निकाइल सबटा गौहमन कऽ बिख,
किए क त शोणित मे दिए मधेश लिख,
बान्हल हाथ कऽ टुट्ल न राइस,
पैर भाइज तौँ कि फेरो त गेलु फाइस॥
गणतन्त्र कऽ देलकै मुह मोचाइर,
बहकल आ भोथियालके जगेलु ढाठे-ढाठ खोचाइर,
दोख अपन जे सहैल अन्यायोँ गेल सिख,
विधना सहाय भ पठैलिन एकोटा भिख॥
पाथरो पर लहु बर्षा बैत छि आत्मघाती,
विह्वल मधेश चयनक चिरब छाती,
गाडल अपराधो अजगुत गेलै उधियाय,
नेशल डिबिया फुइक उन्टा केलहो पाप गेल फरछाय॥
रचनाकार
गजेन्द्र गजुर
हनुमान नगर(सप्तरी)
(स्रोत : संग्रहालयकै एक गजलको टिप्पणीमा प्रेषित गरिएको । )
मैथिली कबिता:अपन मधेश
देख वृकति यही देशके,
दिनानु दिन विग्रले जाय अपन मधेशके ॥
सब एक जुट निर्माण करब स्वदेश के,
हरियर आवास बनायब अपन मधेशके॥
देख वृकति…
बेर बेर ज्वाला दनका बैत रहब एहि अवशेषके,
स्वतन्त्रता दिलावे करब अपन मधेशके॥
देख वृकति…
धोती गमछा आ पाग सन सनेशके,
हेयौ शान बदायब अपन मधेशके॥
देख वृकति…
देख छल कपटी अपना वेशमे,
काकोर सनँ चपाईठ रहल अपना मधेश के॥
देख वृकति…
@रचानाकार
# गजेन्द्र गजुर(राय)
हनुमान नगर