सर्वत्र सँऽ भगाय ल,
मधेश मे आइब नुकाय ल,
तबो जे छिन लेल क,
ओ शान्ति छि ॥
जनह तन युद्ध-एनह गोहारि,
गर्दमगोल भ पडय मारि,
अन्तमे छाती मे समालि, बाकी रहल,
ओ शान्ति छि ॥
अपने भाइ भैयारीमे दमन झारैति,
मधेश सँ शान्तिक झण्डा उखारैति,
बचा के जे छातीमे दबायल,
ओ शान्ति छि॥
रोँ जखनि तखनि धमकावे बमक धक्का,
गर्दनिया द पडल ओकर मुक्का,
एहिना प्रहार सँ घायल,
ओ शान्ति छि॥
गजेन्द्र गजुर
हनुमाननगर-२
सप्तरी
૨૦૧५-૨-०८
(स्रोत : संग्रहालयकै एक कविताको टिप्पणीमा प्रेषित गरिएको । )
*गजल* संख्या-२
૨૦७૨-૦५-૦૨
आजादीके ज्वाला दनकैत रहतै,
ओसब ओहिना फनकैत रहतै,
जुलुम कले चिच्यानञि रति भरि,
चाहे बिरुद्धमे सनकैत रहतै,
इन्कलाम जिन्दाबाद ऽ क नारा भेल,
नसंहारी अहिना झरकैत रहतै,
उगले आजादीके चान चारु भर,
जुल्मीके मन चनकैत रहतै,
बुझले भेलै सबठा सोर गजुर,
मधेशी सगरे गनकैत रहतै,
गजलकार
गजेन्द्र गजुर
महोदय
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