केहन सपना हम मीता देखलौँ भोर में ।
माय मिथिला जगाबथि भरल नोर में ।।
कहथि रने वने घुमी अपन अधिकार लेल ।
छैं तूँ सुतल छुब्ध छी तोहर बिचार लेल ।।
कनिको बातपर हमरा तूं करै विचार ।
की सुतलासँ ककरो भेटलै अछि अधिकार ।।
जोरि एक एक हाथ बनवै जो लाखों हाथ ।
कर हिम्मत तूं पुत्र छियौ हम तोहर साथ ।।
अछि तोरापर बाँकी हमर दूधक कर्ज ।
करै एहिबेर तूं पुरा सबटा अपन फर्ज ।।
लौटादे हमर आब अपन स्वाभिमान ।
पुत्र कहेबे तूं महान हेतौ कर्म महान ।।
विनीत ठाकुर
मिथिलेश्वर मौवाही–६, धनुषा
(स्रोत : रचनाकार स्वयंले ‘Kritisangraha@gmail.com‘ मा पठाईएको । )