं किरा, तुह कहाँ रहो ?

हे ! भगवान शिवशंकर कहल लेकिन
पठाइल यमराज भिसा, तुह कहाँ रहो ?

हो साँस रहलसम तो आश कहेहस
राम–राम ! कहल् सीता, तुह कहाँ रहो ?

(स्रोत : परगोह्नी गजल संग्रह)

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