कथा : पानीक रिब

~कालिकाप्रसाद उपाध्याय~kalika-prasad-upadhyay

बलमुवाँ मदारिक डँडुवामन् बैठ्के सजना भाखाक् गीत गाइठ चिल्लाकेः हर्किन्देबु बजरिया केवरिया रे…….सुखावो सुखनी…। वकर गैया व भैंस चरटाइँ अारक्षक किनारम व उ देखठ एक्ठो पानीक् खड्डा जहाँ फुलल्बा कट्कुइयाँ (कमल) । उ एक्ठो कट्कुइयाँक् फुला उखाडठ् व बनाइठ वकर माला ।

अारक्षक उपारसे ३,४ बठनियाँ अाइटाइँ, मुरिम ढकिया व ढकियाम कोसम, जाम लइके । बलमुवाँ देखठ वकर मनरख्नी झिगनियाँ फे बाटइँ । झिगनियाकिहिन उ मन पराइठ मनों झिगनियाकिहिन यी बातक कैान पता नाइँ हो, बस एकतर्फी मयाँ । झिगनियाँ खुब बढिया, जवान व चट्पटिया बठनियाँ, सुन्दर जीउडाल, हरबार हँस्के रखना वा सक्कुसे बढिया व्यवहार करना उनक बानि से गाँवभर व सबके प्यारी रही । भर्खर १८ वर्षक् उमरम व उपर स्वर्गक अप्सरा जमीनम् अाइल जैसिन देख्ठी ।

बलमुवाँ सक्कुहुनसे कोसम मागठः ‘महिन कोसम देबो होर्इ ?’

अउर सब बठनियाँ चल्गिनै, अकेलि झिगनियाँ रहल्गिनै । झिगनियाँ अपन ढकिया से कोसम निकारके बलमुवाँक हाथेम रख्ठी व बलमुवाँक अँाखिम हेर्ठी दोनोक अँाख जुधल । बलमुवाँ झिगनियाँसे पुछठः ‘तु काकरे देहेलो, अउर इत्ना मनै कुछु नाइ बोल्के चल्गिनै, तु किल काकरे देहलो महिन कोसम ?’

झिगनियाँ फेर वकर अँाखिम मयालु तालसे देख्ली तो केजाने का हुइगिल, कहलीः ‘मै नाइ देम तो के दी ?’

बलमुवाँक मन्म का हुइगिल हुइगिल, उ भितरके मयाँ जाग उठल व पुछलः ‘का तुँ मैं जउन चीज मागम, सक्कु देबो ?’

झिगनियाँक् बोली दबल रेहे, उ कहलीः ‘मोरसंग हुइ तो जरूर देबुँ……।’

बलमुवाँ चारोअोर हेरल व कानेम् जाके कहलः ‘ठिक बा अब्बै नाइ बताइम, काल साहिंजुन्के अँटुवाम भेटब, तब बताइम् । मै तुहिन डुन्ड्राठनके अँटुवाम हँसुवाइम, उहाँ कोइ नाइदेखठ, जरूर अाइहो….।’

झिगनियाकिहिन कट्कुइयाँक् माला दइके बलमुवाँ कोसम खाइटे खाइटे गैया व भैंस घुमाए चल्गिल व झिगनियाँ चली डगराअोरसे गाउँतरफ ।

काल साहिंजुनके अँटुवाम बैठके बलमुवा सुग्गा हकारे लागल । उ चिल्लाइटेहे सुग्गा हाकारेक लाग् मनो अोकर ध्यान रहे डगराअोर, झिगनियाँ अाइल कि नाइँ ?

झिगनियाँ खेतुवाक किनारेसे अँटुवाम अाइली, पानिसे थोरथोर भिजल हुँकार जीउ उपरसे देखके बलमुवाँकिहिन लोभ लागल । मनमन्म सोचल, मोर भोज यिन्से हुइठ तो मोर जिन्दगी कत्ना सुखीहुर्इ ?

झिगनियाँ जीउके पानी झट्कार्ली व मचानम बैठके पुछ्लीः ‘अब का पुछ्ना बा पुछो, व का माग्ना बा मागो ?’

एक मनसे बलमुवाँ डराइल, दोसर मनसे सोचल, अगर यी मैाका मै नाइँ लेम तो अइसन मैाका महिन कब्बु नाइँ मिली ? फेन सोचल, एक्चोट्टे कैसिके कहूँ, अोकर मन फट्जाइ तो ? फिर सोचल, नाइँ अाज तो कहिके रहम् । बालबाल हिम्मत करल व पुछलः ‘झिगनियाँ, मै तुहिन कैसन लाग्ठूँ ?’

झिगनियाँ कुछु नाइँ बुझल, व कहलः तु तो मजा लाग्ठो, मनें तुहार कान महिन मजा नाइलाग्ठाइँ ?

बलमुवाँ हाँसल व कहलः का करे ?

झिगनियाँ बोल्लीः तुहार कान नाइसुन्ना चीज ज्यादा सुन्ठाइँ वा सुन्ना चीज सुन्बे नाइ कर्ठाइँ ।

बलमुवाँः बताउ, का नाइसुन्नु मैं ।

झिगनियाँ बात फेरके बोलीः तुँ बताउ का कहटेरहो ?

बलमुवा अँटुवाक् नीचे, येहोर अोहोर सक्कुअोर देखल, कोइ नाइ हों तो कहलः ‘हेरो झिगनियाँ, मोर व तोहार भोज हुइना उमर हुइगिल, अगर मोर दाइबापु तोहार घर जाके तुहिन मागैं तो तुम हाँ कहबो ?’

झिगनियाँकिहीन मार मार हेमार हुइगिल । व उल्टा पुछे लाग्लीः तु महिन भोज करके का पाइबो बलमुवाँ ?

बलमुवाँक जवाफ रेहेः पानीक रिब ।

झिगनियाँ हडबडाके पुछलीः का बात कर्ठो, मोरसंग पानीक रिब बा ?

बलमुवाँ झिगनियाँक हाथ पक्डल, अपन माथेम राखल व कहलः नाइँ झिगनियाँ वैसिन बात नाइँ हो । यी संसारम सब धनी गरिब मनै बाटैं अो सक्कुजानेमें से जउन जउन मनै जिन्दगीसे दिक्याइल बाटैं, मिच्छाइल बाटैं, अोकर कारण का हो तुहिन पता बा ?
झिगनियाँकिहिन् अइसिन बातक का पता ? अो इत्ना कहलीः महिन कैसिके पता हुर्इ ?

‘तो सुनो ।’ बलमुवाँ झिगनियाँकिहीन सम्झाइलागलः ‘झिगनियाँ मै हमार गाउँक धनी मनै, गरीब मनै सक्कुहुनके देखटुँ, कोइ मनै खुस नाइँ ह्वाँइ । हुँकार घरेम धेरथोर दानापानी बा । कमाइठाइँ खाइठाइँ, मनों साहिंजुन्के हुँकार घरेम जाके देख्बो तो, झग्रा, मारापिट, चिल्लाहट । जन्निहुन्के अपना डगरा, बुडुवाहुनके अपना डगरा । सोनाचाँदी, हिरामोती कुछु से घरम शान्ति नाइँ अाइठ अगर घरके मिधरूवा व बुडुवाक जोडा अच्छा नाइँ रही तो । मैं सोच्नु, तुहार व मोर जोडा जम्जाइ तो हम्रे सेकब तो धेर पैसा कमाके, गुरीगुरि चीज खाइके, हइयारहइयार लुग्रा लागाइके बाँचब, नाइ सेकब तो पानीक रिब खाइके बाँचब । यी दोनो अवस्थाम टिक्ना गाउँभरकि बठनियाँमन एक्ठो तुहिन देख्नु, उहीमारे यी मनके बात कहिदेहेलुँ चाहे जो कुछ करो ।’

बलमुवाँक बात से झिगनियाक मन पग्ललकि नाइँ के जाने, उ वकर लग्गे अाके हाथ मागली, वकर हाथम अपन हाथ रख्ली अो कहलीः ‘लड्की मनइक जीन्दगी फे पानीक रिब जैसिन तो बा । कोइ कुवाँ से उठाइके भान्साम लैजाइठ, उहाँ दोसर मनै ताताइठ, नोनमिर्चा मिलार्इठ, खार्इठ, पेट भरठ । जनम देहुइया दाइबाप, करम देहुइया बुडुवा व सब समाज हम्रे जन्नी मनैनके पानीक रिब समझठाइँ ।’

बलमुवाँ झिगनियाक हाथ बहुत देरसम पकड्ले रेहे । रात हुइगिल, के जाने कब यी दुइझाने छुट्नै ।

बर्दिया, हाल अष्ट्रेलिया 

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