जाइतक टुकरी नै ऊँच–नीच महान्
छी हम सब मैथिल मिथिला हमर शान
होइ छै एकेटा धरती एकेटा आकाश
पिवैत छी सबकिओ एकेटा बतास
चाहे ओ पंडित हो, पादरी आ खान
पसीना में चमकैत अछि जीवनकेर ज्योति
कर्मक बलसँ गढ़ैत छी हम मोती
सबहक लेल समय अछि ओतबे बलबान
किनको मन्दिर मे गारल छन्हि पुर्वजक खन्ती
हमर मन–मन्दिर में बजैत अछि अपन घण्टी
नाचथि आस्था के मन्दिर में हमरो भगवान
विनीत ठाकुर
मिथिलेश्वर मौवाही–६, धनुषा
(स्रोत : रचनाकार स्वयंले ‘Kritisangraha@gmail.com‘ मा पठाईएको । )