Category Archives: थारू गजल

थारू भाषी गजल : मुस्कान गजल जैसिन

~मेन्जावीर चौधरी~ तुहार मुस्कान गजल जैसिन तुहार मुहार कमल जैसिन तुहार नरम-नरम ऊ ओठ लागत नसासे भरल जैसिन

Posted in थारू गजल | Tagged | Leave a comment

थारू भाषी गजल : तब तुफान आई

~मेन्जावीर चौधरी~ जब यी कलम चली तब तुफान आई जब यी गजल बनी तब मुस्कान आई आऊ तुहाथमेहाथ काँढमेकाँढ मिलाऊ तब जाके हमार एकताके सान आई

Posted in थारू गजल | Tagged | Leave a comment

थारू भाषी गजल : भुवा बनगील

~मेन्जावीर चौधरी~ धिरेधिरे आगी बरल भुवा बनगील । टिपटिप आँश झरल कुवाँ बनगील ॥ जनचेतना से बञ्चित मोर प्यारा गाऊँ झनझन जाँड पिके मदुवा बनगील ।

Posted in थारू गजल | Tagged | Leave a comment

थारू भाषी गजल : प्यार नुकैबु मै कैसिक्

~सलिना कुमारी चौधरी~ जब भोजक बाट हुइ,घरम प्यार नुकैबु मै कैसिक् आई कोइ लेहे महिन्,ओकर साथ जैबु मै कैसिक् टुह्ँ टो खुल्के प्यारके एक्रार करे निसेक्लो टो अब आपन ओ टुहार घर परिवार हिन् बटैबु मै कैसिक्

Posted in थारू गजल | Tagged | Leave a comment

थारू भाषी गजल : आइहो बरात लैके

~सलिना कुमारी चौधरी~ टुँह् डुल्हा मै डुल्ही बनम आइहो बरात लैके सज् ढज्के डोलिम् बैठम आइहो बरात लैके टरेसे लैके उप्पर सम्म हर तरफ् टुहार नाउसे सोह्रा  सृंगारम  मै  सजम आइहो बरात लैके

Posted in थारू गजल | Tagged | Leave a comment

थारू भाषी गजल : पर्ख नि हुइ आब

~बुद्दिराम चौधरी~ आघ बर्ही सङ्घारी हुक्र पाछ पर्ख नि हुइ आब / नि हच्की नि डराइ यी ब्यालम डर्ख नि हुइ आब // लिखाइ अधिकार सम्बिधानम पहिचान सहित के / जितिह ेरहल्म फे हम्र सक्कुज मर्ख निहुइ आब //

Posted in थारू गजल | Tagged | Leave a comment

थारू भाषी गजल : कठु जाँरक भंक्री

~एम के कुसुम्या~ निदेलसे घरक मनै छोर्देम कठु जाँरक भंक्री कबु काल रिस लग्था फोर्देम कठु जाँरक भंक्री मै मटोर्या अस्त बातु जाँर निहोक निसेक्तु मै देना बा त देओ नै त चोर्देम कठु जाँरक भंक्री

Posted in थारू गजल | Tagged | Leave a comment

थारू भाषी गजल : पच्छिउँ से जागी हम्र युवा

~सुरज बर्दियाली~ उत्तर दख्खिन पुरुब पच्छिउँ से जागी हम्र युवा// समाज विकासके कर्तव्यसे जिन भागी हम्र युवा// बुँदा बुँदा पानी मिल्क जस्तक बनट समुन्दर, असम्भव हे मिल्के सम्भव बनाए लागि हम्र युवा//

Posted in थारू गजल | Tagged | Leave a comment

थारू भाषी गजल : तुह कहाँ रहो ?

~सीता थारू ‘निश्छल’~ जिन्दगीमे दर्नैं चिठ्ठा, तुह कहाँ रहो ? तुहिनहे मँग्नु भिक्षा, तुह कहाँ रहो ? हातमे लैके बरमाला ओ सेंदुर–टीका घनि–घनि दर्नैं झिँका, तुह कहाँ रहो ?

Posted in थारू गजल | Tagged | Leave a comment