गरीब छोरि कऽ के बुझतै गरीबीके मारि ।
ओ तऽ पेटे लेल जरबै छै कोरो आ पाढि़ ।।
भेल छै स्वार्थी सब नेता अपने स्वार्थे में चूर ।
छिनलकै जे सपना सुख भऽ गेलैक कोसो दूर ।।
ओकरे पर सब मुंहगरहा करैछै ब्रह्म लूट ।
निकालै छै ओकरेसँ फाइदा करा कऽ फूट ।।
रहितै जे ओकरो लग अपन ज्ञानक बखारी ।
नै बनितै समाजक लेल दरिद्र ओ भिखारी ।।
भेल छै बहुतो ठाम स्कूल, कलेजक निर्माण ।
पेट में अपुग दाना तहने सब किछु विरान ।।
कोनो गोटे नै खेलाऊ ओकर जीवन सँ खेल ।
करिऔ ओकरो आगू समाजक विकासक लेल ।।
शताब्दी प्रथम मिथिलाक्षर पुस्तक बाँकी अछि हमर दूधक कर्ज सँ साभार ।
विनीत ठाकुर
मिथिलेश्वर मौवाही–६, धनुषा
(स्रोत : Majheri )